सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को दी चेतावनी,तानाशाही मानसिकता को लेकर अफसरों की पत्नियों की सहकारी समितियों में परिवारिक नियुक्ति पर सवाल

उत्तर प्रदेश सरकार

UP News: उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है, जिसमें औपनिवेशिक मानसिकता और तानाशाही की प्रवृत्तियों को लेकर कड़ी टिप्पणी की गई है। यह आदेश राज्य के सहकारी समितियों में अफसरों की पत्नियों की तैनाती के संदर्भ में आया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे औपनिवेशिक सोच का प्रमाण बताया और कहा कि यह दमनकारी है।

उत्तर प्रदेश सरकार की नीति पर आपत्ति

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार के एक मामले की सुनवाई हुई, जिसमें राज्य के सहकारी समितियों में अधिकारियों की पत्नियों को पदेन नियुक्ति देने की प्रक्रिया पर आपत्ति जताई गई। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि राज्य के अधिकारियों की पत्नियों को सहकारी समितियों में ऐसे महत्वपूर्ण पदों पर तैनात करना औपनिवेशिक मानसिकता का उदाहरण है। कोर्ट ने सरकार से इस प्रक्रिया को तत्काल बदलने की सख्त सलाह दी।

यह मामला उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के जिलाधिकारी की पत्नी से जुड़ा था, जिन्हें जिला महिला समिति का पदेन अध्यक्ष बनाया गया था। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल मुनिया ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के वकील के. एम. नटराजन के तर्क को नकार दिया। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार को इस प्रकार के औपनिवेशिक नियमों से बाहर आना चाहिए और सहकारी समितियों के लिए आदर्श नियम तैयार करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और सरकार पर दबावsupreme-court-historic-order-uttar-pradesh-cooperative-society-family-appointments उत्तर प्रदेश सरकार,सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वे सभी सहकारी समितियां जो सरकार से किसी भी प्रकार के लाभ प्राप्त करती हैं, उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित आदर्श नियमों और उपनियमों का पालन करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर कोई भी सोसायटी इन नियमों का उल्लंघन करती है, तो उसकी वैधता समाप्त करने का प्रावधान होना चाहिए। इसके अलावा, अदालत ने राज्य सरकार से यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि प्रशासनिक अधिकारियों के परिवार के सदस्य केवल पदेन नियुक्ति के कारण किसी पद पर न बैठें।

कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार को अपनी नीति में आवश्यक संशोधन करने के लिए छह सप्ताह का समय दिया गया है और अगली सुनवाई में राज्य सरकार से एक प्रस्ताव पेश करने को कहा है।

सुप्रीम कोर्ट का उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ बढ़ता दबाव

यह कोई पहला मौका नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई हो। पिछले कुछ समय में अदालत ने राज्य सरकार के खिलाफ कई अहम फैसले दिए हैं, जो यह संकेत देते हैं कि सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकार के कामकाज को लेकर गंभीर सवाल उठा रहा है।

पिछले 20-25 दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ चार अहम आदेश जारी किए हैं। इनमें से एक महत्वपूर्ण आदेश तो उत्तर प्रदेश के बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने से संबंधित था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह जरूरी है कि किसी भी नागरिक की संपत्ति को उसके खिलाफ किसी आरोप के आधार पर ध्वस्त नहीं किया जा सकता। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस तरह के अवैध कदमों को रोकने के लिए उपयुक्त नियम और प्रक्रियाएं तैयार करे।

उत्तर प्रदेश पुलिस को भी मिली कड़ी फटकार

इसी हफ्ते 28 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस को भी कड़ी फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि पुलिस सत्ता का दुरुपयोग कर रही है और उसे संवेदनशील होने की जरूरत है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस को चेतावनी दी कि अगर कोई भी आरोपी पुलिस द्वारा मनमाने तरीके से प्रताड़ित होता है, तो कोर्ट सख्त कार्रवाई करेगा।

यह सब घटनाक्रम इस बात की ओर इशारा करता है कि सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार और उसकी एजेंसियों के कार्यों के प्रति सख्त रवैया अपनाए हुए है। इन फैसलों से यह स्पष्ट होता है कि अदालत संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए सरकारों पर कड़ी निगरानी रख रही है।

क्या सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार से नाराज है?

इन घटनाओं के बीच कई सवाल उठ रहे हैं कि क्या सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार से नाराज है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिए हैं, वह न केवल उत्तर प्रदेश सरकार के प्रशासनिक और न्यायिक रवैये पर सवाल उठा रहे हैं, बल्कि एक संदेश भी दे रहे हैं कि किसी भी सरकार को संविधान और लोकतांत्रिक मान्यताओं से परे जाकर काम करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

यह अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उद्देश्य राज्य सरकार की कार्यप्रणाली को सुधारने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है, ताकि कोई भी राज्य तानाशाही रवैया अपनाने की कोशिश न करे।

सुप्रीम कोर्ट का संज्ञान और भविष्य के कदम

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेशों में यह भी कहा कि यह विधायिका का काम है कि वह इन मुद्दों को संबोधित करे और राज्य के प्रशासनिक तंत्र में सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाए। अदालत ने यह भी कहा कि अगली सुनवाई में राज्य सरकार को अपने प्रस्ताव को पेश करना होगा, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि वह संविधान और न्याय की राह पर चलने के लिए तैयार है।

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