Delhi New CM Oath Ceremony 2025 : दिल्ली विधानसभा चुनाव के परिणामों के 12 दिन बाद 20 फरवरी को दिल्ली के नए मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित होगा। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री, भाजपा और NDA शासित 20 राज्यों के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री सहित विभिन्न गणमान्य लोग उपस्थित होंगे। भाजपा की विधायक दल की बैठक 19 फरवरी को बुलाई गई थी, जिसमें मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा की गयी ।
शपथ ग्रहण समारोह की तैयारी
दिल्ली के रामलीला मैदान में होने वाला यह शपथ ग्रहण समारोह भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर होगा। भाजपा सूत्रों के अनुसार, इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री और भाजपा से जुड़े 20 राज्यों के मुख्यमंत्री तथा उपमुख्यमंत्री शामिल होंगे। इसके अलावा उद्योगपति, फिल्म स्टार, क्रिकेट खिलाड़ी, साधु-संत और राजनयिकों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया जाएगा।
भाजपा ने शपथ ग्रहण समारोह के लिए दिल्ली के लगभग 12 से 16 हजार लोगों को आमंत्रित करने की योजना बनाई है। भाजपा महासचिव विनोद तावड़े और तरुण चुघ को इस आयोजन की व्यवस्थाओं की देखरेख करने का जिम्मा सौंपा गया है। दोनों नेता आज शाम दिल्ली भाजपा के नेताओं के साथ बैठक करेंगे, जिसमें कार्यक्रम की व्यवस्थाओं पर चर्चा की जाएगी।
मुख्यमंत्री के पद के लिए 7 प्रमुख उम्मीदवार रेस में माने जा रहे है
भले ही भाजपा अपनी पार्टी के मुख्यमंत्री का नाम छिपा रही थी , लेकिन सूत्रों से जानकारी मिल रही है कि भाजपा ने मुख्यमंत्री पद के लिए 7 नामों को लेकर विचार किया जा रहा था । पार्टी ने कुल 15 विधायकों के नाम निकाले थे , जिनमें से 9 नाम शॉर्टलिस्ट किए गए हैं। इनमें से कुछ विधायकों को मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री और स्पीकर के पद पर नियुक्त किया जाएगा। सूत्रों से जानकारी के मुताबिक RSS ने रेखा गुप्ता का नाम आगे बढ़ाया और भाजपा ने उसके नाम पर अपनी सहमति दे दी है ऐसा माना जा रहा है की एक मुख्यमंत्री और एक या 2 उप मुख्यमंत्री बनाये जा सकते है
दिल्ली मंत्रिमंडल में मुख्यमंत्री सहित अधिकतम 7 मंत्री हो सकते हैं। इस दौरान चर्चा यह है कि दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों से एक-एक भाजपा विधायक को चुना जा सकता है, ताकि बिहार और पंजाब चुनावों के साथ-साथ जातिगत समीकरणों का भी ध्यान रखा जा सके।
मुख्यमंत्री पद की रेस में प्रमुख नाम
रेखा गुप्ता
50 साल की रेखा गुप्ता जिंदल दिल्ली विधानसभा चुनाव में शालीमार बाग सीट से विधायक चुनी गई । रेखा गुप्ता ने आम आदमी पार्टी (AAP) की प्रत्याशी वंदना कुमारी को 29,595 वोटों से हराया था। रेखा गुप्ता ने छात्र राजनीति से अपने करियर की शुरुआत की थी और दो बार विधायक का चुनाव हार चुकी हैं।
वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) से लंबे समय से जुड़ी रही हैं। इसके अलावा, वे दिल्ली भाजपा की महासचिव और भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रह चुकी हैं।
इनको मुख्यमंत्री चुने जाने की प्रमुख वजह हो सकती है वैश्य समुदाय से संबंध रेखा गुप्ता पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह वैश्य समुदाय से आती हैं। इनका परिवार भी हरियाणा से है दिल्ली में वैश्य समुदाय का व्यापार और राजनीति में बड़ा प्रभाव है और यह भाजपा का कोर वोटर बेस भी माना जाता है।
