Martin Macwan: मार्टिन मैकवान, एक ऐसा नाम जो भारत में दलित अधिकारों और सामाजिक न्याय की लड़ाई का प्रतीक बन चुका है। गुजरात के नडियाद में एक गरीब दलित परिवार में जन्मे मार्टिन ने बचपन से ही जातिगत भेदभाव और सामाजिक अन्याय का कड़वा सच देखा। 11 भाई-बहनों में से एक, मार्टिन ने अपने जीवन में कई ऐसी घटनाओं का सामना किया जिन्होंने उनके मन में दलित समुदाय के लिए न्याय और समानता की आग जलाई। आज, उनके अथक प्रयासों और समर्पण के कारण, हजारों दलितों को सम्मान, शिक्षा और आत्मनिर्भरता का नया जीवन मिला है।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
मार्टिन मैकवान का जन्म 1959 के आसपास गुजरात के एक दलित परिवार में हुआ। उनके बचपन में जातिगत भेदभाव का दंश गहरा था। एक ऐसी घटना, जब उनके पिता की नौकरी छीन ली गई, ने मार्टिन के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। इस घटना ने उन्हें यह प्रण करने के लिए प्रेरित किया कि वे अपना जीवन दलित समुदाय के अधिकारों और सम्मान की लड़ाई को समर्पित करेंगे।
1986 में, जब मार्टिन एक भूमि अधिकार अभियान में शामिल थे, तब उनके चार सहयोगी, जो दलित थे, की एक प्रभावशाली जाति के लोगों द्वारा हत्या कर दी गई। यह घटना, जिसे ‘गोलाना नरसंहार’ के रूप में जाना जाता है, उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी। इस त्रासदी ने उन्हें और दृढ़ कर दिया कि वे दलित समुदाय के लिए न्याय की लड़ाई को और तेज करेंगे।
नवसर्जन ट्रस्ट की स्थापना
1989 में, मार्टिन ने गुजरात में नवसर्जन ट्रस्ट की स्थापना की, जिसका उद्देश्य दलितों के अधिकारों को बढ़ावा देना और जातिगत भेदभाव को समाप्त करना था। नवसर्जन, जिसका अर्थ है ‘नया सृजन’, ने दलित समुदाय के लिए शिक्षा, कानूनी सहायता, और आर्थिक आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाए। यह संगठन आज गुजरात के 3,000 से अधिक गांवों में सक्रिय है और दलितों के साथ-साथ अन्य हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए काम करता है।
नवसर्जन ने न केवल दलितों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी, बल्कि सामाजिक जागरूकता और नेतृत्व विकास पर भी ध्यान दिया। संगठन ने सैकड़ों युवाओं को ‘बेयरफुट वकील’ के रूप में प्रशिक्षित किया और महिलाओं को नेतृत्व प्रशिक्षण देकर सामाजिक आंदोलनों में उनकी भागीदारी को बढ़ावा दिया।
दलित शक्ति केंद्र और दलित फाउंडेशन
मार्टिन ने दलित शक्ति केंद्र की स्थापना की, जो एक व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र है। यह केंद्र दलित युवाओं को पारंपरिक जातिगत व्यवसायों से बाहर निकालकर उन्हें आधुनिक कौशल और आत्मनिर्भरता प्रदान करता है। पिछले 15 वर्षों में, इस केंद्र ने लगभग 9,600 युवाओं को प्रशिक्षित किया है, जो न केवल अपनी आजीविका कमा रहे हैं, बल्कि अपने समुदायों में नेतृत्व की भूमिका भी निभा रहे हैं।
इसके अलावा, मार्टिन ने दलित फाउंडेशन की स्थापना की, जो दलित समुदाय के लिए शोध और सहयोग को बढ़ावा देता है। इस फाउंडेशन ने दलित समुदायों के बीच एकजुटता को मजबूत करने और उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योगदान
मार्टिन मैकवान ने 1998 में स्थापित नेशनल कैंपेन ऑन दलित ह्यूमन राइट्स (NCDHR) के राष्ट्रीय संयोजक के रूप में भी काम किया। 1999 से 2001 तक, उन्होंने 2001 में डरबन में आयोजित विश्व सम्मेलन के खिलाफ नस्लवाद, नस्लीय भेदभाव, ज़ेनोफोबिया और संबंधित असहिष्णुता में भारतीय दलित प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया। इस सम्मेलन में उन्होंने जातिगत भेदभाव को वैश्विक मानवाधिकार उल्लंघन के रूप में मान्यता दिलाने की कोशिश की, जिसे भारत सरकार ने एक आंतरिक मुद्दा बताकर खारिज करने की कोशिश की।
मार्टिन का मानना है कि जाति व्यवस्था संयुक्त राष्ट्र के यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स का उल्लंघन करती है। उन्होंने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाकर दलितों की स्थिति को वैश्विक ध्यान में लाने का प्रयास किया।
