भट्टा-पारसौल आंदोलन: जब किसानों की जमीन के लिए सड़कों पर उतरे राहुल गांधी
परिचय:
2011 का भट्टा-पारसौल आंदोलन भारतीय राजनीति और भूमि अधिग्रहण के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यह आंदोलन उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा स्थित भट्टा और पारसौल गांवों में हुआ, जहां किसान अपनी जमीन के जबरन अधिग्रहण का विरोध कर रहे थे। उस समय मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थी। और केंद्र में UPA2 की सरकार थी डॉ मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे
इस आंदोलन ने राहुल गांधी को राष्ट्रीय राजनीति में एक मजबूत जमीनी नेता के रूप में उभरने का अवसर दिया। उन्होंने किसानों के हक की लड़ाई लड़ी और इस मुद्दे को राष्ट्रीय बहस का हिस्सा बना दिया।
भट्टा-पारसौल आंदोलन की पृष्ठभूमि
2000 के दशक में भारत में औद्योगीकरण तेजी से बढ़ रहा था। उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रेटर नोएडा और आसपास के क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू की ताकि वहां औद्योगिक और बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं विकसित की जा सकें।
2009-2011 के बीच, राज्य सरकार ने कई गांवों की कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण किया। सरकार का कहना था कि यह भूमि सड़क, बिजली, उद्योगों और शहरी विकास के लिए ली जा रही थी, लेकिन किसानों का आरोप था कि सरकार बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) और रियल एस्टेट कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए उनकी ज़मीन सस्ते में ले रही है और बाद में ऊंची कीमतों पर बेच रही है। किसानों का आरोप था कि मायावती सरकार ने जबरन उनकी जमीन का अधिग्रहण कर लिया और औने-पौने दामों में कॉरपोरेट्स को बेच दिया। इस अन्याय के खिलाफ किसान सड़क पर उतर आए और विरोध प्रदर्शन करने लगे।
किसानों की मांगें क्या थीं?
- उचित मुआवजा: किसानों को बहुत कम दाम पर ज़मीन दी जा रही थी, जबकि सरकार इसे ऊंचे दामों पर बेच रही थी।
- जबरदस्ती अधिग्रहण बंद हो: बिना किसानों की सहमति के ज़मीन अधिग्रहण किया जा रहा था।
- रोज़गार का आश्वासन: अधिग्रहण के बाद किसानों को नौकरी देने का कोई पक्का वादा नहीं किया गया था। यह भी पढ़े : क्यों BJP और RSS कांग्रेस को खत्म करना चाहते हैं?
7 मई 2011: जब आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया
7 मई 2011 को भट्टा और पारसौल गांवों में किसानों ने ज़मीन अधिग्रहण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन जल्द ही हिंसक हो गया और पुलिस और किसानों के बीच सीधी भिड़ंत हो गई।
इस हिंसा में:
✅ दो किसानों की मौत हो गई।
✅ दो पुलिसकर्मी भी मारे गए।
✅ कई किसान और पुलिसवाले घायल हुए।
✅ गांव में आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं हुईं।
इसके बाद, मायावती सरकार ने सख्त कार्रवाई की और पुलिस बल को गांव में भेजा। कई किसानों को गिरफ्तार किया गया और पूरे क्षेत्र में तनाव फैल गया।
राहुल गांधी की एंट्री: एक जुझारू नेता की छवि बनी
इस पूरे घटनाक्रम के बाद,उसी दौरान राहुल गांधी ने उस इलाके का दौरा किया जबकि प्रशासन ने नेताओं के यहां आने पर रोक लगा रखी थी। राहुल गांधी के साहसिक कदम से प्रभावित होकर एक युवा ने राहुल गांधी का साथ देने का फैसला किया और उस बाइक की हैंडल संभाली जिसपर सवार होकर खुद कांग्रेस उपाध्यक्ष भट्टा पारसौल पहुंचे थे। कांग्रेस नेता राहुल गांधी 11 मई 2011 को किसानों से मिलने के लिए भट्टा-पारसौल गांव पहुंचे।
???? वह मोटरसाइकिल पर सवार होकर छुपते-छुपाते गांव पहुंचे, ताकि पुलिस उन्हें रोक न सके।
???? उन्होंने किसानों से मुलाकात की, उनकी परेशानियां सुनीं और सरकार की कार्रवाई के खिलाफ आवाज़ उठाई।
???? उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने किसानों पर अत्याचार किया, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ और कई निर्दोषों को जेल में डाल दिया गया।
???? इसके बाद, राहुल गांधी गांव में धरने पर बैठ गए।
राहुल गांधी की सक्रियता से यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आ गया। कांग्रेस ने इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना दिया और भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव की मांग तेज़ हो गई।
राहुल गांधी की गिरफ्तारी और कांग्रेस का विरोध
जब राहुल गांधी ने किसानों के समर्थन में धरना दिया, तो उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया।
???? गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस ने राज्य सरकार के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया।
???? राहुल गांधी को तुरंत रिहा कर दिया गया, लेकिन कांग्रेस ने यह मुद्दा संसद तक पहुंचा दिया।
राहुल गांधी ने दिल्ली लौटकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की और पूरे मामले की CBI जांच की मांग की।
???? मायावती क्यों हुईं नाराज?
