(एक खुली और बेबाक बातचीत ,इसको हम सिरीज में लिख रहे है )
अगर हम भारत में बेरोजगारी, शिक्षा की गुणवत्ता और समाज में बढ़ती अंधभक्ति को समझना चाहें, तो हमें इन तीनों के बीच के गहरे संबंध को देखना होगा। असल में, जब किसी देश की शिक्षा प्रणाली कमजोर होती है, तो वहां सोचने-समझने की क्षमता भी कमजोर होती है। और जब लोग सोचने की बजाय सिर्फ मानने लगते हैं, तो अंधभक्ति, जातिवाद , ऊँच नीच और सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा मिलता है।
अब सवाल ये है कि हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसी क्यों है?
सरकारें इसे सुधारने की जगह क्यों आंकड़ों का खेल खेलती हैं?
और क्यों आम आदमी को सिर्फ नाम लिखना और पढ़ना सिखाकर “साक्षर” मान लिया जाता है?
चलिए, इन सब पहलुओं पर खुलकर चर्चा करते हैं। हम पॉइंट to पॉइंट बात करेंगे
1. भारत में शिक्षा की हकीकत: क्या सच में सभी शिक्षित हैं?
सरकारें कहती हैं कि भारत में साक्षरता दर बढ़ रही है, लेकिन क्या वाकई लोग शिक्षित हो रहे हैं? नहीं! असल में, सरकारों ने साक्षरता का मतलब बहुत ही छोटा कर दिया है – अगर कोई व्यक्ति अपना नाम लिखना और अखबार पढ़ना सीख जाए, तो उसे साक्षर मान लिया जाता है!
लेकिन क्या इससे वह व्यक्ति दुनिया की सच्चाई को समझ सकता है?
क्या उसे संविधान, विज्ञान, तर्क और अधिकारों की सही जानकारी मिल रही है?
क्या वह सही और गलत में फर्क कर सकता है?
नहीं! और यही सबसे बड़ा खेल है। सरकारें आंकड़ों में सुधार दिखाने के लिए लाखों-करोड़ों लोगों को सिर्फ नाम लिखना और कुछ शब्द पढ़ना सिखाकर साक्षर घोषित कर देती हैं। असल में, यह शिक्षा नहीं, बल्कि एक भ्रम है।
2. शिक्षा की गिरती गुणवत्ता और समाज में बढ़ती अंधभक्ति
जब शिक्षा की गुणवत्ता गिरती है, तो सोचने और तर्क करने की शक्ति भी कम हो जाती है। यही कारण है कि समाज में अंधविश्वास, जात-पात और ऊँच-नीच की भावना बढ़ती जा रही है।
कैसे कमजोर शिक्षा, अंधभक्ति और जातिवाद को बढ़ावा देती है?
- सोचने की क्षमता कम होती है:
- जब शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित होती है और तार्किक सोच विकसित नहीं की जाती, तो लोग सवाल पूछने की बजाय सिर्फ मानने लगते हैं।
- इसी का फायदा कट्टरपंथी लोग और राजनीतिक दल उठाते हैं। वे लोगों को जाति, धर्म और अंधभक्ति में उलझाए रखते हैं।
- जातिवाद को खत्म करने की बजाय बढ़ावा दिया जाता है:
- अच्छी शिक्षा होने पर इंसान हर व्यक्ति को बराबरी से देखने लगता है। लेकिन जब शिक्षा सिर्फ नाम लिखने तक सीमित होती है, तो जात-पात की सोच बनी रहती है।
- राजनीतिक पार्टियां इसी सोच का फायदा उठाकर वोट बैंक बनाती हैं।
- अंधविश्वास बढ़ता है:
- अच्छी शिक्षा का मतलब होता है कि व्यक्ति विज्ञान को समझे, वैज्ञानिक सोच रखे।
- लेकिन जब शिक्षा कमजोर होती है, तो लोग चमत्कारों, टोटकों और बाबाओं पर ज्यादा भरोसा करने लगते हैं।
- नेता और उद्योगपति इसका फायदा उठाते हैं:
- अगर सभी को सही शिक्षा मिल जाए, तो लोग नेताओं और बड़े उद्योगपतियों से सवाल करने लगेंगे।
- इसलिए शिक्षा को ऐसा रखा गया है कि लोग सोचने की बजाय सिर्फ आदेश मानें।
3. सरकारें शिक्षा प्रणाली को क्यों सुधारना नहीं चाहतीं?
अब सवाल यह है कि अगर सरकारें चाहें, तो शिक्षा प्रणाली को सुधार सकती हैं, लेकिन वे ऐसा क्यों नहीं करतीं?