सामाजिक न्याय के लिए अभिनव प्रयास
मार्टिन ने सामाजिक न्याय के लिए कई रचनात्मक पहल कीं। उन्होंने बच्चों के लिए किताबें लिखीं, शैक्षिक खिलौने डिजाइन किए, और युवाओं को जीवन कौशल में प्रशिक्षित किया। 2010 में, नवसर्जन ने गुजरात के 1,569 गांवों में 98,000 लोगों के बीच किए गए एक अध्ययन में 98 प्रकार के भेदभाव को दर्ज किया, जिसमें मंदिरों में प्रवेश पर रोक और स्कूलों में मिड-डे मील योजना में भेदभाव शामिल थे।
2023 में, मार्टिन ने दलित शक्ति केंद्र में एक संविधान संग्रहालय की स्थापना की, जो संविधान की शक्ति को प्रतीकात्मक रूप से दर्शाता है। इस संग्रहालय में एक मुक्केबाजी बैग को ‘छुआछूत’ के प्रतीक के रूप में रखा गया है, जो बच्चों को इसे पूरे जोश के साथ मारने के लिए प्रेरित करता है। यह संग्रहालय दलित समुदाय में संवैधानिक जागरूकता को बढ़ावा देने का एक अनूठा प्रयास है।
रॉबर्ट एफ. केनेडी ह्यूमन राइट्स अवार्ड
2000 में, मार्टिन मैकवान को उनके असाधारण योगदान के लिए रॉबर्ट एफ. केनेडी ह्यूमन राइट्स अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें दलितों के खिलाफ मानवाधिकार उल्लंघनों को समाप्त करने और सामाजिक न्याय के लिए उनके अथक प्रयासों के लिए दिया गया। उसी वर्ष, ह्यूमन राइट्स वॉच ने उन्हें वर्ष के पांच उत्कृष्ट मानवाधिकार रक्षकों में से एक के रूप में नामित किया। इसके अलावा, उन्हें ग्लिट्समैन फाउंडेशन द्वारा ‘एक्टिविस्ट ऑफ द ईयर अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया।
सामाजिक न्याय के लिए वित्तीय स्वतंत्रता
मार्टिन ने हमेशा सामुदायिक एकजुटता और आत्मनिर्भरता पर जोर दिया। हाल के वर्षों में, भारत सरकार द्वारा विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) में बदलाव के बाद, नवसर्जन ट्रस्ट को वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन मार्टिन ने इसे एक अवसर के रूप में देखा। उन्होंने अपने समुदाय से धन जुटाने की शुरुआत की, और केवल चार महीनों में 1.6 मिलियन रुपये इकट्ठा किए। यह सामुदायिक एकता और सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का एक शक्तिशाली उदाहरण है।
आज की प्रासंगिकता
मार्टिन मैकवान की लड़ाई आज भी प्रासंगिक है। 2016 में गुजरात के उना में चार दलित युवकों पर गौरक्षकों द्वारा हमला किए जाने की घटना ने उनके नेतृत्व में एक बड़े आंदोलन को जन्म दिया। इस घटना ने दलित समुदाय में गुस्से की लहर पैदा की, और मार्टिन ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर एकजुटता के लिए एक अवसर के रूप में इस्तेमाल किया।
2020 में, जब अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या ने #BlackLivesMatter आंदोलन को जन्म दिया, मार्टिन ने इसे भारत में दलितों की स्थिति से जोड़ा। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को एक खुला पत्र लिखकर अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर सवाल उठाए और दलितों और अश्वेतों की समानता की वकालत की।
मार्टिन मैकवान का जीवन एक ऐसी मिसाल है जो हमें सिखाती है कि व्यक्तिगत संघर्ष और सामाजिक अन्याय को साहस और समर्पण के साथ बदला जा सकता है। नवसर्जन ट्रस्ट, दलित शक्ति केंद्र, और दलित फाउंडेशन के माध्यम से उन्होंने न केवल दलित समुदाय को एक नई दिशा दी, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता की वैश्विक लड़ाई में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके प्रयासों ने हजारों लोगों को आत्मसम्मान और स्वतंत्रता का जीवन जीने की प्रेरणा दी है।
मार्टिन मैकवान आज भी दलितों की आवाज और समानता की प्रेरणा बने हुए हैं। उनका संदेश स्पष्ट है: सामाजिक न्याय तभी संभव है जब हम एकजुट होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ें और एक ऐसी दुनिया बनाएं जहां कोई भी भेदभाव का शिकार न हो।