खासकर जब विपक्षी पार्टियां भाजपा और संघ पर महिला विरोधी होने का आरोप लगाती हैं। इस समय भाजपा या NDA शासित किसी राज्य में कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं है, जबकि विपक्षी दलों की सरकारों में केवल एक राज्य (पश्चिम बंगाल) में महिला मुख्यमंत्री हैं। भाजपा यह भी देख सकती है कि महिला नेतृत्व को बढ़ावा देना और महिलाओं को सत्ता में लाना समाज में सकारात्मक संदेश भेज सकता है। रेखा गुप्ता का नाम आज विधायक दल की बैठक में फ़ाइनल हो गया rss ने इनके नाम को आगे किया था
रविंद्र इंद्रराज सिंह
रविंद्र इंद्रराज सिंह रविंद्र, जो कि पंजाबी दलित समुदाय से आते हैं, पहली बार विधायक बने हैं और पंजाब में इस समुदाय को मजहबी सिख कहा जाता है। इस समय देश में कोई भी दलित मुख्यमंत्री नहीं है। भाजपा ने विभिन्न राज्यों में OBC, आदिवासी और ब्राह्मण समुदाय के नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया है, लेकिन दलितों को अभी तक मौका नहीं मिला। भाजपा दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है, हालांकि अब तक सफलता नहीं मिल पाई है। लोकसभा चुनाव में दलितों की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ी थी, और दिल्ली चुनाव में भी दलितों और झुग्गी-झोपड़ी वासियों का वोट भाजपा को नहीं मिला। गृह मंत्री अमित शाह ने भाजपा के संकल्प पत्र में यह बात कही थी कि अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली को दलित मुख्यमंत्री देने का वादा किया था, लेकिन उन्होंने दो बार सरकार बनने के बाद भी दलित मुख्यमंत्री नहीं बनाया। इसी संदर्भ में भाजपा का इरादा है कि रविंद्र को मुख्यमंत्री बनाकर दलित वोट बैंक को मजबूत किया जाए, खासकर दिल्ली और पंजाब जैसे राज्यों में। अब आगामी बिहार चुनाव को देखते हुए भी भाजपा को जातिगत समीकरण साधने की जरूरत है, और राहुल गांधी भी इस समय SC, ST और अन्य जातियों के नेतृत्व को लेकर बयान दे रहे हैं। बिहार में जातिवाद और सामाजिक समीकरण की राजनीति अहम होगी, और कांग्रेस खासकर SC, ST और OBC समुदाय के नेताओं को टिकट देकर अपना वोट बैंक मजबूत करना चाहती है। इसके साथ ही, भाजपा भी रविंद्र जैसे नेताओं को मुख्यमंत्री बनाकर अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर सकती है, ताकि दलितों और अन्य समाजिक वर्गों को अपनी ओर खींच सके।
शिखा राय
शिखा राय, जो ग्रेटर कैलाश-1 वार्ड से दूसरी बार निगम पार्षद हैं, पेशे से वकील और प्रदेश भाजपा की उपाध्यक्ष तथा महिला मोर्चा की प्रदेशाध्यक्ष रह चुकी हैं। इस चुनाव में उन्होंने AAP के दिग्गज नेता और कैबिनेट मंत्री सौरभ भारद्वाज को करीब 3 हजार वोट से हराया है। उनकी यह जीत भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश हो सकती है, खासकर जब विपक्षी पार्टियां भाजपा और संघ पर महिला विरोधी होने का आरोप लगाती हैं। इस समय भाजपा या NDA शासित किसी राज्य में कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं है, जबकि विपक्षी दलों की सरकारों में केवल एक राज्य (पश्चिम बंगाल) में महिला मुख्यमंत्री हैं। भाजपा यह भी देख सकती है कि महिला नेतृत्व को बढ़ावा देना और महिलाओं को सत्ता में लाना समाज में सकारात्मक संदेश भेज सकता है। इस संदर्भ में, शिखा राय को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय पार्टी की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, ताकि भाजपा महिला वर्ग के वोट बैंक को और मजबूत कर सके और विपक्षी दलों के आरोपों का भी प्रभावी तरीके से जवाब दिया जा सके। भाजपा महिला विरोधी होने के आरोपों का जवाब देने के लिए शिखा राय को मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर सकती है।
