क्या यह महज दिखावा है या इसके पीछे छिपा है कोई राजनीतिक निहितार्थ?
मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद वाले बयान पर बहस: क्या है असली वजह?
RSS प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान ने देश में एक नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने 19 दिसंबर को पुणे में आयोजित ‘हिंदू सेवा महोत्सव‘ के दौरान कहा कि मंदिर-मस्जिद के मुद्दों को बार-बार उठाना ठीक नहीं है। उन्होंने इस माहौल पर चिंता जाहिर करते हुए कहा, “तिरस्कार और शत्रुता के लिए हर रोज नए प्रकरण निकालना ठीक नहीं है और ऐसा नहीं चल सकता।” उन्होंने कहा कि राम मंदिर के साथ हिंदु समाज की श्रद्धा जुड़ी है लेकिन राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वो नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दों को उठाकर हिंदुओं का नेता बन सकते हैं. ये स्वीकार्य नहीं है.” भागवत का यह बयान तब आया जब उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में मस्जिदों को प्राचीन मंदिरों के रूप में प्रस्तुत करने का मुद्दा तूल पकड़ रहा है।
भागवत ने यह बात एक ऐसे समय पर कही है, उपासना स्थल अधिनियम 1991 पर चल रही बहस के बीच जब देश में मथुरा, काशी, अजमेर और संभल जैसे स्थानों पर मस्जिदों के प्राचीन मंदिर होने का दावा किया जा रहा है। इस तरह के दावों के बीच, भागवत ने एक बार फिर मंदिर-मस्जिद के विवादों को समाप्त करने की बात कही। उनका कहना था कि अब इस तरह के मुद्दों पर बहस नहीं होनी चाहिए और इसका राजनीतिक इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। अब आप बोलोगे कि ये तो बहुत अच्छी बात है ये तो सबको मानना चाहिए इससे विवाद खत्म हो जायेगा , हाँ अच्छी बात तो है लेकिन बात इतनी सिंपल नही है
मुस्लिम समाज और राजनीतिक नेताओं का स्वागत, लेकिन ‘सो कॉल्ड’ हिंदुत्ववादी क्या कह रहे हैं?
भागवत के इस बयान का मुस्लिम समाज के धार्मिक गुरुओं और कुछ राजनीतिक नेताओं, बुद्दिजीवी वर्ग ने स्वागत किया है। उनका मानना है कि इस तरह के बयान से साम्प्रदायिक तनाव कम होगा और समाज में शांति बनी रहेगी। लेकिन वहीं, कुछ ‘सो कॉल्ड’ हिंदुत्ववादी नेताओं और संतों ने इस बयान का विरोध किया है। वे इसे हिंदू धार्मिक मुद्दों से समझौता करने जैसा मानते हैं, और इसे अपनी राजनीतिक शक्ति को कमजोर करने की कोशिश समझते हैं।
लेकिन सवाल उठता है: क्या यह सिर्फ एक दिखावा है, या इसके पीछे कोई राजनीतिक उद्देश्य छिपा हुआ है? क्या आरएसएस अपनी छवि को सुधारने के लिए यह कदम उठा रहा है, या यह समाज को गुमराह करने की एक चाल है ताकि लोग इसे सही ठहराएं और समर्थन दें?
राजनीतिक गलियारों में खींचतान: आलोचकों का क्या कहना है?
भागवत के बयान पर राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मच गई है। कई आलोचक मानते हैं कि यह बयान आरएसएस और भाजपा की अंदरूनी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। उनका कहना है कि चुनावी स्थिति में हिंदू मतदाताओं को अपनी तरफ करने के लिए ऐसे बयान दिए जा रहे हैं, जबकि वास्तविकता में समाज में साम्प्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देने की कोशिश की जा रही है।
लेकिन बयान का स्वागत के साथ ही जो लोग पत्रकार , लेख़क और नेता बुद्धिजीवी वर्ग जो RSS और बीजेपी को जानते है वो मोहन भागवत के इस बयान पर सवाल भी उठा रहे हैं, उनका कहना है कि यह एक प्रकार का राजनीतिक खेल है, जिसे केवल समाज की भावनाओं से खेलकर अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। इन आलोचकों का मानना है कि आरएसएस इस बयान के माध्यम से अपनी छवि को सुधारने की कोशिश कर रहा है, ताकि आम लोगों में यह संदेश जाए कि संघ और भाजपा समाज में सभी धर्मों, जातियों और वर्गों को साथ लेकर चल रहा हैं।
क्या मोहन भागवत के बयान के पीछे कोई छिपी राजनीति है?
