IVF आईवीएफ: एक कहानी जो विज्ञान से विश्वास तक पहुंची जानिए सब कुछ

IVF

कल्पना कीजिए, एक दंपति है जिनके लिए अपने घर में बच्चों की किलकारियां सुनना सबसे बड़ा सपना है। जो स्वाभाविक रूप से बच्चा नहीं पैदा कर पाते। IVF आईवीएफ (In Vitro Fertilization) एक तरीका है, जिससे उन जोड़ों को मदद मिलती है, जो स्वाभाविक रूप से बच्चा नहीं पैदा कर पाते।

वो सब तो ठीक है लेकिन यह आईवीएफ है क्या, और यह इतना खास क्यों है? इसे समझने के लिए हमें इसकी शुरुआत और ये काम कैसे करता है ? इसमे क्या क्या करना पड़ता है, इसमे कितना खर्च आ जाता है  सब कुछ आसान भाषा में समझाते है आर्टिकल थोड़ा लंबा है तो पूरा पढ़िए


आइए इतिहास पर नज़र डालते हैं:आईवीएफ की शुरुआत और इतिहास

IVF की नींव 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में रखी गई, जब वैज्ञानिक प्रजनन प्रक्रिया (जिसे आम बोलचाल की भाषा में “बच्चा पैदा करने की प्रक्रिया” या “संतान उत्पत्ति का तरीका” कहा जाता है।) को समझने की कोशिश कर रहे थे। अब आप सोचेंगे की ये कैसे , बच्चा और वो भी विज्ञानं से , हमने तो सुना था कि बच्चा तो GOD मतलब ईश्वर की मर्जी से होता है हां हां इसके पीछे भी विज्ञान ही है इसी विज्ञान को डॉ समझने की कोशिश कर रहे थे

तो जानिये बच्चा पैदा करने के लिए सबसे जरूरी चीज है अंडा (Egg) और शुक्राणु (Sperm) का मिलन।
आसान भाषा में समझें तो:

  1. अंडा (Egg): यह मां के शरीर से आता है। इसे बच्चा बनने की “बीज” की तरह समझ सकते हैं।
  2. शुक्राणु (Sperm): यह पिता के शरीर से आता है। इसे बीज को “जगाने वाला पानी” समझ सकते हैं।

जब ये दोनों चीजें आपस में मिलती हैं, तो एक नया जीवन शुरू होता है। इसे “भ्रूण” (Embryo) कहते हैं, जो मां के गर्भ में धीरे-धीरे बच्चा बनता है।

प्राकृतिक प्रक्रिया

अगर मां-पिता दोनों स्वस्थ हैं और उनके शरीर में ये दोनों चीजें ठीक से बन रही हैं, तो बच्चा प्राकृतिक तरीके से पैदा हो सकता है। लेकिन कभी-कभी:

  • मां के शरीर में अंडा नहीं बनता।
  • पिता के शरीर में शुक्राणु कमज़ोर या कम होते हैं।
  • अंडा और शुक्राणु मिल नहीं पाते।

जी हां, डॉक्टरों ने यही सोचा कि क्या हम विज्ञान की मदद से इस प्रक्रिया को लैब में कर सकते हैं? क्या हम शरीर के बाहर, यानी लैब में, प्रजनन कोशिकाओं (मां के अंडे और पिता के शुक्राणु) को मिलाकर भ्रूण तैयार कर सकते हैं?

जब प्राकृतिक तरीके से मां-बाप के अंडे और शुक्राणु नहीं मिल पाते या किसी वजह से बच्चा नहीं हो पाता, तो डॉक्टरों ने इसे विज्ञान के जरिए हल करने की कोशिश की।

डॉक्टरों ने सोचा:

