trump tariffs impact on india economic analysis :अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा 2 अप्रैल, 2025 से लागू होने वाले आरोपित ‘पारस्परिक टैरिफ’ (रेसिप्रोकल टैरिफ) से भारत को होने वाले संभावित आर्थिक नुकसान का विषय वर्तमान में गंभीर चिंता का विषय बन गया है। ट्रंप ने अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र में घोषणा की है कि दुनिया के लगभग हर देश ने दशकों से अमेरिका का शोषण किया है और अब ऐसा नहीं होने देंगे। सिटी रिसर्च के अनुसार, भारत को इन टैरिफ के कारण प्रति वर्ष लगभग 7 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है, जिससे निर्यात क्षेत्र में व्यापक प्रभाव पड़ेगा और अर्थव्यवस्था की विकास दर प्रभावित होगी।
संभावित आर्थिक नुकसान का अनुमान
ट्रंप के पारस्परिक टैरिफ का भारत पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। सिटी रिसर्च के विश्लेषकों के अनुमान के अनुसार, इन टैरिफ के कारण भारत को प्रति वर्ष लगभग 7 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है। यह एक महत्वपूर्ण राशि है, विशेषकर जब हम विचार करें कि 2024 में भारत का अमेरिका को कुल निर्यात लगभग 74 अरब डॉलर था। इसका मतलब है कि भारत का निर्यात लगभग 9.5% तक घट सकता है।
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (इंड-रा) के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत का अमेरिका को निर्यात 2 अरब से 7 अरब डॉलर तक घट सकता है यदि अमेरिका द्वारा प्रस्तावित पारस्परिक टैरिफ लागू किए जाते हैं। चालू वित्त वर्ष के अप्रैल-दिसंबर के दौरान, भारत का अमेरिका को निर्यात 5.57% बढ़कर 59.93 अरब डॉलर हो गया था, जबकि अमेरिका से आयात 1.91% बढ़कर 33.4 अरब डॉलर हो गया था।
इंड-रा के मुख्य अर्थशास्त्री और सार्वजनिक वित्त प्रमुख देवेन्द्र कुमार पंत के अनुसार, नए टैरिफ के कारण भारत की जीडीपी विकास दर वर्तमान अनुमान 6.6% से 5-10 आधार अंक (बेसिस पॉइंट्स) कम हो सकती है। यह कमी छोटी लग सकती है, लेकिन व्यापक अर्थव्यवस्था पर इसका महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है।
एसबीआई की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर अमेरिका भारतीय निर्यात पर 20% फ्लैट टैरिफ लागू करता है, तो भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 50 बेसिस पॉइंट (बीपीएस) का नुकसान हो सकता है. हालांकि, यह एक काल्पनिक और बेहद असंभावित परिदृश्य है, लेकिन यह भारतीय अर्थव्यवस्था और विभिन्न क्षेत्रों पर संभावित प्रभाव को उजागर करता है4.
सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र
ट्रंप के टैरिफ से भारत के विभिन्न निर्यात क्षेत्र अलग-अलग स्तर पर प्रभावित होंगे। सिटी रिसर्च के अनुसार, सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्र रसायन, धातु उत्पाद और आभूषण हैं, इसके बाद ऑटोमोबाइल, फार्मास्युटिकल्स और खाद्य उत्पाद हैं।
2024 में भारत के अमेरिका को प्रमुख निर्यात में मोती, रत्न और आभूषण (8.5 अरब डॉलर), फार्मास्युटिकल्स (8 अरब डॉलर), और पेट्रोकेमिकल्स (लगभग 4 अरब डॉलर) शामिल थे। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, नवंबर 2023 के दौरान भारत से अमेरिका को निर्यात में प्रमुख रूप से मोती, कीमती और अर्द्ध-कीमती पत्थर (594 मिलियन डॉलर), पेट्रोलियम उत्पाद (522 मिलियन डॉलर), दवा फॉर्मूलेशन और जैविक उत्पाद (488 मिलियन डॉलर), टेलिकॉम उपकरण (320 मिलियन डॉलर), और कपास के रेडीमेड गारमेंट्स (247 मिलियन डॉलर) शामिल थे।
यदि अमेरिका व्यापक श्रेणी के कृषि उत्पादों पर पारस्परिक टैरिफ लगाता है, तो भारत के कृषि और खाद्य निर्यात – जहां टैरिफ अंतर सबसे अधिक है लेकिन व्यापार मात्रा कम है – सबसे अधिक प्रभावित होंगे। वस्त्र, चमड़ा और लकड़ी उत्पादों जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों को अपेक्षाकृत कम जोखिम का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि इनमें टैरिफ अंतर कम है या अमेरिका-भारत व्यापार में इनका हिस्सा सीमित है।
टैरिफ अंतर और ट्रंप का तर्क
