भारत में लंबे समय से लंबित जनगणना (Census) सितंबर 2024 में शुरू होने की संभावना है। यह जनगणना हर दस साल में आयोजित की जाती है, लेकिन 2021 में इसे कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित करना पड़ा था। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह जनगणना शुरू होने की उम्मीद है, और इसका अंतिम डेटा मार्च 2026 तक जारी होने की संभावना है।
जनगणना के महत्व और देरी पर उठे सवाल
इस जनगणना के डेटा का महत्व अत्यधिक है, क्योंकि यह देश की जनसंख्या से संबंधित सटीक जानकारी प्रदान करेगा, जो सरकारी नीतियों और योजनाओं के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। हालांकि, जनगणना में हो रही लगातार देरी के कारण सरकार के भीतर और बाहर, अर्थशास्त्रियों और नीति निर्माताओं ने कड़ी आलोचना की है। उनका मानना है कि इस देरी के कारण अन्य सांख्यिकीय सर्वेक्षणों, जैसे आर्थिक आंकड़े, महंगाई, और रोजगार अनुमानों की सटीकता और प्रासंगिकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
पुराने डेटा पर निर्भरता और बजट कटौती
वर्तमान में, अधिकांश सरकारी योजनाएं और नीतियां 2011 की जनगणना के डेटा पर आधारित हैं, जो अब पुराना हो चुका है और कई नीतिगत निर्णयों पर इसका असर पड़ रहा है। इसके बावजूद, 2024-25 के बजट में जनगणना के लिए आवंटित राशि में कटौती की गई है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पहले जनगणना के लिए ₹8,754.23 करोड़ और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को अपडेट करने के लिए अतिरिक्त ₹3,941.35 करोड़ की मंजूरी दी थी। लेकिन हालिया केंद्रीय बजट में, यह आवंटन घटाकर ₹1,309 करोड़ कर दिया गया है, जो 2021-22 में निर्धारित ₹3,768 करोड़ से काफी कम है।
बजट कटौती से उत्पन्न चुनौतियाँ
इस बजट कटौती ने जनगणना के समय पर पूरा होने पर संदेह उत्पन्न कर दिया है। पिछले महीने कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने भी इस मुद्दे पर निराशा व्यक्त की थी, जब उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद यह पहली बार है कि सरकार समय पर जनगणना कराने में विफल रही है।
गृह मंत्रालय और सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय जनगणना के लिए विस्तृत समय-सीमा पर काम कर रहे हैं, लेकिन अभी भी प्रधानमंत्री कार्यालय से अंतिम मंजूरी का इंतजार है।