  • अगर शरीर के अंदर यह प्रक्रिया नहीं हो पा रही, तो क्यों न इसे शरीर के बाहर, एक लैब में किया जाए?
  • उन्होंने मां के अंडे को निकालकर पिता के शुक्राणु से लैब में मिलाया।
  • जब दोनों का मिलन सही तरीके से हुआ, तो भ्रूण (बच्चे की शुरुआती स्थिति) बन गया। इसी सोच से IVF (इन विट्रो फर्टिलाइजेशन) की शुरुआत हुई
  • 1890 का दशक: पहली बार प्रजनन कोशिकाओं (स्पर्म और एग) को प्रयोगशाला में विकसित करने के प्रयास हुए।
  • 1934: जर्मन वैज्ञानिक ग्रेगोर पिंक्स ने यह साबित किया कि अंडाणु को लैब में विकसित किया जा सकता है।

2. पहला सफल IVF बेबी

  • 25 जुलाई, 1978: इंग्लैंड के लुईस ब्राउन दुनिया की पहली IVF बेबी बनीं।
    • यह सफलता डॉ. पैट्रिक स्टेप्टो और डॉ. रॉबर्ट एडवर्ड्स की मेहनत का नतीजा थी।
    • इसे “टेस्ट-ट्यूब बेबी” कहा गया, क्योंकि निषेचन (फर्टिलाइजेशन) लैब में किया गया था।

यह पहली बार था जब वैज्ञानिकों ने लैब में अंडे और शुक्राणु को मिलाकर भ्रूण बनाया और फिर इसके बाद इस भ्रूण को मां के गर्भ में वापस डाल दिया गया। इस तरीके से बच्चे का जन्म संभव हो पाया,


3. भारत में पहला IVF बेबी

  • 1978: भारत ने भी IVF तकनीक में कदम रखा।
  • भारत की पहली IVF बेबी दुर्गा (कनुप्रिया अग्रवाल) 1978 में पैदा हुईं।
    • यह सफलता डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय की मेहनत का परिणाम थी।
    • हालांकि, उनकी खोज को शुरुआती दिनों में सराहा नहीं गया, लेकिन बाद में इसे एक ऐतिहासिक उपलब्धि माना गया।

4. IVF का विकास

IVF प्रक्रिया समय के साथ और परिष्कृत हुई। अब इसे कई अन्य समस्याओं के इलाज के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है, जैसे:

  • ICSI (Intracytoplasmic Sperm Injection): शुक्राणु की कमी के मामलों में।
  • Egg Freezing: महिलाएं भविष्य में गर्भधारण के लिए अंडाणु संरक्षित कर सकती हैं।
  • Donor Eggs/Sperms: जब किसी व्यक्ति के अंडाणु या शुक्राणु उपयोगी न हों।
  • Surrogacy: जब महिला गर्भधारण करने में असमर्थ हो।

5. आज IVF कहां है?

आज, IVF तकनीक लाखों परिवारों के लिए वरदान बन चुकी है:

  • 8 मिलियन से ज्यादा बच्चे IVF तकनीक से पैदा हो चुके हैं।
  • IVF प्रक्रिया को अब सस्ती और आसान बनाने की कोशिश हो रही है, ताकि यह आम आदमी की पहुंच में आ सके।

6. IVF का महत्व क्यों बढ़ा?

  • प्रजनन क्षमता में गिरावट: आजकल तनाव, खराब जीवनशैली और पर्यावरणीय कारणों से कई दंपतियों को प्रजनन संबंधी समस्याएं हो रही हैं।
  • उम्र का बढ़ना: कई लोग शादी या बच्चे के लिए देर से फैसला करते हैं।
  • विज्ञान की प्रगति: तकनीक और शोध ने इसे पहले से बेहतर और प्रभावी बनाया है।

 


आईवीएफ क्यों शुरू हुआ?