इसका जवाब आसान है – क्योंकि अगर लोग सच में शिक्षित हो गए, तो वे नेताओं से सवाल पूछने लगेंगे!
- आंकड़ों का खेल:
- सरकारें दिखाती हैं कि “साक्षरता दर बढ़ रही है,” लेकिन असल में शिक्षा की गुणवत्ता घटती जा रही है।
- सरकारी स्कूलों में टीचर नहीं, सुविधाएं नहीं, लेकिन रिपोर्ट में सबकुछ बढ़िया दिखाया जाता है।
- शिक्षा को बिजनेस बना दिया गया है:
- अमीरों के लिए महंगे प्राइवेट स्कूल हैं, गरीबों के लिए जर्जर सरकारी स्कूल।
- जो पढ़ाई मुफ्त मिलनी चाहिए थी, उसे एक कमाई का जरिया बना दिया गया है।
- एक समान शिक्षा प्रणाली क्यों नहीं?
- अगर सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता प्राइवेट स्कूलों जितनी कर दी जाए, तो गरीबों और अमीरों की शिक्षा का अंतर खत्म हो जाएगा।
- लेकिन अगर ऐसा हुआ, तो गरीब का बच्चा भी बड़ी नौकरी करेगा और नेता व उद्योगपतियों की सत्ता कमजोर हो जाएगी।
4. बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है?
अब आते हैं बेरोजगारी पर। जब शिक्षा कमजोर होगी, तो रोजगार भी कमजोर होगा। यह भी पढ़े : भारत में बढ़ती बेरोजगारी और शिक्षा की गिरती गुणवत्ता: सच क्या है?
बेरोजगारी बढ़ने के पीछे ये 5 मुख्य कारण हैं:
- कमजोर शिक्षा = कम स्किल:
- स्कूल-कॉलेज सिर्फ डिग्री बांट रहे हैं, असली हुनर नहीं सिखा रहे।
- जब स्किल नहीं होगी, तो अच्छी नौकरी कैसे मिलेगी?
- सरकारी नौकरियां खत्म हो रही हैं:
- पहले सरकारी नौकरियां ज्यादा होती थीं, लेकिन अब कम हो रही हैं।
- जो नौकरियां हैं, उनमें भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद हावी है।
- निजी कंपनियों की मनमानी:
- प्राइवेट सेक्टर में कम वेतन और ठेके पर काम ज्यादा है।
- स्थायी नौकरियां बहुत कम दी जाती हैं।
- तकनीकी बदलाव:
- नई तकनीक के कारण कई पारंपरिक नौकरियां खत्म हो रही हैं।
- लेकिन नई तकनीक से जुड़े काम सिखाने की व्यवस्था नहीं है।
- सरकार की नीतियां सिर्फ आंकड़ों के लिए:
- हर साल नई योजनाएं आती हैं, लेकिन असल में सिर्फ कागजों पर दिखावा होता है।
- असल में बेरोजगारी कम करने का कोई ठोस प्रयास नहीं होता।
5. समाधान क्या हो सकता है?
अब सवाल ये है कि इस स्थिति को कैसे सुधारा जाए?
अगर बदलाव लाना है, तो ये कदम जरूरी हैं:
- एक समान शिक्षा प्रणाली:
- सरकारी और प्राइवेट स्कूलों की गुणवत्ता एक जैसी होनी चाहिए।
- हर बच्चे को एक जैसी शिक्षा मिले, चाहे वह गरीब हो या अमीर।
- शिक्षा को बिजनेस न बनाया जाए:
- स्कूल-कॉलेज सिर्फ पैसे कमाने का जरिया नहीं होने चाहिए।
- शिक्षा को एक अधिकार के रूप में लागू किया जाए।
- रटने की बजाय प्रैक्टिकल शिक्षा:
- बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि असली जीवन के हुनर सिखाए जाएं।
- तार्किक सोच और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर जोर दिया जाए।
- बेरोजगारी के खिलाफ ठोस कदम:
- नए उद्योगों और रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जाए।
- हर युवा को उसकी क्षमता के अनुसार काम मिलने की व्यवस्था हो।
फैसला हमें करना है
अगर हमें एक बेहतर भारत बनाना है, तो हमें अपनी शिक्षा प्रणाली और बेरोजगारी के खिलाफ खड़ा होना होगा।
नेताओं के आंकड़ों के खेल से बाहर आकर असली सवाल पूछने होंगे।
वरना हम बस वोट डालते रहेंगे, आंकड़ों में “साक्षर” कहलाएंगे, लेकिन असल में हमें न अच्छी शिक्षा मिलेगी और न रोजगार।
अब हमें सोचना है – क्या हम बदलाव चाहते हैं या इस अंधेरे में जीते रहेंगे?