भारत में बढ़ती बेरोजगारी और शिक्षा की गिरती गुणवत्ता: सच क्या है?

Zulfam Tomar
8 Min Read

(इसको हम सिरीज़ में लिख रहे है )

अगर हम भारत में बेरोजगारी और शिक्षा की गुणवत्ता की बात करें, तो दोनों का आपस में गहरा नाता है। ये कहानी नई नहीं है, बल्कि आज़ादी के समय से चली आ रही है। लेकिन सवाल ये है कि आज इतने सालों बाद भी हमारी शिक्षा व्यवस्था क्यों कमजोर है और बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है? क्यों नेता और बड़े उद्योगपति शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देते? क्यों गांव और शहर में शिक्षा का स्तर अलग-अलग है? और सबसे बड़ा सवाल – भारत में एक समान शिक्षा प्रणाली क्यों नहीं है?

चलिए, इस पर खुलकर बात करते हैं। हम पॉइंट to पॉइंट बात करेंगे


शिक्षा का इतिहास: आज़ादी से पहले और बाद

अगर इतिहास देखें, तो भारत में शिक्षा कभी ज्ञान और संस्कार देने के लिए होती थी। गुरुकुल का सिस्टम था, जहां राजा-महाराजाओं से लेकर आम लोगों तक को शिक्षा मिलती थी। फिर अंग्रेज आए और उन्होंने हमारी शिक्षा व्यवस्था को बदल दिया। उन्होंने एक ऐसा सिस्टम बनाया जो सिर्फ क्लर्क और नौकरीपेशा लोगों को तैयार करे, न कि सोचने-समझने वाले नेता, वैज्ञानिक या उद्यमी।

आज़ादी के बाद हम अपनी शिक्षा प्रणाली को बदल सकते थे, लेकिन क्या बदला? कुछ नहीं! जो सिस्टम अंग्रेजों ने बनाया था, वही आज भी चल रहा है। बल्कि अब तो शिक्षा एक बिजनेस बन चुकी है, जहां पैसा दो और अच्छी पढ़ाई पाओ। जिनके पास पैसा नहीं है, उनके लिए सिर्फ सरकारी स्कूल और मामूली दर्जे की शिक्षा बची है।


आज भारत में शिक्षा का स्तर कैसा है?

अब अगर हम भारत में शिक्षा की वर्तमान स्थिति देखें, तो ये मोटे तोर पर चार हिस्सों में बंटी हुई दिखाई देती है :

  1. गरीब और आम आदमी की शिक्षा:
    • सरकारी स्कूल, जहां टीचर हैं या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं।
    • किताबें पुरानी, पढ़ाने का तरीका भी 20 साल पुराना।
    • बच्चे ज्यादा, स्कूल में सुविधाएं कम।
    • यहां से पढ़े बच्चों के लिए अच्छी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल।
  2. मिडिल क्लास की शिक्षा:
    • थोड़ा पैसा लगाने पर प्राइवेट स्कूल में एडमिशन मिल जाता है।
    • पढ़ाई सरकारी स्कूल से थोड़ी बेहतर होती है, लेकिन गुणवत्ता फिर भी खास नहीं।
    • यहां से निकले बच्चे आमतौर पर प्राइवेट जॉब या छोटी-मोटी सरकारी नौकरी तक ही पहुंचते हैं।
  3. अपर मिडिल क्लास की शिक्षा:
    • बड़े और नामी प्राइवेट स्कूल, जहां फीस लाखों में होती है।
    • यहां से निकले बच्चे अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं, अच्छी कॉलेजों में जाते हैं।
    • ये आगे चलकर ऊंचे पदों पर जाते हैं।
  4. अमीरों की शिक्षा:
    • इंटरनेशनल स्कूल, आईबी बोर्ड, विदेश में पढ़ाई।
    • यहां के बच्चे सीधे आईआईटी, आईआईएम, हार्वर्ड या ऑक्सफोर्ड पहुंचते हैं।
    • बड़े बिजनेस, ऊंचे पद और राजनीति में जाने का रास्ता इनके लिए खुला होता है।

यानि कि भारत में शिक्षा के चार अलग-अलग स्तर बन चुके हैं। गरीब और आम आदमी का बच्चा अगर पढ़ भी ले, तो भी उसे वैसी नौकरी नहीं मिलती जैसी अमीरों के बच्चों को मिलती है। इसका सीधा असर बेरोजगारी पर पड़ता है।


बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है?

