इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: अब एक जमानतदार पर भी होगी कैदी की रिहाई, सभी जिला जजों को निर्देश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की निचली अदालतों के लिए एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है, जिसका उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित और निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करना है। जस्टिस विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 227 और भारतीय न्याय संहिता (BNSS) की धारा 528 के तहत यह निर्देश जारी किए हैं। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए जमानत प्रक्रिया को सरल बनाने और गरीब व कमजोर वर्ग के लोगों को राहत देने पर जोर दिया गया है।

Zulfam Tomar
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प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जेल में बंद उन कैदियों को बड़ी राहत दी है, जो आर्थिक और सामाजिक कारणों से दो जमानतदारों की व्यवस्था नहीं कर पाते और जमानत मिलने के बावजूद जेल में रहने को मजबूर होते हैं। कोर्ट ने अब स्पष्ट कर दिया है कि दो जमानतदारों की जगह केवल एक जमानतदार One Surety के बांड पर भी कैदी को रिहा किया जा सकता है। इस फैसले को गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों के लिए न्याय तक पहुंच को आसान बनाने वाला कदम माना जा रहा है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया फैसले ने सुप्रीम कोर्ट के उस सिद्धांत को और मजबूती दी है, जिसमें कहा गया है कि “जेल एक अपवाद है, जबकि जमानत एक अधिकार है।”

क्या है यह फैसला?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने गोरखपुर की बच्ची देवी की याचिका पर यह महत्वपूर्ण आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जहां आर्थिक तंगी के कारण लोग दो जमानतदारों का इंतजाम नहीं कर पाते और लंबे समय तक जेल में रहते हैं। अब मजिस्ट्रेट या संबंधित अदालत को निर्देश दिया गया है कि वे आरोपी की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखकर एक जमानतदार पर ही जमानत स्वीकार करें। साथ ही, जमानत बांड की राशि भी आरोपी की आर्थिक स्थिति के अनुसार तय की जाए, ताकि गरीब लोग इसे आसानी से भर सकें।

जेल अधीक्षक और विधिक सेवा प्राधिकरण की भूमिका

हाईकोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि अगर कोई कैदी सात दिनों के भीतर जमानतदार पेश नहीं कर पाता, तो जेल अधीक्षक को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के सचिव को सूचित करना होगा। DLSA इसके बाद कैदी की रिहाई के लिए एक वकील की व्यवस्था की जाएगी, ताकि उसे जेल से बाहर लाया जा सके। यह कदम उन लोगों के लिए विशेष रूप से मददगार होगा, जो आर्थिक कमजोरी के कारण जमानत की शर्तें पूरी नहीं कर पाते।

गिरीश गांधी केस से प्रेरणा

यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के गिरीश गांधी बनाम भारत संघ (1997) मामले के निर्देशों से प्रेरित है। गिरीश गांधी के खिलाफ 13 अलग-अलग मामले दर्ज थे, लेकिन दो जमानतदारों की व्यवस्था न होने के कारण वह जेल में रहा। हाईकोर्ट ने इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए यह व्यवस्था दी कि आर्थिक और सामाजिक स्थिति को देखते हुए एक जमानतदार पर रिहाई संभव होनी चाहिए।

बिना गिरफ्तारी चार्जशीट वाले मामलों में राहत 

हाईकोर्ट ने एक और महत्वपूर्ण निर्देश दिया कि जिन मामलों में पुलिस ने जांच के दौरान आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया और चार्जशीट दाखिल की गई, उन्हें सीधे जेल भेजने के बजाय जमानत बांड पर रिहा किया जाए। ऐसे मामलों में अलग से जमानत अर्जी दाखिल करने की जरूरत नहीं होगी।

आम आदमी को कैसे मिलेगा फायदा?

गरीबों को राहत: जो लोग आर्थिक तंगी के कारण दो जमानतदारों का इंतजाम नहीं कर पाते, उन्हें अब एक जमानतदार के साथ रिहाई मिल सकेगी।

जमानत राशि में कमी: जमानत बांड की राशि अब आरोपी की आर्थिक स्थिति के अनुसार तय होगी, जिससे गरीबों पर बोझ कम होगा।

तेज न्याय प्रक्रिया: जेल अधीक्षक और विधिक सेवा प्राधिकरण की मदद से रिहाई की प्रक्रिया तेज होगी।

पारदर्शिता और संवेदनशीलता: यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और गरीबों के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ावा देगा।

सोशल मीडिया पर चर्चा

इस फैसले के बाद सोशल मीडिया पर #OneBailGuarantor, #JusticeForAll और #BailReformIndia जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। लोग इसे गरीबों और कमजोर वर्ग के लिए न्यायपालिका का मानवतावादी कदम बता रहे हैं। कई यूजर्स ने लिखा, “यह फैसला गरीब कैदियों को जेल की सलाखों से आजादी दिलाने में मदद करेगा।”

कानूनी विशेषज्ञों की राय

कानूनी विशेषज्ञों ने इस फैसले को क्रांतिकारी बताया है। प्रोफेसर अजय वर्मा ने कहा, “यह फैसला दिखाता है कि कानून केवल अमीरों के लिए नहीं, बल्कि गरीब और कमजोर वर्ग के लिए भी समान रूप से काम करता है।”

आदेश का कार्यान्वयन

हाईकोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया है कि इस आदेश की प्रति मुख्य न्यायाधीश के सामने रखी जाए, ताकि नए दिशा-निर्देश जारी किए जा सकें। साथ ही, सभी जिला जजों, पुलिस महानिदेशक, अपर महानिदेशक (अभियोजन) और न्यायिक प्रशिक्षण संस्थान, लखनऊ को इस आदेश की प्रति भेजने का निर्देश दिया गया है। इन अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह फैसला प्रभावी ढंग से लागू हो।

ABTNews24 की राय

यह फैसला न केवल न्यायिक प्रक्रिया को आसान बनाएगा, बल्कि उन हजारों कैदियों को राहत देगा, जो छोटे-मोटे मामलों में जमानत की शर्तें पूरी न करने के कारण जेल में बंद हैं। यह कदम भारत की न्याय प्रणाली में सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा बदलाव है।

स्रोत: इलाहाबाद हाईकोर्ट आदेश,

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