1️⃣ सरकार की सख्ती पर सवाल:
राहुल गांधी ने खुलेआम मायावती सरकार पर पुलिस बर्बरता का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि किसानों को मारा-पीटा गया, उनके घर जलाए गए और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार हुआ।
2️⃣ दलित वोट बैंक की चुनौती:
मायावती की राजनीति दलित और गरीब वर्ग के समर्थन पर टिकी थी। लेकिन भट्टा-पारसौल आंदोलन के बाद राहुल गांधी ने किसानों और गरीबों की राजनीति में सेंध लगा दी, जिससे मायावती नाराज हो गईं।
3️⃣ राहुल गांधी की गिरफ्तारी:
मायावती सरकार ने राहुल गांधी को गिरफ्तार कर लिया, जिससे यह आंदोलन और बड़ा हो गया। गिरफ्तारी ने राहुल गांधी को एक मजबूत विपक्षी नेता बना दिया।
4️⃣ यूपी की सत्ता की लड़ाई:
2012 के विधानसभा चुनाव नजदीक थे, और राहुल गांधी का यह कदम मायावती के खिलाफ एक बड़ा सियासी दांव साबित हुआ। 2012 के विधानसभा चुनाव में मायावती की सरकार हार गई और सपा (अखिलेश यादव) सत्ता में आई।
इस आंदोलन का असर: भूमि अधिग्रहण कानून 2013 का जन्म
भट्टा-पारसौल आंदोलन के बाद, पूरे देश में भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर बहस तेज हो गई।
2013 में, कांग्रेस सरकार ने नया भूमि अधिग्रहण कानून (Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013) पास किया।
इस कानून में:
✅ किसानों की सहमति के बिना ज़मीन अधिग्रहण नहीं किया जा सकता।
✅ बाजार दर से चार गुना मुआवजा देने का प्रावधान रखा गया।
✅ किसानों को पुनर्वास और रोज़गार देने का आश्वासन दिया गया।
✅ भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता के लिए नए नियम बनाए गए।
✅ जमीन अधिग्रहण के लिए 80% किसानों की सहमति अनिवार्य
✅ कॉरपोरेट्स के लिए जमीन हासिल करना कठिन
किसानों के लिए यह जीत थी, लेकिन उद्योग जगत के लिए बड़ा झटका।
???? राहुल गांधी कॉरपोरेट्स के विलेन क्यों बन गए?
1️⃣ उद्योगों की जमीन अधिग्रहण प्रक्रिया जटिल हो गई:
नए कानून ने कॉरपोरेट्स के लिए जमीन खरीदना मुश्किल और महंगा कर दिया।
2️⃣ बड़ी कंपनियों के प्रोजेक्ट अटक गए:
इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग और रियल एस्टेट सेक्टर में तेजी से जमीन मिलना बंद हो गया, जिससे कई बड़े प्रोजेक्ट रुके।
3️⃣ ‘बिजनेस विरोधी छवि’ बनी:
उद्योगपतियों ने राहुल गांधी और कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उन्होंने व्यापारिक माहौल को नुकसान पहुंचाया और भारत की ग्रोथ को धीमा किया।
4️⃣ मोदी सरकार
2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने इस कानून को बदलने की कोशिश की, लेकिन किसानों के विरोध के कारण पीछे हटना पड़ा।
भट्टा-पारसौल आंदोलन से किसे फायदा हुआ?
???? राहुल गांधी: इस आंदोलन ने राहुल गांधी की छवि एक मजबूत, जमीनी और किसानों के हितैषी नेता के रूप में बनाई।
???? किसान आंदोलन: इस संघर्ष के बाद किसानों की ज़मीन की सुरक्षा के लिए नए कानून बने।
???? राजनीतिक बदलाव: 2012 के विधानसभा चुनाव में मायावती की सरकार हार गई और सपा (अखिलेश यादव) सत्ता में आई।
भट्टा-पारसौल आंदोलन सिर्फ एक गांव की लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह पूरे देश में किसानों के हक की आवाज बन गया। भट्टा-पारसौल आंदोलन: किसानों के नायक, लेकिन कॉरपोरेट्स के विलेन बने राहुल गांधी
आज भी, जब भूमि अधिग्रहण का मुद्दा उठता है, तो भट्टा-पारसौल आंदोलन की चर्चा जरूर होती है।
यह आंदोलन राहुल गांधी के लिए एक बड़ा राजनीतिक मोड़ साबित हुआ और भारत के भूमि अधिग्रहण कानून में बड़े बदलाव की नींव भी यहीं से रखी गई।