प्रवेश वर्मा
प्रवेश वर्मा, जो पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं, एक प्रमुख भाजपा नेता के रूप में उभरे हैं। जाट समुदाय से आने वाले प्रवेश ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली विधानसभा सीट पर 4099 वोट से हराया। इसके अलावा उन्होंने पश्चिमी दिल्ली से दो बार सांसद के तौर पर भी कार्य किया। 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने दिल्ली के इतिहास में सबसे बड़ी जीत हासिल करते हुए 5.78 लाख वोटों से जीतने का रिकॉर्ड दर्ज किया। प्रवेश वर्मा का संबंध बचपन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से रहा है, और वह एक सक्रिय सदस्य रहे हैं। उनके बारे में यह भी माना जाता है कि अब तक उन्होंने कोई भी चुनाव नहीं हारा है, जो उनकी राजनीतिक सफलता को दर्शाता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट न दिए जाने को एक रणनीतिक निर्णय माना जा सकता है, ताकि उन्हें दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक मजबूत उम्मीदवार के तौर पर उतारा जा सके। बीजेपी के अंदर यह चर्चा है कि यदि प्रवेश वर्मा को दिल्ली का मुख्यमंत्री बना दिया जाता है, तो भाजपा हरियाणा में नॉन-जाट समुदाय की चल रही नाराजगी को शांत करने में सफल हो सकती है। इसके अलावा, जाट समुदाय से मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी किसान आंदोलन को भी शांत करने की कोशिश कर सकती है, जो एक महत्वपूर्ण रणनीतिक पहल हो सकती है। इस प्रकार, प्रवेश वर्मा का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए उभरता हुआ नाम बन सकता है, खासकर पार्टी की जातिगत और सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए।
विजेंद्र गुप्ता
विजेंद्र गुप्ता, जिन्होंने छात्र राजनीति से अपने करियर की शुरुआत की थी,वे तीसरी बार विधायक बने हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी के उपाध्यक्ष रहे विजेंद्र ने निगम पार्षद से विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तक का लंबा सफर तय किया है। वे रोहिणी वार्ड से तीन बार पार्षद रहे और 2015 में रोहिणी सीट से विधायक बने, जब भाजपा सिर्फ तीन सीटें ही जीत सकी थी।
विजेंद्र गुप्ता, जो दिल्ली भाजपा के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं, दिल्ली में भाजपा के प्रमुख वैश्य चेहरे के रूप में पहचाने जाते हैं। उनकी संगठन में मजबूत पकड़ है और संघ से भी उनका गहरा जुड़ाव है। इन सभी कारणों से विजेंद्र को मुख्यमंत्री पद की रेस में सबसे आगे माना जा रहा है। उनके अनुभव, संगठनात्मक क्षमता और पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता को देखते हुए वे मुख्यमंत्री बनने के एक प्रमुख उम्मीदवार हो सकते हैं।
भाजपा की रणनीति में यह संभावना भी है कि विजेंद्र गुप्ता जैसे नेताओं को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर पार्टी दिल्ली में अपनी स्थिति को मजबूत कर सके, खासकर जब पार्टी के लिए वैश्य वोटबैंक को आकर्षित करना महत्वपूर्ण हो।