ट्रंप का मुख्य तर्क यह है कि अन्य देश अमेरिका पर उससे कहीं अधिक टैरिफ लगाते हैं जितना अमेरिका उन पर लगाता है। उन्होंने विशेष रूप से भारत का उल्लेख करते हुए कहा, “भारत हम पर 100 प्रतिशत से अधिक ऑटो टैरिफ लगाता है।”।
2023 में, भारत ने आयात पर लगभग 11% का भारित औसत टैरिफ लगाया, जो भारतीय निर्यात पर अमेरिकी टैरिफ से 8.2 प्रतिशत अंक अधिक था। दूसरी ओर, भारत को अमेरिकी निर्यात, जिनका मूल्य 2024 में लगभग 42 अरब डॉलर था, पहले से ही उच्च टैरिफ का सामना करते हैं। इनमें लकड़ी के उत्पादों और मशीनरी पर 7% टैरिफ, फुटवियर और परिवहन उपकरण पर 15-20% टैरिफ, और कुछ खाद्य उत्पादों पर 68% टैरिफ शामिल हैं।
व्हाइट हाउस के एक हालिया तथ्य पत्रक के अनुसार, अमेरिका कृषि वस्तुओं पर औसतन 5% का सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र (एमएफएन) टैरिफ लगाता है, जबकि भारत समान उत्पादों पर 39% तक का टैरिफ लगाता है।
भारत की प्रतिक्रिया
टैरिफ संबंधी तनाव को कम करने के लिए, भारत ने पहले ही कुछ वस्तुओं पर टैरिफ में कमी की है, जिनमें शामिल हैं:
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हाई-एंड मोटरसाइकिल पर टैरिफ 50% से घटाकर 30% किया गया
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बोर्बन व्हिस्की पर टैरिफ 150% से घटाकर 100% किया गया
इसके अलावा, भारत ने अमेरिका से ऊर्जा आयात बढ़ाया है और वार्ता के हिस्से के रूप में अधिक रक्षा उपकरण खरीदे हैं।
भारत और अमेरिका 2030 तक अपने द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करके 500 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखते हैं। दोनों देश एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) पर भी बातचीत कर रहे हैं, जिसे 2025 के अंत तक अंतिम रूप दिए जाने की उम्मीद है।
वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल वर्तमान में अमेरिका में संयुक्त राज्य व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) जेमिसन ग्रीयर से मिलने के लिए गये हैं, जिन्हें ट्रंप की टैरिफ योजना को लागू करने का काम सौंपा गया है। ट्रंप ने दावा किया है कि भारत ने अमेरिकी आयात पर टैरिफ में कटौती करने पर सहमति जताई है, लेकिन भारत सरकार ने अभी तक इस दावे की अधिकारिक पुष्टि नहीं की है
भारत की स्थिति और तुलनात्मक असुरक्षितता
नोमुरा की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, इस व्यापार युद्ध में भारत एशियाई देशों में सबसे कम असुरक्षित देशों में से एक है। वियतनाम, ताइवान, थाईलैंड और मलेशिया जैसी अर्थव्यवस्थाएं, जो तुलनात्मक रूप से अप्रतिबंधित व्यापार नीतियों को बनाए रखती हैं, अमेरिकी सीमा शुल्क में वृद्धि से महत्वपूर्ण रूप से असुरक्षित हैं।
एशियाई देशों में, वियतनाम विशेष रूप से असुरक्षित है, क्योंकि इसके अमेरिका को निर्यात उसके सकल घरेलू उत्पाद का 25% हिस्सा हैं। इसकी तुलना में, भारत का अमेरिका को निर्यात उसके जीडीपी का कम प्रतिशत है, जिससे वह अपेक्षाकृत कम असुरक्षित है।
ट्रंप के पारस्परिक टैरिफ से भारत को प्रति वर्ष लगभग 7 अरब डॉलर तक का नुकसान हो सकता है, जो 2024 के कुल निर्यात मूल्य 74 अरब डॉलर का लगभग 9.5% है। इससे भारत की जीडीपी विकास दर में 5-10 आधार अंक की कमी आ सकती है। रसायन, धातु उत्पाद, आभूषण, ऑटोमोबाइल, फार्मास्युटिकल्स और खाद्य उत्पाद सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र होंगे।
भारत ने टैरिफ संबंधी तनाव को कम करने के लिए कुछ वस्तुओं पर शुल्क कम किए हैं और अमेरिका से ऊर्जा आयात बढ़ाया है। दोनों देश 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखते हैं और एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं।
हालांकि, नोमुरा की रिपोर्ट के अनुसार, भारत अन्य एशियाई देशों की तुलना में इस व्यापार युद्ध में कम असुरक्षित है, जिससे भारत की स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत हो सकती है। फिर भी, टैरिफ युद्ध से भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है, और इसके प्रभावों को कम करने के लिए रणनीतिक योजना की आवश्यकता होगी।
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