UP News: फर्जी मुकदमा दर्ज कराने वाले वकील को उम्रकैद, 5 लाख से ज्यादा का जुर्माना, कोर्ट ने दी सख्त सजा

आपका भारत टाइम्स
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Fake Cases Lawyer Lucknow: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की विशेष एससी/एसटी कोर्ट ने एक सनसनीखेज मामले में वकील परमानंद गुप्ता को 29 फर्जी मुकदमे दर्ज कराने के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई है। इसके साथ ही कोर्ट ने उन पर 5 लाख 10 हजार रुपये का भारी जुर्माना भी लगाया है। यह ऐतिहासिक फैसला विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने सुनाया, जिसमें उन्होंने वकील के इस कृत्य को न्यायपालिका की गरिमा और विश्वसनीयता पर हमला करार दिया। परमानंद गुप्ता ने अपने निजी स्वार्थ और दुश्मनी निकालने के लिए एक दलित महिला की पहचान का दुरुपयोग करते हुए विरोधियों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज कराए थे, जिसमें रेप, गैंगरेप और एससी/एसटी एक्ट जैसे गंभीर आरोप शामिल थे।

मामले का पूरा विवरण

मामला तब प्रकाश में आया जब लखनऊ के विभूतिखंड थाना क्षेत्र में परमानंद गुप्ता ने अपनी पत्नी के ब्यूटी पार्लर में काम करने वाली एक दलित महिला, पूजा रावत, के माध्यम से अरविंद यादव और उनके भाई अवधेश यादव के खिलाफ 18 जनवरी 2025 को एक फर्जी मुकदमा दर्ज कराया। इस मुकदमे में गैंगरेप, यौन उत्पीड़न, और एससी/एसटी एक्ट के तहत गंभीर आरोप लगाए गए थे। परमानंद गुप्ता ने पूजा रावत को मजिस्ट्रेट के सामने झूठा बयान देने के लिए मजबूर किया, जिसमें उसने अरविंद और अवधेश पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया।

हालांकि, मामले की जांच तत्कालीन सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) राधा रमण सिंह को सौंपी गई। जांच में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पुलिस ने पाया कि जिस स्थान पर पूजा रावत ने घटना होने का दावा किया था, वहां कोई कमरा ही नहीं था, बल्कि एक खाली प्लॉट था। इसके अलावा, पूजा और आरोपियों के बीच कोई फोन कॉल या संपर्क का कोई साक्ष्य नहीं मिला। कॉल डिटेल्स और लोकेशन विश्लेषण से यह भी स्पष्ट हुआ कि घटना के समय आरोपी और पूजा एक ही स्थान पर मौजूद नहीं थे।

जांच में यह भी खुलासा हुआ कि परमानंद गुप्ता ने पूजा रावत के माध्यम से 11 और स्वयं 18 फर्जी मुकदमे दर्ज कराए थे। इनमें से अधिकांश मामले निजी दुश्मनी और संपत्ति विवाद से प्रेरित थे। गुप्ता ने पूजा की दलित पहचान का दुरुपयोग करते हुए विरोधियों को कानूनी रूप से परेशान करने और उनसे मुआवजे की उगाही करने की साजिश रची थी।

उच्च न्यायालय की भूमिका

मामले की गंभीरता को देखते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 5 मार्च 2025 को इसकी सीबीआई जांच के आदेश दिए। सीबीआई की जांच में भी गुप्ता और पूजा की साजिश की पुष्टि हुई। इसके बाद पूजा रावत ने 4 अगस्त 2025 को कोर्ट में एक आवेदन दायर कर स्वीकार किया कि उसने परमानंद और उनकी पत्नी संगीता के दबाव में झूठा बयान दिया था। उसने कोर्ट से क्षमादान की गुहार लगाई, जिसके बाद कोर्ट ने उसे दोषमुक्त कर दिया, लेकिन सख्त चेतावनी दी कि भविष्य में ऐसी हरकत करने पर उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई होगी।

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कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

विशेष एससी/एसटी कोर्ट के न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने अपने फैसले में कहा, “परमानंद गुप्ता ने न केवल कानून का दुरुपयोग किया, बल्कि एक सम्मानित पेशे को कलंकित किया। ऐसे लोग न्यायपालिका के प्रति जनता का विश्वास डगमगाते हैं।” कोर्ट ने गुप्ता को तीन अलग-अलग धाराओं में सजा सुनाई:

धारा 217/49 BNS: एक वर्ष का साधारण कारावास और 10 हजार रुपये का जुर्माना।

धारा 248/49 BNS: 10 वर्ष का कठोर कारावास और 2 लाख रुपये का जुर्माना।

एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)5: आजीवन कठोर कारावास और 3 लाख रुपये का जुर्माना।

कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि सभी सजाएं अलग-अलग चलेंगी। इसके साथ ही, गुप्ता को विभिन्न न्यायालयों में वकालत करने से प्रतिबंधित कर दिया गया और बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश को उनके खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए गए। कोर्ट ने लखनऊ के पुलिस कमिश्नर और जिला मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि गुप्ता को झूठे मुकदमों के आधार पर मिली कोई भी सरकारी राहत राशि वापस वसूली जाए।

सबूत और पैरवी की भूमिका

इस मामले में तत्कालीन एसीपी राधा रमण सिंह और विशेष लोक अभियोजक अरविंद मिश्रा की भूमिका अहम रही। दोनों ने पुख्ता सबूत और मजबूत पैरवी के आधार पर परमानंद गुप्ता की साजिश को बेनकाब किया। अभियोजन पक्ष ने कोर्ट में गवाहों के बयान, कॉल डिटेल्स, लोकेशन डेटा, और स्थलीय जांच के आधार पर यह साबित किया कि गुप्ता ने सुनियोजित तरीके से झूठे मुकदमे दर्ज कराए।

सामाजिक और कानूनी प्रभाव

इस फैसले को कानूनी हलकों में ऐतिहासिक माना जा रहा है, क्योंकि यह पहली बार है जब किसी वकील को झूठे मुकदमे दर्ज करने के लिए आजीवन कारावास की सजा दी गई है। यह फैसला न केवल उन लोगों के लिए राहत की खबर है, जिन्हें गुप्ता ने फर्जी मुकदमों में फंसाया था, बल्कि यह भविष्य में ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने में भी मददगार साबित हो सकता है। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि न्यायपालिका की पवित्रता और जनता का विश्वास बनाए रखने के लिए ऐसे अपराधियों को कठोर दंड देना आवश्यक है।

पूजा रावत को चेतावनी

सह-अभियुक्ता पूजा रावत को कोर्ट ने दोषमुक्त करते हुए तत्काल रिहाई का आदेश दिया, लेकिन उसे सख्त चेतावनी दी गई। कोर्ट ने कहा कि यदि भविष्य में उसने एससी/एसटी एक्ट या अन्य कानूनों का दुरुपयोग कर झूठे मुकदमे दर्ज कराए, तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।

यह मामला कानून के दुरुपयोग और न्यायपालिका की प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने की गंभीरता को दर्शाता है। परमानंद गुप्ता जैसे लोग, जो अपने पेशे का गलत इस्तेमाल कर निर्दोष लोगों को परेशान करते हैं, इस फैसले से सबक लेंगे। लखनऊ की विशेष एससी/एसटी कोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी दुरुपयोग के खिलाफ एक मजबूत संदेश देता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि न्यायपालिका का सम्मान और विश्वसनीयता बरकरार रहे।

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