विजेंद्र गुप्ता को मुख्यमंत्री पद के लिए एक मजबूत उम्मीदवार माना जा रहा है।
राजकुमार भाटिया
राजकुमार भाटिया दिल्ली भाजपा के उपाध्यक्ष हैं और उन्होंने भाजपा के लिए महत्वपूर्ण अभियान चलाए हैं। झुग्गी-झोपड़ी की बस्तियों में काम करने के कारण उन्होंने भाजपा के लिए बड़े वोट बैंक को आकर्षित किया है। उनके संघ से मजबूत संबंध उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए एक मजबूत उम्मीदवार बनाते हैं।
जितेंद्र महाजन
जितेंद्र महाजन, जिन्होंने ABVP के साथ अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की, तीसरी बार विधायक बने हैं। इससे पहले, 2013 और 2020 में वे इसी सीट से चुने गए थे, जबकि 2015 में AAP की उम्मीदवार सरिता सिंह से हार का सामना करना पड़ा था। महाजन अपनी साधारण जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं और लग्जरी कारों की बजाय स्कूटी से चलना पसंद करते हैं, जो उनकी सादगी को दर्शाता है।
पंजाबी वैश्य समुदाय से आने वाले जितेंद्र महाजन लंबे समय से RSS से जुड़े हुए हैं और संगठन में उनका प्रभाव है। उनका जुड़ाव संघ से उन्हें एक मजबूत राजनीतिक आधार प्रदान करता है, साथ ही उनकी साधारण जीवनशैली और जनप्रिय छवि ने उन्हें क्षेत्र में काफी समर्थन भी दिलाया है।
इस तरह के नेताओं को मुख्यमंत्री पद की रेस में रखना भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकता है, खासकर जब पार्टी को विभिन्न समुदायों का समर्थन जुटाने की आवश्यकता होती है। महाजन का RSS से जुड़ाव और उनकी जमीनी स्तर पर लोकप्रियता उन्हें मुख्यमंत्री बनने के लिए एक मजबूत उम्मीदवार बना सकती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी सत्ता में आई है तब से पार्टी ने जिन नेताओं को मुख्यमंत्री पद पर नियुक्त किया है, वे लगभग सभी RSS से जुड़े हुए रहे हैं। यह देखा गया है कि इन नेताओं का चयन इस रणनीति के तहत किया गया है, ताकि कोई भी ऐसा नेता न हो जो पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के लिए चुनौती प्रस्तुत कर सके। मोदी सरकार का यह कदम हमेशा यह सुनिश्चित करने के लिए रहा है कि मुख्यमंत्री पद पर आने वाले नेताओं के पास संगठन के भीतर और पार्टी के बाहर ज्यादा ताकत न हो, ताकि वे उनके फैसलों को चुनौती न दे सकें।
अब वो चेहरे जिसे मंत्री बनाया जा सकता है…..
भाजपा का 21 राज्यों तक विस्तार: दिल्ली जीतने के बाद NDA की मजबूती
दिल्ली विधानसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज करने के बाद भाजपा और NDA की सरकारें अब देश के 28 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में से 21 में हो गई हैं। इस तरह, भाजपा 2018 वाली स्थिति में वापस पहुंच गई है, जब भी NDA की सरकारें 21 राज्यों तक थीं।
दिल्ली में दो बार 60+ सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी (AAP) इस बार सिर्फ 22 सीटों पर सिमट गई, जबकि कांग्रेस को लगातार तीसरे चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली।
मोदी 3.0 के बाद 8 में से 5 राज्यों में जीत
नरेंद्र मोदी के तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद 8 राज्यों में चुनाव हुए, जिनमें से 5 में भाजपा या NDA ने जीत दर्ज की। इनमें शामिल हैं:
आंध्र प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश
ओडिशा
हरियाणा
महाराष्ट्र
जबकि झारखंड और जम्मू-कश्मीर में विपक्षी दलों की सरकार बनी।
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