गुजरात सरकार ने पीएम मोदी की प्रशंसा में विज्ञापनों पर खर्च किए ₹8.81 करोड़, RTI से खुलासा: जनता के टैक्स के पैसे की बर्बादी

Zulfam Tomar
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अहमदाबाद Modi Ads Wastes : गुजरात सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके 23 वर्षों के सार्वजनिक जीवन (गुजरात के मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री के रूप में) की बधाई देने के लिए विज्ञापनों पर ₹8.81 करोड़ खर्च किए हैं। यह चौंकाने वाली जानकारी सूचना का अधिकार (RTI) के तहत सामने आई है। यह खुलासा उस समय हुआ है, जब देश में आम जनता आर्थिक तंगी, बेरोजगारी और बढ़ती महंगाई से जूझ रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकार का यह खर्च जनता के टैक्स के पैसों की बर्बादी नहीं है?

जनता के टैक्स के पैसे का दुरुपयोग

यह राशि, जो गुजरात सरकार ने केवल विज्ञापनों के लिए खर्च की, वह आम जनता के खून-पसीने की कमाई से इकट्ठा किया गया टैक्स है। मजदूर दिनभर मेहनत-मजदूरी करके थक-हारकर घर लौटता है, किसान अपनी खेती में दिन-रात एक कर देता है, और नौकरीपेशा लोग सुबह से शाम तक अपनी नौकरी में जुटे रहते हैं। इन सबके टैक्स के पैसों से सरकार को जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू करना चाहिए, न कि नेताओं की प्रशंसा में विज्ञापनबाजी पर करोड़ों रुपये उड़ाने चाहिए। लेकिन अफसोस की बात यह है कि सरकारें इस तरह के खर्च को जनता की नजरों से छिपाने की कोशिश करती हैं, ताकि आम लोगों को इसकी भनक भी न पड़े।

RTI से हुआ खुलासा

RTI के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार, गुजरात सरकार ने इन विज्ञापनों के जरिए प्रधानमंत्री मोदी को उनके 23 साल के शासन की बधाई दी। इन विज्ञापनों में न केवल गुजरात, बल्कि अन्य राज्यों में भी ‘थैंक्यू मोदी जी’ जैसे संदेशों को प्रचारित किया गया। यह राशि केवल गुजरात सरकार के विज्ञापनों की है, जबकि अन्य बीजेपी शासित राज्यों ने भी इसी तरह के विज्ञापनों पर करोड़ों रुपये खर्च किए हैं। उदाहरण के लिए, बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और कर्नाटक जैसे राज्यों ने मिलकर ‘थैंक्यू मोदी जी’ विज्ञापनों पर कुल ₹18.03 करोड़ खर्च किए।

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आम जनता को उलझाया जा रहा है

जबकि सरकारें इस तरह के भारी-भरकम खर्च कर रही हैं, आम जनता को हिंदू-मुस्लिम, जातिगत और फर्जी मुद्दों में उलझाकर रखा जाता है। यह एक सुनियोजित रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है, ताकि जनता का ध्यान बुनियादी मुद्दों जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और गरीबी उन्मूलन से हटाया जा सके। मजदूर, किसान और मध्यम वर्ग अपनी रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सरकार का ध्यान जनकल्याण के बजाय प्रचार-प्रसार पर ज्यादा है।

सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों का उल्लंघन?

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी विज्ञापनों के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिसमें कहा गया है कि विज्ञापनों में किसी भी राजनीतिक शख्सियत का महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए। इसके बावजूद, ‘थैंक्यू मोदी जी’ जैसे विज्ञापन न केवल गुजरात, बल्कि अन्य राज्यों में भी बड़े पैमाने पर चलाए गए। कानूनी विशेषज्ञों ने इसे ‘अजीबोगरीब’ और जनता के पैसे की बर्बादी करार दिया है।

जनता के सवाल

क्या जरूरी था इतना खर्च? क्या प्रधानमंत्री को बधाई देने के लिए फोन कॉल या पत्र पर्याप्त नहीं था?

क्या यह जनता के पैसे का दुरुपयोग नहीं? जब देश में लाखों लोग दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं, तब इस तरह के खर्च को कैसे जायज ठहराया जा सकता है?

पारदर्शिता कहां है? सरकारें इस तरह के खर्च को जनता से छिपाने की कोशिश क्यों करती हैं, और RTI जैसे उपायों को कमजोर करने की कोशिश क्यों हो रही है?

सोशल मीडिया पर भी उठ रहे सवाल

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर भी इस खबर को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कई यूजर्स ने इसे जनता के पैसे की बर्बादी बताया और सवाल उठाया कि क्या इतनी बड़ी राशि का उपयोग स्कूलों, अस्पतालों या बुनियादी ढांचे के लिए नहीं किया जा सकता था। एक यूजर ने लिखा, “Thank You तो फोन पर भी कहा जा सकता था, लेकिन पैसे में आग लगाने की चुल्ल जो लगी है, वो कैसे मिटेगी?”

यह खुलासा न केवल गुजरात सरकार, बल्कि समग्र रूप से सरकारी प्रचार तंत्र पर सवाल उठाता है। जब देश में गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई जैसे गंभीर मुद्दे हैं, तब जनता के टैक्स के पैसों को इस तरह के प्रचार पर खर्च करना कितना उचित है? आम जनता, जो दिन-रात मेहनत करके अपने परिवार का पेट पालती है, को यह हक है कि वह जाने कि उसका पैसा कहां और कैसे खर्च हो रहा है। सरकार को चाहिए कि वह पारदर्शिता बरते और जनता के हित में काम करे, न कि व्यक्तिगत छवि निर्माण के लिए संसाधनों का दुरुपयोग करे।

ABTNews24 की ओर से यह अपील है कि जनता जागरूक रहे और अपने अधिकारों के लिए सवाल उठाए।

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