Updated by Zulfam Tomar
जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक स्थिति ने हमेशा ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया है। इस बार होने जा रहे विधानसभा चुनाव इस स्थिति को और भी विशेष बनाते हैं। 10 साल बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और ये चुनाव कई कारणों से महत्वपूर्ण हैं। इस लेख में हम जम्मू-कश्मीर के चुनावों में कश्मीरी प्रवासियों, विशेष रूप से कश्मीरी पंडितों के लिए विशेष वोटिंग सुविधाओं की चर्चा करेंगे।
जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव: एक महत्वपूर्ण घटना
जम्मू-कश्मीर में 90 विधानसभा सीटों के लिए आगामी चुनाव तीन चरणों में आयोजित किए जाएंगे। ये चुनाव विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि अनुच्छेद 370 हटने के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है। इस बदलाव ने जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक और सामाजिक संरचना को गहरे तौर पर प्रभावित किया है। इसके अलावा, विधानसभा सीटों की संख्या भी बढ़ गई है, जिससे इस चुनाव का महत्व और भी बढ़ गया है।
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कश्मीरी प्रवासियों के लिए विशेष पोलिंग बूथ
चुनाव आयोग ने जम्मू, उधमपुर, और दिल्ली में कश्मीरी प्रवासियों के लिए 24 विशेष पोलिंग बूथ बनाए हैं। इन बूथों पर जाकर कश्मीरी प्रवासी वोट डाल सकते हैं। यह सुविधा 1996 से ही प्रदान की जा रही है, जब जम्मू-कश्मीर में विस्थापित कश्मीरियों के लिए विशेष पोलिंग बूथ बनाए जाने का निर्णय लिया गया था। उस समय से हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में कश्मीरी प्रवासियों के लिए यह व्यवस्था की जाती है।
कश्मीरी पंडितों को ही क्यों मिलती है यह सुविधा?
यह सवाल उठता है कि सिर्फ कश्मीरी पंडितों को ही क्यों यह विशेष सुविधा मिलती है? इसके पीछे ऐतिहासिक और सामाजिक कारण हैं। 1987 के विधानसभा चुनावों के बाद कश्मीर में आतंकवाद का दौर शुरू हुआ। 1990 में जब आतंकवाद ने अपनी चरम सीमा छूई, तो हजारों कश्मीरी पंडितों को घाटी से पलायन करना पड़ा।
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 1990 में कश्मीर घाटी में आतंकवाद के दौरान 219 कश्मीरी पंडितों की हत्या कर दी गई थी। इस भयावह समय में लगभग 44,684 परिवारों को घाटी छोड़नी पड़ी। इस परिस्थिति में, जो लोग अपने घरों से विस्थापित हुए थे, उनके लिए सरकार ने विशेष पोलिंग बूथ की व्यवस्था की, ताकि वे अपने वोट के अधिकार का उपयोग कर सकें।
वोटिंग प्रक्रिया में क्या बदलाव हुए हैं?
इस बार के विधानसभा चुनाव में जम्मू और उधमपुर में बसे कश्मीरी प्रवासियों को फॉर्म-M भरने की आवश्यकता नहीं होगी। यह बदलाव हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में भी किया गया था। हालांकि, दिल्ली में बसे कश्मीरी प्रवासियों को यह फॉर्म भरना होगा।
चुनाव आयोग ने बताया कि कश्मीरी प्रवासियों के लिए ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल जल्द ही जारी किया जाएगा, और इसके बाद सात दिनों के भीतर उसमें किसी भी प्रकार के बदलाव या सुधार की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। इसके बाद फाइनल इलेक्टोरल रोल जारी किया जाएगा, जिसके आधार पर वोटर आईडी कार्ड जारी किए जाएंगे। इसके जरिए प्रवासी वोटर स्पेशल पोलिंग बूथ पर जाकर वोट डाल सकेंगे।
देश के अन्य प्रवासियों के लिए क्या है स्थिति?