प्राकृतिक तरीके से संतान न होने के कई कारण हो सकते हैं:

  1. महिलाओं में अंडाशय से जुड़ी समस्याएं (जैसे अंडे का न बनना या फैलोपियन ट्यूब का बंद होना)।
  2. पुरुषों में शुक्राणु की कमी या कमजोरी।
  3. अनजान कारण जिनका मेडिकल जांच से पता नहीं चल पाता।

आईवीएफ ने इन सभी समस्याओं का समाधान देने का प्रयास किया। यह तकनीक उन दंपतियों के लिए एक वरदान है, जो सालों से संतान प्राप्ति के लिए तरस रहे हैं।


आईवीएफ प्रक्रिया को सरल भाषा में समझें

आईवीएफ के तकनीकी पहलुओं को आसानी से समझाने के लिए इसे 5 चरणों में बांटा जा सकता है:

  1. डिम्ब उत्प्रेरण (Egg Stimulation):
    • महिला को दवाइयां दी जाती हैं ताकि अंडाशय (ओवरी) से ज्यादा अंडे बन सकें।
    • सामान्यतः हर महीने एक अंडा बनता है, लेकिन आईवीएफ में कई अंडे बनाए जाते हैं।
  2. अंडे निकालना (Egg Retrieval):
    • एक छोटी सर्जरी के जरिए महिला के अंडाशय से अंडे निकाले जाते हैं।
  3. शुक्राणु संग्रह (Sperm Collection):
    • पुरुष के शुक्राणु को लिया जाता है। अगर शुक्राणु कम हों तो डोनर के शुक्राणु का इस्तेमाल किया जाता है।
  4. प्रजनन (Fertilization):
    • अंडे और शुक्राणु को लैब में मिलाया जाता है, जिससे भ्रूण (Embryo) बनता है।
  5. भ्रूण प्रत्यारोपण (Embryo Transfer):
    • तैयार भ्रूण को महिला के गर्भाशय (यूटरस) में डाल दिया जाता है।
    • इसके बाद 2-3 हफ्ते इंतजार किया जाता है कि महिला गर्भवती हुई है या नहीं।
    • कहानी से समझते हैं आईवीएफ की पूरी प्रक्रियाIVF

      मान लीजिए, एक दंपत्ति हैं – राम और सिमा। इन दोनों की शादी को कई साल हो गए, लेकिन सिमा के गर्भवती होने में कोई सफलता नहीं मिल रही थी। बहुत कोशिशों के बाद, वे आईवीएफ का रास्ता अपनाने का फैसला करते हैं।

      आईवीएफ की पूरी प्रक्रिया को 4 स्टेप्स में बांट सकते हैं:

      1. ओवरी (अंडाशय) को तैयार करना

      पहला कदम है, महिला के शरीर को तैयार करना। इसके लिए सिमा को कुछ दवाइयाँ दी जाती हैं ताकि उसके अंडाशय में ज्यादा अंडे बन सकें। आमतौर पर हर महीने महिला के शरीर में एक अंडा बनता है, लेकिन आईवीएफ में डॉक्टर चाहते हैं कि कई अंडे बनें ताकि उनमें से कुछ अच्छे अंडे निकल सके। ये दवाइयाँ कुछ दिनों तक दी जाती हैं और महिला का ख्याल रखा जाता है।

      2. अंडे निकालना (Egg Retrieval)

      जब डॉक्टर को लगता है कि अंडे तैयार हो गए हैं (यह आमतौर पर 10 से 15 दिन बाद होता है), तो महिला के अंडाशय से अंडे निकाले जाते हैं। इसे “अंडे निकालना” (Egg Retrieval) कहते हैं। यह प्रक्रिया बहुत ही साधारण होती है, इसमें महिला को हल्का सा नशा दिया जाता है, ताकि दर्द महसूस न हो। डॉक्टर एक पतली सी सुई के जरिए महिला के अंडाशय से अंडे निकालते हैं।

      यह प्रक्रिया 15-20 मिनट में पूरी हो जाती है और महिला को घर जाने के लिए कह दिया जाता है।

      3. शुक्राणु (Sperm) से अंडे का मिलना (Fertilization)

      अब, जो अंडे निकाले गए हैं, उन अंडों को लैब में रखा जाता है। इसी दौरान, पुरुष का शुक्राणु (Sperm) लिया जाता है। अगर पुरुष का शुक्राणु ठीक से काम नहीं करता, तो डोनर का शुक्राणु भी लिया जा सकता है।
      शुक्राणु और अंडे को एक साथ मिलाकर डॉक्टर्स लैब में भ्रूण बनाने की कोशिश करते हैं। यह प्रक्रिया “फर्टिलाइजेशन” कहलाती है।