यहां एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या मोहन भागवत वास्तव में अपने संगठन की दिशा बदलने की नसीहत दे रहे हैं? क्या वे चाहते हैं कि आरएसएस अपने पुराने हिंदुत्ववादी विचारों को छोड़कर एक नया रास्ता अपनाए, जो सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान दर्शाता हो? या फिर यह केवल एक रणनीतिक कदम है, ताकि आरएसएस और भाजपा अपने समर्थकों को यह दिखा सकें कि वे समाज में शांति और समरसता की दिशा में काम कर रहे हैं?
मोहन भागवत के बयान पर कई साधु-संतों ने सवाल उठाए हैं।
स्वामी रामभद्राचार्य ने ANI से बात करते हुवे कहा कि मोहन भागवत का यह बयान उनका व्यक्तिगत विचार हो सकता है, लेकिन ये सभी हिंदू धर्म का बयान नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि भागवत हिंदू धर्म के प्रमुख नहीं हैं, वे सिर्फ एक संगठन के प्रमुख हैं और उनकी बात मानना जरूरी नहीं है। हिंदू धर्म की व्यवस्था धर्म के आचार्यों के हाथ में है, ना कि मोहन भागवत के हाथ में। और हिन्दू धर्म का आचार्य मैं हूँ ,मैं हूँ इसलिए हिन्दू धर्म पर मेरा अनुशासन मेरा होगा ,और हम अपने अधिकार के लिए संघर्ष करते रहेंगे
वहीं, शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने ABP से बात करते हुवे कहा कि जो लोग आज कह रहे हैं कि अब इस मुद्दे को ज्यादा नहीं उठाना चाहिए, वही लोग पहले इसे बढ़ाकर सत्ता में आए थे। अब सत्ता में आने के बाद उन्हें मुश्किलें आ रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह न सही है कि जब जरूरत हो तो बात बढ़ा दो और जब चाहिए तो इसे रोक दो। न्याय की प्रक्रिया को इस तरह से नहीं चलाया जा सकता, उसे सच्चाई देखनी चाहिए।
बाबा रामदेव ने PTI से बात करते हुवे इस पर अपनी राय दी। उन्होंने कहा कि यह सच है कि आक्रांताओं ने हमारे मंदिरों और धर्मस्थलों को नुकसान पहुंचाया और देश को नुकसान किया। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग यह सब करने वाले थे, उन्हें न्यायिक रूप से सजा मिलनी चाहिए, ताकि उन्हें इसका परिणाम भुगतना पड़े।
दो साल पहले भी मोहन भागवत ने कहा था कि हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढने की ज़रूरत नहीं है। ये पहली बार नहीं है जब उन्होंने हिंदू-मुसलमानों को साथ लेकर चलने और मस्जिदों में मंदिर ना ढूंढने की सलाह दी है।
2022 में नागपुर में भागवत ने कहा था, “इतिहास वो है जिसे हम बदल नहीं सकते। इसे न आज के हिंदुओं ने बनाया है और न ही आज के मुसलमानों ने। हर मस्जिद में शिवलिंग क्यों ढूंढना… अब कोई आंदोलन करने की ज़रूरत नहीं है।”
2024 में लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने कहा था कि जो मर्यादा में रहकर काम करता है और अहंकार नहीं करता, वही असली सेवक कहलाने लायक है। तब उनके बयान को बीजेपी के अंदर के अहंकार पर कटाक्ष माना गया था। उस समय भी कहा गया की क्या बीजेपी और आरएसएस में अनबन चल रही है
इस बार उनके बयान को राजनीतिक विश्लेषक अलग तरीके से देख रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता का मानना है कि उन्होंने इस बार सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा है। उनका कहना है, “भागवत का ये कहना कि राम मंदिर के बाद लोग राजनीति करके हिंदुओं का नेता बनना चाहते हैं, एक बड़ा कटाक्ष है। और उनके खिलाफ जो आलोचना हो रही है, वो यूं ही नहीं है। ये या तो बीजेपी नेताओं के इशारे पर हो रहा है या फिर उन लोगों का काम है जो मोदी पर कटाक्ष सहन नहीं कर सकते।”
पत्रकार अशोक वानखेड़े, जो लंबे समय से संघ पर लिखते रहे हैं, कहते हैं, “जो आलोचना हो रही है, वो दिल्ली से इशारा मिलकर ही हो रही है। अगर यही बात नरेंद्र मोदी ने कही होती, तो क्या ऐसी ही प्रतिक्रिया होती? ये साफ है कि यह मोहन भागवत और दिल्ली की सत्ता के बीच एक टकराव है।”
दूसरी तरफ,पत्रकार विजय त्रिवेदी, जिन्होंने आरएसएस पर किताब लिखी है, मानते हैं कि भागवत के बयान का मतलब है कि उन्हें देश में जो चल रहा है, वो पसंद नहीं आ रहा। वे कहते हैं, “नरेंद्र मोदी से उनकी कोई सीधी लड़ाई नहीं दिखती। उनके बयान को गलत समझना ठीक नहीं है। वो लंबे समय से कह रहे हैं कि हिंदू-मुसलमानों को साथ लेकर चलना चाहिए।”
त्रिवेदी यह भी कहते हैं, “ये बयान उनका अच्छा बनने की कोशिश नहीं है। बल्कि ये उन लोगों के लिए है जो समाज में नफरत फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।”
क्या अब बीजेपी और RSS के बीच कोई टकराव चल रहा है ?
