शिक्षा बनाम धर्म: सरकारों का दोहरा खेल और हमारी भविष्यहीन होती पीढ़ी

Zulfam Tomar
7 Min Read

(एक खुली और बेबाक बातचीत, इसको हम सीरिज़ में लिख रहे है )

अगर आप गौर करें तो जब भी देश में शिक्षा और बेरोजगारी जैसे गंभीर मुद्दों पर चर्चा शुरू होती है, अचानक धर्म, जाति या सांप्रदायिक मुद्दे उछाले जाने लगते हैं। ऐसा संयोग नहीं है, बल्कि योजनाबद्ध रणनीति है। जब पढ़े-लिखे लोग शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठाने लगते हैं, तब सरकारें एक तरफ दिखावे के लिए इस पर बयान देने लगती हैं और दूसरी तरफ, चुपके से धार्मिक एजेंडे को हवा देती हैं।

अब सवाल यह उठता है कि सरकारें ऐसा क्यों कर रही हैं?
क्या यह महज वोट बैंक की राजनीति है, या इसके पीछे कोई गहरी साजिश है?
और सरकारें सरकारी स्कूलों को क्यों बंद कर रही हैं?

चलिए, इस पूरे खेल को समझने की कोशिश करते हैं। (ये हमारी पॉइंट to पॉइंट सीरिज़ है )


1. शिक्षा के मुद्दे से ध्यान भटकाने की रणनीति

हर बार जब पढ़े-लिखे लोग या कोई जागरूक वर्ग शिक्षा, बेरोजगारी या स्वास्थ्य जैसे असली मुद्दों पर सरकार से सवाल करता है, तो तुरंत कोई नया धार्मिक या सांप्रदायिक विवाद सामने आ जाता है

  • कोई नेता बयान देता है जिससे धार्मिक भावनाएं भड़कें।
  • कोई पुरानी सांप्रदायिक घटना को फिर से उठाया जाता है।
  • धर्म और जाति के नाम पर दो पक्षों को लड़ाने की कोशिश होती है।

इसका मकसद साफ है – लोग शिक्षा और रोजगार पर ध्यान न दें, बल्कि आपस में लड़ते रहें।

जिनके पास सोचने-समझने की ताकत है (यानी पढ़े-लिखे लोग), अगर वे सवाल उठाएंगे तो सरकार पर दबाव पड़ेगा। लेकिन अगर बहुसंख्यक जनता सिर्फ धर्म और जाति में उलझी रहेगी, तो सरकारें बेफिक्र होकर अपने एजेंडे पर काम कर सकती हैं।


2. सरकारी स्कूल क्यों बंद किए जा रहे हैं?

हरियाणा, यूपी, एमपी और राजस्थान में सरकारी स्कूल क्यों बंद हो रहे हैं?

हाल ही में कई राज्यों में सैकड़ों सरकारी स्कूलों को या तो बंद कर दिया गया या प्राइवेट स्कूलों के साथ मर्ज कर दिया गया। सरकार ने वजह दी कि –

  1. सरकारी स्कूलों में बच्चे नहीं आ रहे।
  2. सरकार शिक्षकों को फ्री में वेतन दे रही है।
  3. शिक्षा बजट बढ़ रहा है, इसलिए खर्च कम करना जरूरी है।

लेकिन असल में मामला कुछ और ही है!

स्कूलों को बंद करने के पीछे छुपे असली कारण:

  1. सरकारी शिक्षा प्रणाली को कमजोर करना:
    • अगर सरकारी स्कूल अच्छे चलेंगे, तो गरीबों और मिडिल क्लास के बच्चे भी अच्छी पढ़ाई करेंगे।
    • इससे भविष्य में वे सवाल पूछने वाले नागरिक बनेंगे, जो सरकारों के लिए खतरनाक होगा।
  2. शिक्षा का निजीकरण:
    • स्कूल बंद करने का असली मकसद शिक्षा को पूरी तरह प्राइवेट हाथों में देना है।
    • इससे अमीरों को फायदा होगा और गरीबों को शिक्षा से वंचित किया जाएगा।
  3. बच्चों को शिक्षा से दूर रखना:

सरकारी स्कूल खाली क्यों हो रहे हैं?

  • सरकार खुद ही सरकारी स्कूलों की हालत खराब कर रही है –
    • शिक्षकों की भर्ती नहीं हो रही।
    • सुविधाएं नहीं दी जा रहीं।
    • स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता गिर रही है।
  • फिर जब स्कूल खाली होते हैं, तो सरकार कहती है – “स्कूल में बच्चे नहीं आ रहे, इसलिए इसे बंद करना पड़ेगा!”

यानी, पहले स्कूलों को जानबूझकर कमजोर करो, फिर बहाना बनाकर उन्हें बंद कर दो!


3. सरकारें तर्कशील शिक्षा को क्यों नहीं बढ़ा रहीं?

तर्कशील सोच यानी लोगों का विज्ञान, समाज और राजनीति को समझना और हर चीज पर सवाल करना। लेकिन सरकारें नहीं चाहतीं कि लोग तर्कशील बनें, क्योंकि – यह भी पढ़े : भारत में बेरोजगारी, शिक्षा की गिरती गुणवत्ता और बढ़ती अंधभक्ति: सच्चाई क्या है?

  1. अगर लोग तर्कशील बन गए, तो वे धर्म और जाति के झगड़ों से बाहर निकल जाएंगे।
  2. वे नेताओं के झूठे वादों पर सवाल पूछने लगेंगे।
  3. वे सरकार से शिक्षा और रोजगार की जवाबदेही मांगेंगे।

इसलिए सरकारें जानबूझकर शिक्षा को ऐसा बना रही हैं कि लोग सोचने की बजाय सिर्फ मानें।

  • अंधविश्वास बढ़ाने के लिए धार्मिक गुरुओं को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • सोशल मीडिया पर झूठे नैरेटिव फैलाए जा रहे हैं।
  • ऐसे इतिहास पढ़ाए जा रहे हैं, जिससे लोग वैज्ञानिक सोच से दूर रहें।

अगर सरकारें चाहें तो तर्कशील शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए ये कदम उठा सकती हैं:

  1. विज्ञान और लॉजिक बेस्ड शिक्षा अनिवार्य करें।
  2. सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों जितना बेहतर बनाएं।
  3. हर गरीब और अमीर को समान शिक्षा दें।

लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगी, क्योंकि इससे उनकी सत्ता कमजोर होगी!


4. समाधान क्या है?

अगर हमें इस शिक्षा विरोधी और तर्कहीन सोच को खत्म करना है, तो हमें खुद आगे आना होगा।

  1. सरकारी स्कूलों को बचाने के लिए लोगों को आवाज उठानी होगी।
  2. शिक्षा के निजीकरण का विरोध करना होगा।
  3. धर्म और जाति के मुद्दों में उलझने की बजाय सरकारों से असली मुद्दों पर सवाल पूछने होंगे।
  4. तर्कशील सोच को बढ़ावा देना होगा।

सरकारें धर्म के मुद्दों को हवा देती रहेंगी, ताकि हम आपस में ही उलझे रहें। लेकिन हमें यह समझना होगा कि अगर शिक्षा नहीं बची, तो आने वाली पीढ़ी सिर्फ गुलामी करने के लिए मजबूर होगी।

अब हमें तय करना है –
क्या हम शिक्षा और रोजगार की मांग करेंगे या धर्म और जाति के झगड़ों में उलझकर अपना भविष्य बर्बाद करेंगे?

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