      अगर अंडे और शुक्राणु का मिलन सफल होता है, तो वे एक भ्रूण (Embryo) बनाएंगे, जो धीरे-धीरे बढ़ने लगेगा। अब, डॉक्टर के पास यह भ्रूण होता है, और वह अगले कदम के लिए तैयार होता है।

      4. भ्रूण का गर्भाशय में डाला जाना (Embryo Transfer)

      जब भ्रूण तैयार हो जाता है, तब इसे महिला के गर्भाशय में डाला जाता है। यह प्रक्रिया बहुत सरल और दर्द रहित होती है। इसमें डॉक्टर एक पतली सी ट्यूब (Catheter) का इस्तेमाल करते हैं, जिससे भ्रूण को महिला के गर्भाशय में डाला जाता है। यह प्रक्रिया आमतौर पर बहुत ही आरामदायक होती है और महिला को इसमें किसी प्रकार का दर्द नहीं होता।

      5. गर्भवती होने का इंतजार

      अब, महिला को कुछ दिन आराम करने के लिए कहा जाता है। इस बीच, वह नियमित रूप से डॉक्टर से चेकअप कराती रहती है। कुछ हफ्तों बाद, डॉक्टर महिला का गर्भावस्था टेस्ट करते हैं। अगर भ्रूण गर्भाशय में ठीक से लग गया है, तो महिला गर्भवती हो जाती है। अगर यह प्रक्रिया सफल नहीं होती, तो डॉक्टर इसे फिर से करने का सुझाव दे सकते हैं।


अच्पुछा ठीक है ये तो समझ आ गया लेकिन ये बताइये कि पुरुष के शुक्राणु कैसे लिए जाते हैं – इसको भी आसान भाषा में समझते है 

आईवीएफ प्रक्रिया में महिला के अंडे के साथ पुरुष के शुक्राणु का मिलन जरूरी होता है। अब, सवाल ये उठता है कि पुरुष के शुक्राणु कैसे लिए जाते हैं?

1. पुरुष से शुक्राणु कैसे निकाले जाते हैं?

शुक्राणु निकालने की प्रक्रिया बहुत ही साधारण और किसी तरह के डर की बात नहीं है। इसमें पुरुष को डॉक्टर के पास जाना होता है, जहां वह एक प्राइवेट और आरामदायक कमरे में जाएंगे। इस कमरे में एक कप या छोटा कंटेनर दिया जाता है, जिसमें पुरुष को अपना शुक्राणु इकट्ठा करना होता है।

यह प्रक्रिया सामान्य रूप से हस्तमैथुन (Masturbation) द्वारा की जाती है। यानी, पुरुष खुद से अपने शुक्राणु का सैंपल इकट्ठा करता है। यह कमरे पूरी तरह से प्राइवेट होते हैं और बहुत आरामदायक होते हैं, ताकि पुरुष को कोई शर्म या असुविधा न हो।

रुकिए अब आप पूछेंगे कि अगर कोई पुरुष किसी धार्मिक, सांस्कृतिक, या व्यक्तिगत कारण से हस्तमैथुन नहीं करना चाहता, तो हाँ, पुरुष का शुक्राणु बिना हस्तमैथुन (masturbation) के भी निकाला जा सकता है। इसके लिए कुछ अन्य तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जो मेडिकल प्रॉसेस के जरिए पूरी की जाती हैं।

1. टीईएसए (TESA)Testicular Sperm Aspiration

अगर पुरुष का शुक्राणु खुद से बाहर नहीं आ पा रहा है या किसी कारण से वह देना नहीं चाहते, तो डॉक्टर एक पतली सी सुई की मदद से उनके शरीर के अंदर से सीधे शुक्राणु निकाल लेते हैं। यह प्रक्रिया वृषण (यानी अंडकोष) से की जाती है। इसमें दर्द नहीं होता क्योंकि डॉक्टर इसके लिए सुन्न करने की दवा लगाते हैं।