हाल के दिनों में ऐसा कहा जा रहा है कि संघ और मोदी सरकार के बीच मतभेद बढ़ रहे हैं। लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान भी बीजेपी और संघ के बीच तनातनी की खबरें आई थीं।
चुनाव प्रचार के शुरुआती चरणों के बाद बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अब बीजेपी को संघ की ज़रूरत नहीं है। इस बयान ने संघ में हलचल मचा दी। वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े के मुताबिक, इस बयान के बाद मोहन भागवत का रवैया काफी आक्रामक हो गया था।
वानखेड़े कहते हैं, “संघ हमेशा बीजेपी पर हावी रहा है। अटल बिहारी वाजपेयी के समय में भी ऐसा ही था। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। अब पार्टी और सरकार दोनों का कंट्रोल एक ही व्यक्ति के हाथ में है। ये संघ के लिए चिंता की बात है। उन्हें लगता है कि कहीं उनका प्रभाव खत्म न हो जाए।”
उनका यह भी कहना है कि मोहन भागवत जो भी बोलते हैं, वह पूरी रणनीति और गहराई से सोचने के बाद होता है। लेकिन इस बार ऐसा लग रहा है कि उनकी बातों को चुनौती दी जा रही है।
अशोक वानखेड़े ने कहा, “पहले जो धर्म संसद और अखाड़े होते थे, उनके पीछे संघ की विचारधारा होती थी। लेकिन अब धर्मगुरु कह रहे हैं कि संघ हमारा अनुशासक नहीं है, बल्कि हम उनके अनुशासक हैं। ये संघ के लिए बड़ा झटका है।”
दूसरी तरफ वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता का मानना है कि संघ में भी कई लोग अब नरेंद्र मोदी का समर्थन कर रहे हैं और मोहन भागवत को पीछे छोड़ रहे हैं।
गुप्ता ने कहा, “संघ का मुखपत्र पांचजन्य इस बार अपने ही प्रमुख के खिलाफ खड़ा दिख रहा है। इसमें लिखा गया है कि जहां भी हिंदू धर्म के प्रतीक या मंदिर तोड़े गए हैं, उन्हें वापस लेना जरूरी है। अगर संघ का अपना मुखपत्र मोहन भागवत के विचारों से अलग राय रखता है, तो इसे क्या माना जाएगा?”
गुप्ता यह भी कहते हैं कि संघ के अंदर अब ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या मोहन भागवत संघ की विचारधारा को आगे बढ़ाने में सक्षम हैं। यह दिखाता है कि संघ के भीतर भी मतभेद गहराते जा रहे हैं।
RSS का जमीन पे कितना असर है
संभल की शाही जामा मस्जिद में सर्वे के दौरान हुई हिंसा में पांच लोगों की मौत ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है—क्या संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयानों का जमीनी स्तर पर असर होता है? और क्या संघ से जुड़े संगठन उनकी बातों को गंभीरता से लेते हैं?