शिक्षा और बेरोजगारी का सीधा कनेक्शन है। जब बच्चे को अच्छी शिक्षा ही नहीं मिलेगी, तो अच्छी नौकरी भी नहीं मिलेगी। और अगर नौकरी नहीं मिलेगी, तो बेरोजगारी बढ़ेगी। अब बेरोजगारी बढ़ने के पीछे कुछ खास वजहें भी हैं:

  1. शिक्षा का स्तर खराब:
    • बच्चे डिग्री तो ले रहे हैं, लेकिन उन्हें असली स्किल नहीं सिखाई जा रही।
    • किताबी ज्ञान बहुत है, लेकिन प्रैक्टिकल नॉलेज नहीं।
    • अंग्रेजी स्कूलों को काबिलियत का पैमाना बना दिया गया, जिससे गांवों और कस्बों के बच्चों के लिए मौके कम हो गए।
  2. सरकारी नौकरियां कम हो रही हैं:
    • पहले के मुकाबले सरकारी नौकरियों की संख्या घट रही है।
    • जो नौकरियां निकलती भी हैं, उनमें भ्रष्टाचार और आरक्षण जैसी समस्याएं बनी हुई हैं।
  3. निजी कंपनियां कम वेतन देती हैं:
    • ज्यादा पढ़ाई करने के बावजूद प्राइवेट कंपनियां मामूली सैलरी देती हैं।
    • ज़्यादातर लोगों को ठेके पर या अस्थायी नौकरी पर रखा जाता है, जिससे भविष्य असुरक्षित रहता है।
  4. तकनीक और ऑटोमेशन का असर:
    • नई तकनीक के कारण बहुत से पारंपरिक काम खत्म हो गए हैं।
    • कई लोग नई टेक्नोलॉजी से तालमेल नहीं बैठा पा रहे, जिससे वे बेरोजगार हो रहे हैं।

तो नेता और उद्योगपति शिक्षा पर ध्यान क्यों नहीं देते?

अब सवाल उठता है कि हमारे नेता और बड़े उद्योगपति शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान क्यों नहीं देते? जवाब बहुत साफ है – अगर हर किसी को अच्छी शिक्षा मिल जाएगी, तो गरीब और अमीर के बीच का फर्क खत्म हो जाएगा, और यही चीज़ वे नहीं चाहते।

  • नेता चाहते हैं कि लोग अधूरी शिक्षा लेकर बस वोट डालते रहें।
  • बड़े उद्योगपति चाहते हैं कि पढ़े-लिखे मजदूर तैयार हों, लेकिन ऐसा न हो कि वे उनके बराबर आ जाएं।
  • अमीर घरों के लोग चाहते हैं कि उनकी अगली पीढ़ी ही ऊंचे पदों पर रहे, इसलिए वे शिक्षा को महंगा बनाते जा रहे हैं।

शिक्षा को अब एक बिजनेस बना दिया गया है। स्कूल और कॉलेज अब ज्ञान देने की जगह सिर्फ डिग्री बेचने का काम कर रहे हैं।


क्या एक समान शिक्षा प्रणाली संभव है?

भारत में एक समान शिक्षा प्रणाली बन सकती है, लेकिन इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत है। अगर सरकार चाहे तो:

  1. हर बच्चे को एक जैसी शिक्षा देने का कानून बना सकती है।
  2. सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों जितना अच्छा बना सकती है।
  3. अच्छे टीचर्स और मॉडर्न टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर सकती है।
  4. रटने वाली शिक्षा की जगह स्किल बेस्ड एजुकेशन ला सकती है।

लेकिन असली सवाल यही है – क्या हमारे नेता और उद्योगपति ऐसा होने देंगे? अगर ऐसा हुआ, तो अमीर और गरीब के बीच की खाई मिट जाएगी, और शायद यही बात उन्हें मंजूर नहीं है।


हमे क्या करना चाहिए?

अगर हमें वाकई बदलाव लाना है, तो हमें खुद आगे आना होगा:

  • सरकारी स्कूलों की हालत सुधारने की मांग करनी होगी।
  • शिक्षा को बिजनेस बनाने के खिलाफ आवाज उठानी होगी।
  • स्कूलों में रटने की बजाय प्रैक्टिकल ज्ञान पर जोर देने की मांग करनी होगी।

अगर हम सब मिलकर इस मुद्दे पर सोचें और सही दिशा में कदम उठाएं, तो शिक्षा की गुणवत्ता सुधर सकती है और बेरोजगारी भी कम हो सकती है। वरना हम हमेशा इस असमानता में जीते रहेंगे, जहां गरीब का बच्चा मेहनत करने के बावजूद पीछे रह जाएगा और अमीर का बच्चा सिर्फ पैसों की बदौलत आगे बढ़ता रहेगा।

अब फैसला हमें करना है – क्या हम बदलाव चाहते हैं या इस व्यवस्था को वैसे ही चलने देना चाहते हैं?

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