2. पीईएसए (PESA) Percutaneous Epididymal Sperm Aspiration

इसमें भी सुई का इस्तेमाल होता है, लेकिन फर्क यह है कि शुक्राणु को अंडकोष के पास जमा हुई जगह से खींचकर निकाला जाता है। यह तरीका उन लोगों के लिए होता है जिनके शुक्राणु बाहर नहीं आ पा रहे हैं लेकिन शरीर के अंदर सुरक्षित हैं।


3. माइक्रो-टीईएसई (Micro-TESE)

यह तरीका तब अपनाया जाता है जब शुक्राणु की मात्रा बहुत कम होती है। इसमें डॉक्टर माइक्रोस्कोप की मदद से अंडकोष की अंदरूनी परतों को थोड़ा खोलकर वहां से शुक्राणु निकालते हैं। यह थोड़ा ज्यादा सावधानी से की जाने वाली प्रक्रिया है।


4. यूरिन सैंपल से शुक्राणु निकालना(Urine Sample)

कुछ पुरुष वीर्य (स्पर्म) बाहर निकालने की बजाय स्खलन (ejaculation) के समय पेशाब में ही शुक्राणु छोड़ देते हैं। ऐसे में डॉक्टर पेशाब का सैंपल लेकर उसमें से शुक्राणु अलग कर लेते हैं।


5. कंडोम के जरिए

अगर पुरुष वीर्य स्खलन (ejaculation) करना चाहते हैं लेकिन हस्तमैथुन नहीं करना चाहते, तो वे संबंध बनाते समय एक खास तरह के कंडोम का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें शुक्राणु को सुरक्षित रखा जाता है और डॉक्टर इसे बाद में प्रयोग के लिए निकाल सकते हैं।

पुरुष का शुक्राणु निकालने के कई तरीके होते हैं, जो इस बात पर निर्भर करते हैं कि समस्या क्या है और पुरुष किस तरह से शुक्राणु देना चाहते हैं। डॉक्टर की सलाह और सहूलियत के आधार पर इनमें से किसी भी तरीके को चुना जा सकता है। हर तरीके को आरामदायक और कम दर्द वाला बनाने की पूरी कोशिश की जाती है।

2. शुक्राणु का सैंपल कैसे इकट्ठा होता है?

पुरुष को अपनी वीर्य (Semen) का सैंपल एक स्टेराइल कंटेनर (Sterile Container) में इकट्ठा करना होता है। इसके लिए किसी प्रकार की विशेष तैयारी की जरूरत नहीं होती, बस पुरुष को खुद से शुक्राणु को इकट्ठा करना होता है। सैंपल के लिए सही तरीका यह है कि उसे जल्दी से जल्दी जमा किया जाए ताकि शुक्राणु पूरी तरह से स्वस्थ और सक्रिय रहें।

3. शुक्राणु की जांच और संग्रहण

जब सैंपल इकट्ठा किया जाता है, तो उसे तुरंत लैब में भेजा जाता है। लैब में डॉक्टर यह चेक करते हैं कि शुक्राणु स्वस्थ हैं या नहीं। अगर शुक्राणु की संख्या या गुणवत्ता ठीक नहीं होती, तो डॉक्टर कुछ खास उपचार की सलाह दे सकते हैं।

अगर पुरुष का शुक्राणु ठीक से काम नहीं करता (जैसे शुक्राणु की संख्या कम होना, या उसकी गति धीमी होना), तो डॉक्टर शुक्राणु को इकट्ठा करने के लिए अन्य तरीकों का सहारा भी ले सकते हैं, जैसे:

  • शुक्राणु का संग्रहण: कभी-कभी पुरुष से शुक्राणु का सैंपल पहले से ही इकट्ठा कर लिया जाता है, ताकि अगर बाद में सैंपल एकत्र करने में कोई समस्या हो तो उसका इस्तेमाल किया जा सके।
  • साइकीलोलॉजिकल सहायता: अगर किसी पुरुष को मानसिक कारणों से शुक्राणु एकत्र करने में परेशानी हो, तो डॉक्टर सलाह दे सकते हैं कि वह साइकीलॉजिकल मदद लें।

4. क्या होता है अगर पुरुष का शुक्राणु नहीं होता?