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी का कहना है कि मोहन भागवत का बयान कोई फतवा नहीं है, जिसे हर कोई मानने लगे। वह कहते हैं, “हिंदुत्व की उग्र राजनीति बीजेपी को फायदा पहुंचाती है। ऐसे में अगर संघ सॉफ्ट बयान देता है, तो उसका जमीन पर कोई खास असर नहीं दिखेगा, क्योंकि सत्ता की चाबी बीजेपी के पास है।”
त्रिवेदी ने यह भी बताया कि देश में संघ के स्वयंसेवकों की संख्या करीब एक करोड़ है, जबकि हिंदुओं की आबादी 80 करोड़ के आसपास है। इसका मतलब यह नहीं है कि हर हिंदू संघ से जुड़ा है। ऐसे में मोहन भागवत के बयानों का सीधा असर हर जगह दिखे, यह जरूरी नहीं है।
दूसरी तरफ, वरिष्ठ पत्रकार शरद गुप्ता मानते हैं कि संघ और बीजेपी ने मिलकर एक ऐसी हिंदुत्ववादी सेना तैयार कर दी है, जो अब काबू में नहीं आ रही है। गुप्ता कहते हैं, “हिंदुत्व एक ऐसा बाघ है जिस पर चढ़ना तो आसान है, लेकिन उससे उतरना बहुत मुश्किल है। संघ और बीजेपी ने पूरे देश को हिंदुत्व की लहर में झोंक दिया है। अब जब उतरने की कोशिश हो रही है, तो आलोचनाओं और ट्रोलिंग का सामना करना पड़ रहा है। और मोहन भागवत भी इससे अछूते नहीं हैं।”
इससे साफ है कि मोहन भागवत का बयान भले ही सुलह-सफाई की बात करे, लेकिन जमीनी स्तर पर उसकी असर की संभावना कम ही है। सत्ता की राजनीति और हिंदुत्व का उग्र रूप अब इतनी गहराई तक पहुंच चुका है कि उसे बदलना आसान नहीं लगता।
Congress मोहन भागवत के बयान और RSS के बारे में क्या कहा
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने आरएसएस और मोहन भागवत पर सीधा निशाना साधते हुए कहा है कि मंदिर-मस्जिद का मुद्दा संघ की राजनीति का हिस्सा है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, “मोहन भागवत का बयान आरएसएस की खतरनाक कार्यशैली को दिखाता है। उनकी कथनी और करनी में जमीन-आसमान का फर्क है।”
जयराम रमेश ने आरोप लगाया, “आजादी के वक्त आरएसएस जितना खतरनाक था, आज उससे भी ज्यादा हो गया है। ये लोग जो कहते हैं, उसका उल्टा करते हैं। अगर मोहन भागवत को सच में लगता है कि मंदिर-मस्जिद का मुद्दा उठाकर नेतागिरी करना गलत है, तो उन्हें ये बताना चाहिए कि ऐसे नेताओं को संघ का संरक्षण क्यों मिलता है?”
उन्होंने सवाल उठाया, “क्या आरएसएस और बीजेपी में मोहन भागवत की बात नहीं मानी जाती? अगर वो अपने बयान को लेकर ईमानदार हैं, तो सार्वजनिक रूप से ये घोषित करें कि संघ ऐसे नेताओं का समर्थन नहीं करेगा जो समाज में बंटवारे की राजनीति करते हैं। लेकिन वो ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि मंदिर-मस्जिद का खेल संघ के इशारे पर ही चलता है।” यह भी पढ़े : जनसंख्या नियंत्रण की बात करने वाला RSS प्रमुख मोहन भागवत अचानक क्यों बोलने लगे शादी करो जनसंख्या बढ़ाओ वरना…..
रमेश ने आरोप लगाया कि दंगों को भड़काने वाले लोग संघ से जुड़े होते हैं, चाहे वो बजरंग दल हो, विश्व हिंदू परिषद हो या बीजेपी के नेता। उन्होंने कहा, “संघ इनके लिए वकील से लेकर मुकदमे तक में मदद करता है। मोहन भागवत का बयान सिर्फ दिखावा है, जिससे वो आरएसएस के पाप छिपाने की कोशिश कर रहे हैं।” यह भी पढ़ें : धर्म, इतिहास, और आज की राजनीति: देश में सांप्रदायिकता और असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की रणनीति पर विस्तृत लेख
कांग्रेस नेता ने आखिर में कहा, “आरएसएस की असली सच्चाई देश जानता है। ऐसे बयानों से उनकी छवि नहीं बदलेगी।”
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