कर्नाटक में दलितों के मंदिर में प्रवेश से भड़के ऊंची जाति के लोग,दलितों ने पुलिस सुरक्षा के बीच मंदिर में एंट्री की

कर्नाटक: दलितों के मंदिर में प्रवेश से मचा हंगामा, नाराज ऊंची जाति के लोग उठाकर ले गए मूर्ति

कर्नाटक के मांड्या जिले में स्थित हनकेरे गांव में ‘कालभैरवेश्वर मंदिर’ में दलितों के प्रवेश से गांव में तनाव पैदा हो गया। प्रशासन ने पहली बार दलितों को मंदिर में पूजा करने की अनुमति दी, जिससे नाराज होकर ऊंची जाति के लोगों ने मंदिर की ‘उत्सव मूर्ति’ को दूसरी जगह ले जाने का फैसला किया। यह घटना बताती है कि जातिगत भेदभाव के खिलाफ संघर्ष आज भी जारी है।

आजादी के 75 साल बाद भी कायम है जातिगत भेदभाव

देश में स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी समाज में जातिगत भेदभाव की गहरी खाई मौजूद है। संविधान में समानता के अधिकार के बावजूद कई स्थानों पर जाति के आधार पर भेदभाव देखा जाता है। इस घटना ने न केवल कर्नाटक बल्कि पूरे देश में जातिगत भेदभाव की एक झलक पेश की है। हनकेरे गांव में ऊंची जाति के लोगों द्वारा दलितों को मंदिर में प्रवेश से रोके जाने की यह घटना समाज में बदलाव की आवश्यकता को उजागर करती है।

देशभर में जातिगत भेदभाव के अलग-अलग रूप

भारत के विभिन्न हिस्सों में आज भी जातिगत भेदभाव के मामले सामने आते हैं। किसी जगह दलितों को शादी में घोड़ी पर चढ़ने से रोका जाता है तो कहीं ऊंची जाति के लोग दलितों के मूंछ रखने पर आपत्ति जताते हैं। ऊंची जातियों के लोग अक्सर निचली जाति के लोगों को अपने मंदिरों में प्रवेश नहीं करने देते या उनके साथ किसी सामाजिक कार्यक्रम में शामिल नहीं होने देते। यहां तक कि ऊंची जाति के परिवार अपने घरों के आसपास निचली जाति के लोगों का रहना भी बर्दाश्त नहीं करते। इन घटनाओं से साफ है कि जातिगत भेदभाव आज भी समाज के कई तबकों में गहराई से फैला हुआ है।

प्रशासन ने दी दलितों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति

10 अक्टूबर को हनकेरे गांव के ‘कालभैरवेश्वर मंदिर’ में पहली बार दलितों को प्रशासन द्वारा प्रवेश की अनुमति दी गई। यह अनुमति कई शांति बैठकों के बाद मिली, जहां यह प्रयास किया गया कि सभी जातियों के लोग मंदिर में साथ आएं। लेकिन कुछ ऊंची जातियों के लोग इस फैसले को सहन नहीं कर पाए और उन्होंने मंदिर की ‘उत्सव मूर्ति’ को उठा लिया, जिससे गांव में तनाव फैल गया। इसके बाद पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी ताकि किसी अप्रिय घटना को रोका जा सके।

मूर्ति उठाकर ले गए ऊंची जाति के लोगकर्नाटक में दलितों के मंदिर में प्रवेश से

प्रशासन की अनुमति के बाद जब दलित समुदाय के लोग मंदिर में पूजा करने पहुंचे तो ऊंची जाति के कुछ लोग इतनी नाराज हो गए कि उन्होंने मंदिर की ‘उत्सव मूर्ति’ को ही दूसरी जगह ले जाने का निर्णय लिया। उनका कहना था कि अगर दलितों को मंदिर में आना है तो मंदिर उन्हें ही सौंप दिया जाए। यह घटना इस बात को दर्शाती है कि समाज में अब भी कुछ लोग जातिगत सोच के कारण बराबरी के अधिकार को मान्यता नहीं देते।

मंदिर के रेनोवेशन के बाद बढ़ा विवाद

यह मंदिर राज्य सरकार के धार्मिक बंदोबस्ती विभाग के अधीन आता है और करीब दो साल पहले, इसका रेनोवेशन कांग्रेस के पूर्व विधायक एम श्रीनिवास की देखरेख में हुआ था। रेनोवेशन के बाद से ही दलित समुदाय के लोगों ने इसमें प्रवेश की मांग की थी। प्रशासन द्वारा उन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति मिलने से यह विवाद शुरू हुआ और ऊंची जातियों के लोग इसका विरोध करने लगे।

‘कालभैरवेश्वर मंदिर’
‘कालभैरवेश्वर मंदिर’

आपको बता दें कि कर्नाटक के मांड्या जिले में स्थित हनकेरे गांव में एक पुराना मंदिर है जिसका नाम ‘कालभैरवेश्वर मंदिर’ है। यह मंदिर सैकड़ों साल पुराना है और यहां ऊंची जाति के लोगों का ही दबदबा रहा है। दलित समुदाय को मंदिर में जाने की अनुमति कभी नहीं थी, लेकिन हाल ही में प्रशासन ने दलितों को भी मंदिर में प्रवेश करने का अधिकार दिया, जिसके बाद गांव में तनाव बढ़ गया।

इस पूरे मामले को लेकर स्थानीय दलित नेता गंगाराजू ने कहा कि रिनोवेशन के बाद से ही दलित समुदाय के लोग यहां आते रहे हैं और उन्होंने मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान होने वाले अनुष्ठानों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. गंगाराजू के मुताबिक कुछ लोग तकरीबन पिछले तीन महीने से इस मामले को लेकर आपत्ति जताने लगे थे.

प्रशासन का जागरूकता अभियान

प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि जो लोग दलितों के मंदिर में प्रवेश का विरोध कर रहे हैं, उन्हें जागरूकता अभियान और परामर्श के जरिए शिक्षित किया जाएगा। तहसीलदार शिवकुमार बिरादर ने कहा कि अगर इसके बाद भी विरोध जारी रहता है तो कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

जातिगत भेदभाव के खिलाफ समाज को बदलने की जरूरत

यह घटना केवल एक मंदिर में प्रवेश का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह समाज में गहरे बैठे जातिगत भेदभाव की ओर इशारा करती है। देश के कई हिस्सों में ऊंची जाति और नीची जाति के बीच के संघर्ष का सिलसिला चलता रहता है। इन घटनाओं से साफ है कि समानता और न्याय की दिशा में समाज को अभी लंबा सफर तय करना है। जब तक जातिगत भेदभाव को समाप्त नहीं किया जाता, तब तक समाज में सही मायने में समानता और एकता लाना संभव नहीं है।

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