बरेली स्कूल विवाद: पीरियड्स के दौरान छात्रा को सजा देने का आरोप
बरेली, उत्तर प्रदेश – एक चौंकाने वाली घटना में, 11वीं कक्षा की एक छात्रा को स्कूल सेनेटरी पैड मांगने पर क्लास से बाहर निकाल दिया गया। यह मामला गुरु नानक रिखी सिंह इंटर कॉलेज का है, जहां 24 जनवरी को परीक्षा के दौरान छात्रा को इस स्थिति का सामना करना पड़ा।
सोचिए, एक लड़की एग्जाम हॉल में बैठी है, अचानक उसे महसूस होता है कि उसके पीरियड्स आ गए हैं। वो घबरा जाती है, फिर हिम्मत करके प्रिंसिपल के पास जाती है और कहती है – “मैम, मुझे ब्लीडिंग हो रही है, क्या आप मुझे एक सेनेटरी पैड दिलवा सकती हैं?” लेकिन जवाब में उसे जो सुनने को मिला “क्या मैं पैड लेकर घूमती हूं?” – प्रिंसिपल का छात्रा को झिड़कना, वो चौंकाने वाला होता है।
क्या हुआ उस दिन?
छात्रा की आपबीती:
छात्रा के मुताबिक, जब वह स्कूल पहुंची तो उसे पता चला कि उसके पीरियड्स आ गए हैं। परीक्षा के दौरान उसे असहज महसूस हुआ, इसलिए वह प्रिंसिपल रचना अरोरा के पास गई और उनसे सेनेटरी पैड मांगा।
छात्रा ने कहा:
“मुझे बहुत अजीब लग रहा था, मैंने सोचा कि मैं मैम से मदद मांग लूं। मैं उनके पास गई और कहा – मैम, ब्लीडिंग हो रही है, मुझे पैड चाहिए। इस पर मैम गुस्से में आ गईं और बोलीं – क्या मैं पैड लेकर घूमती हूं? क्लास से बाहर निकलो और वहीं खड़ी रहो।”
इसके बाद छात्रा को करीब एक घंटे तक क्लास के बाहर खड़ा रखा गया। जब उसकी ड्रेस खराब हो गई तो उसे घर भेज दिया गया।
परिवार का आक्रोश और शिकायत दर्ज
इस घटना के बाद छात्रा के माता-पिता बेहद परेशान हो गए। उन्होंने मामले की शिकायत डिस्ट्रिक्ट इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स (DIOS) से की। इसके अलावा, वुमन एंड चाइल्ड वेल्फेयर डिपार्टमेंट और डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को भी शिकायत की कॉपी भेजी गई, ताकि इस पर सख्त कार्रवाई हो सके।
छात्रा के पिता ने कहा:
“मेरी बेटी परीक्षा देने गई थी, लेकिन जब वह घर लौटी तो उनकी बेटी स्कूल से खून से सनी ड्रेस में घर लौटी और मानसिक रूप से बहुत परेशान हो गई। वह बुरी हालत में थी। स्कूल में उसकी मदद करने के बजाय उसे बेइज्जत किया गया। इस घटना के बाद वह मानसिक तनाव में है और उसने स्कूल जाने से भी मना कर दिया है।”
जांच शुरू, प्रिंसिपल ने क्या कहा?
इस मामले पर DIOS अजीत कुमार ने कहा कि छात्रा के पिता की शिकायत मिली शिकायत दर्ज कर ली गई है और दो लोगों की टीम इसकी जांच करेगी। हमें यह भी जांच करनी होगी कि क्या स्कूल में सेनेटरी पैड उपलब्ध थे या नहीं। सरकार और सामाजिक संगठनों द्वारा छात्राओं को जागरूक करने के लिए कई अभियान चलाए जा रहे हैं, और सभी स्कूलों में पैड उपलब्ध कराने के निर्देश दिए गए हैं।”
जब यह मामला तूल पकड़ने लगा तो स्कूल की कार्यवाहक प्रिंसिपल रचना अरोरा ने सफाई देते हुए कहा:
“छात्रा ने पैड मांगा था ,मैंने स्कूल मैनेजमेंट को पहले ही सेनेटरी पैड्स की उपलब्धता के लिए कहा था। उस समय मैं कुछ जरूरी कामों में व्यस्त हो गई थी, इसलिए मैंने छात्रा से इंतजार करने के लिए कहा। लेकिन जब तक मैं फ्री हुई, तब तक वह घर जा चुकी थी।”
उत्तर प्रदेश सरकार का सेनेटरी पैड योजना – फिर भी छात्राओं को नहीं मिल रही सुविधा?
सितंबर 2024 में उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकारी स्कूलों में छात्राओं को सेनेटरी पैड उपलब्ध कराने के लिए ₹1.1 करोड़ के बजट के साथ एक नई योजना शुरू की थी। इसके तहत 535 स्कूलों की 36,772 छात्राओं को यह सुविधा दी जानी थी।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य, स्वच्छता और स्कूल में लड़कियों की उपस्थिति को बेहतर बनाना था। इसके लिए स्कूल प्रबंधन समितियों को पैड खरीदने और वितरित करने की जिम्मेदारी दी गई थी। लेकिन बरेली की इस घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या ये सुविधाएं वाकई छात्राओं तक पहुंच रही हैं, या फिर केवल कागजों तक ही सीमित हैं? ….यह भी पढ़े : पति-पत्नी के विवाद में राजस्थान के कोटा से रेलवे भर्ती में फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। पत्नी पर डमी कैंडिडेट से नौकरी हासिल करने का आरोप, रेलवे ने की सस्पेंड। जानिए पूरी खबर।
महिला संगठनों की प्रतिक्रिया
इस घटना पर मेरठ स्थित पंखुड़ी फाउंडेशन की डायरेक्टर पंखुड़ी ने कहा:
“लड़कियों को हर बार बेसिक हाइजीन के लिए शर्मिंदा होना पड़ता है। पीरियड्स एक नेचुरल प्रोसेस है और इस तरह किसी की गरिमा को ठेस पहुंचाना उसके अधिकारों का हनन है।”
समाज में जागरूकता और बदलाव की जरूरत
पीरियड्स कोई शर्म की बात नहीं है, यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। लेकिन आज भी कई स्कूलों में इसे एक टैबू माना जाता है और लड़कियों को मदद की बजाय शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है।
इस घटना ने दिखाया कि भले ही सरकार योजनाएं बना रही हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत में अभी भी बहुत सुधार की जरूरत है। सवाल यह है कि अगर एक स्कूल में छात्रा को सेनेटरी पैड नहीं मिल सकता, तो सरकार की योजनाएं कितनी कारगर हैं?
अब वक्त आ गया है कि स्कूलों में सिर्फ पढ़ाई ही नहीं, बल्कि जागरूकता और संवेदनशीलता भी सिखाई जाए।
अब देखना यह होगा कि इस मामले में जांच के बाद क्या कार्रवाई होती है और क्या वाकई स्कूल प्रशासन को इस मुद्दे की गंभीरता समझ में आती है या नहीं।