अगर किसी पुरुष का शुक्राणु नहीं होता (जो बहुत कम होता है), तो डॉक्टरों के पास कुछ विकल्प होते हैं। अगर शुक्राणु बहुत कम हो या उसका मार्ग बंद हो, तो डॉक्टर सीधे पुरुष के अंडकोष (Testicles) से शुक्राणु निकाल सकते हैं। इसे “टीसीएसए” (TESA) कहा जाता है। इसमें डॉक्टर अंडकोष से सीधे शुक्राणु निकालते हैं, जो बाद में आईवीएफ प्रक्रिया में इस्तेमाल होते हैं।

5. शुक्राणु का चयन और प्रयोग

एक बार जब शुक्राणु की जांच हो जाती है और यह सुनिश्चित हो जाता है कि वह स्वस्थ हैं, तो डॉक्टर उसे महिला के अंडे के साथ मिलाने के लिए लैब में रखते हैं। इस प्रक्रिया को “फर्टिलाइजेशन” (Fertilization) कहा जाता है।

अब, कुछ मामलों में जब शुक्राणु की संख्या कम होती है, तो डॉक्टर शुक्राणु को सीधे अंडे में डालने की प्रक्रिया करते हैं, जिसे “ICSI” (Intracytoplasmic Sperm Injection) कहा जाता है। इसमें एक शुक्राणु को सीधे अंडे में डाला जाता है ताकि उसका मिलन हो सके।

आईवीएफ के पात्र कौन हैं?

आईवीएफ हर किसी के लिए नहीं होता। यह उन दंपतियों के लिए है, जो:

  1. कई सालों से संतान प्राप्ति में असमर्थ हैं।
  2. महिलाओं में फैलोपियन ट्यूब ब्लॉक हैं।
  3. पुरुषों में शुक्राणु की कमी है।
  4. जेनेटिक बीमारियों से बचने के लिए।
  5. सरोगेसी या डोनर प्रक्रिया का सहारा ले रहे हैं।

अच्छा ठीक है ये तो समझ आ गया लेकिन खर्च कितना आएगा ये तो बताइये ,,,, आईवीएफ (IVF) की प्रक्रिया का खर्च भारत और विदेश में विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि क्लिनिक की साख, इलाज की जटिलता, डॉक्टर की फीस, दवाइयां और अन्य सेवाएं। आइए, इसे समझते हैं:

1. भारत में IVF का खर्च

भारत में IVF की प्रक्रिया का खर्च आमतौर पर निम्नलिखित होता है:

  • IVF की बेसिक कीमत: भारत में सामान्य IVF का खर्च ₹1,00,000 से ₹2,50,000 तक हो सकता है। इसमें डॉक्टर की फीस, क्लिनिक की फीस, दवाइयां, अंडे-शुक्राणु की प्रक्रिया (अगर ज़रूरत हो) और अन्य बुनियादी सेवाएं शामिल होती हैं।
  • ICSI (Intracytoplasmic Sperm Injection): अगर शुक्राणु की संख्या कम होती है और आईसीएसआई की आवश्यकता होती है, तो इसमें ₹1,50,000 से ₹3,00,000 तक का खर्च हो सकता है।
  • Egg Donation (अगर अंडे का दान किया जाता है): अगर महिला को अपने अंडे इस्तेमाल करने में समस्या होती है और दान के अंडे की जरूरत होती है, तो इसमें ₹2,00,000 से ₹3,50,000 तक खर्च हो सकता है।
  • Donor Sperm (अगर शुक्राणु का दान किया जाता है): शुक्राणु का दान लेने पर ₹50,000 से ₹1,00,000 का खर्च आ सकता है।
  • Medications (दवाइयां): IVF प्रक्रिया में दवाइयों का खर्च ₹30,000 से ₹60,000 तक हो सकता है।

भारत में IVF प्रक्रिया की कुल लागत:

आमतौर पर ₹1,00,000 से ₹3,50,000 तक का खर्च आ सकता है, लेकिन यह लागत कई कारकों पर निर्भर करती है।