कश्मीर के बाहर रहने वाले अन्य प्रवासी भारतीयों को इस प्रकार की कोई विशेष सुविधा नहीं दी जाती। हालांकि, चुनाव आयोग रिमोट वोटिंग मशीन (RVM) पर काम कर रहा है, जिससे भविष्य में प्रवासी भारतीय उसी स्थान से अपने वोट का उपयोग कर सकेंगे। पिछले साल जनवरी में चुनाव आयोग ने रिमोट वोटिंग मशीन का प्रस्ताव रखा था। अगर यह प्रस्ताव पास हो जाता है और चुनावों में इसका इस्तेमाल होता है, तो दूसरे शहरों या राज्यों में रह रहे प्रवासी उसी जगह से वोट डाल सकेंगे।
रिमोट वोटिंग मशीन: भविष्य की एक झलक
अगर रिमोट वोटिंग मशीन को चुनाव आयोग द्वारा लागू किया जाता है, तो यह देश के सभी प्रवासी भारतीयों के लिए एक बड़ी राहत होगी। इससे न केवल वोटिंग प्रतिशत में वृद्धि होगी, बल्कि प्रवासी भारतीयों के लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।
कश्मीरी प्रवासी कौन होते हैं?
कश्मीरी प्रवासी उन लोगों को कहा जाता है जिन्होंने 1 नवंबर 1989 के बाद कश्मीर घाटी या जम्मू-कश्मीर के किसी अन्य हिस्से से पलायन किया हो और जिनका नाम रिलीफ कमीशन में दर्ज हो। इनमें से अधिकांश प्रवासी कश्मीरी पंडित हैं, जो आतंकवाद के कारण अपने घरों को छोड़ने के लिए मजबूर हुए थे।
जम्मू-कश्मीर में आगामी चुनाव का समय
जम्मू-कश्मीर में 90 विधानसभा सीटों के लिए तीन चरणों में वोटिंग होगी। पहले चरण में 18 सितंबर को 24 सीटों पर, दूसरे चरण में 25 सितंबर को 26 सीटों पर, और तीसरे चरण में 1 अक्टूबर को 40 सीटों पर वोटिंग होगी। चुनाव के नतीजे 4 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे।
जम्मू-कश्मीर की वर्तमान राजनीतिक स्थिति
जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे। उस समय की 87 सीटों में से पीडीपी ने 28, बीजेपी ने 25, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 15, और कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं। बीजेपी और पीडीपी ने मिलकर सरकार बनाई और मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने।
जनवरी 2016 में मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद राज्य में चार महीने तक राज्यपाल शासन लागू रहा। बाद में उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन यह गठबंधन ज्यादा दिनों तक नहीं चला। 19 जून 2018 को बीजेपी ने पीडीपी से गठबंधन तोड़ लिया और राज्य में राज्यपाल शासन लागू हो गया।
जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक बदलाव
पिछले साल केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल गए। इस निर्णय को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी मामला गया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के निर्णय को बरकरार रखते हुए 30 सितंबर 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने का आदेश दिया।
निष्कर्ष
जम्मू-कश्मीर के आगामी विधानसभा चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण हैं। इन चुनावों में कश्मीरी प्रवासियों, विशेष रूप से कश्मीरी पंडितों के लिए विशेष पोलिंग बूथ बनाए जा रहे हैं, जो उनके लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। यह सुविधा उन्हें उनके लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रयोग के लिए प्रदान की जा रही है, जो कि कश्मीर के इतिहास और वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए एक महत्वपूर्ण निर्णय है।
जम्मू-कश्मीर की स्थिति ने न केवल राज्य बल्कि देश के भविष्य पर भी गहरा प्रभाव डाला है। इन चुनावों के परिणाम क्या होंगे, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इतना तय है कि इन चुनावों के बाद जम्मू-कश्मीर की राजनीतिक तस्वीर में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।
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