2. विदेश में IVF का खर्च

IVF की प्रक्रिया विदेश में अधिक महंगी हो सकती है। यहां कुछ प्रमुख देशों के खर्च का अनुमान दिया गया है:

  • अमेरिका: अमेरिका में IVF की प्रक्रिया का खर्च ₹4,50,000 से ₹8,00,000 तक हो सकता है। इसमें दवाइयां, डॉक्टर की फीस, क्लिनिक की फीस और अन्य आवश्यक सेवाएं शामिल होती हैं।
  • यूके: यूके में IVF का खर्च ₹3,00,000 से ₹6,00,000 तक हो सकता है।
  • ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया में IVF की प्रक्रिया ₹2,50,000 से ₹5,00,000 तक हो सकती है।
  • यूएई (दुबई): दुबई में IVF का खर्च ₹3,00,000 से ₹5,50,000 तक हो सकता है।
  • थाईलैंड: थाईलैंड में IVF की प्रक्रिया ₹2,00,000 से ₹4,00,000 तक हो सकती है।

ये सारी चीजे तो समझ में आ गयी अब ये भी जान लीजिये कि इसमे धोखाधड़ी भी होती है यह भी पढ़े : IVF स्कैंडल: 40 साल बाद DNA टेस्ट से खुला धोखाधड़ी का राज, डॉक्टर पर मेडिकल रेप का केस, 16 भाई-बहनों का चौंकाने वाला सच

आईवीएफ में धोखाधड़ी कैसे हो सकती है?

जैसे-जैसे यह तकनीक लोकप्रिय हुई, वैसे-वैसे इसमें धोखाधड़ी के मामले भी सामने आने लगे।

  1. गलत शुक्राणु या अंडे का इस्तेमाल:
    • कई बार डॉक्टर मरीज की जानकारी के बिना किसी और का स्पर्म या अंडा इस्तेमाल कर लेते हैं।
    • हाल ही में कैलिफोर्निया का मामला सुर्खियों में था, जहां डॉक्टर ने कई मरीजों के साथ ऐसा किया।
  2. भ्रूण बदलने के मामले:
    • भ्रूण बदलने या गलत भ्रूण प्रत्यारोपण की घटनाएं भी सामने आई हैं।
  3. डोनर की गलत जानकारी:
    • कई बार डोनर की पूरी जानकारी नहीं दी जाती।
  4. अत्यधिक चार्ज:
    • आईवीएफ प्रक्रिया महंगी होती है। कुछ अस्पताल और डॉक्टर इसका फायदा उठाकर जरूरत से ज्यादा पैसे वसूलते हैं।

आईवीएफ में पारदर्शिता और सावधानी जरूरी है

आईवीएफ का उद्देश्य लोगों को संतान सुख देना है, लेकिन इसमें पारदर्शिता और नैतिकता का पालन करना बेहद जरूरी है।

  1. सही जानकारी प्राप्त करें:
    • हमेशा प्रमाणित आईवीएफ सेंटर और अनुभवी डॉक्टर का चयन करें।
  2. डोनर का रिकॉर्ड चेक करें:
    • अगर डोनर स्पर्म या अंडा इस्तेमाल हो रहा है, तो उसकी पूरी जानकारी लें।
  3. लिखित सहमति लें:
    • हर प्रक्रिया के लिए डॉक्टर से लिखित सहमति और रिपोर्ट मांगें।

आईवीएफ: विज्ञान का वरदान, पर जिम्मेदारी भी जरूरी

आईवीएफ ने लाखों दंपतियों के जीवन में खुशी लाई है। यह उन लोगों के लिए एक नई उम्मीद है, जिनके लिए संतान का सपना अधूरा रह गया था। लेकिन इस तकनीक का सही इस्तेमाल होना उतना ही जरूरी है।

आईवीएफ का मतलब सिर्फ एक मेडिकल प्रक्रिया नहीं, बल्कि विश्वास, पारदर्शिता और विज्ञान की जिम्मेदारी है। अगर सही तरीके से किया जाए, तो यह वाकई चमत्कार से कम नहीं।

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