डोनाल्ड ट्रंप की जनवरी 2025 में शपथ ग्रहण क्यों होगी, और अमेरिकी राष्ट्रपति को जनवरी में ही क्यों सत्ता सौंप दी जाती है? चलिए, पूरी प्रक्रिया को आसान भाषा में समझते हैं ताकि हर कोई इसे समझ सके।
अमेरिका में राष्ट्रपति शपथ ग्रहण का इतिहास
1937 से पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति मार्च में शपथ लेते थे। लेकिन इस अंतराल के कारण “लेम डक” पीरियड आ जाता था। चार महीने का ये गैप जनता की इच्छा के खिलाफ कई बार गैर-सक्रिय सरकार को सत्ता में रखता था। फिर, 1933 में 20वें संशोधन के जरिए इस गैप को घटाया गया, और शपथ ग्रहण की तारीख 20 जनवरी निर्धारित कर दी गई। इस बदलाव का उद्देश्य था कि नया निर्वाचित राष्ट्रपति जल्दी से कार्यभार संभाल सके और अपने काम को अंजाम दे सके।
डोनाल्ड ट्रंप की जीत और आगे की औपचारिकताएँ
2024 के चुनाव में ट्रंप ने कमला हैरिस को हराया। हालांकि उन्हें नवंबर में जीत मिल गई, फिर भी शपथ 20 जनवरी 2025 को ही लेंगे। यह प्रोसेस संविधान में दी गई प्रक्रियाओं के तहत चलती है, और इसमें कई महत्वपूर्ण चरण शामिल होते हैं, जो चुनाव के दिन से लेकर शपथ ग्रहण के दिन तक होते हैं।
1. नवंबर में चुनाव का दिन
अमेरिका में चुनाव नवंबर में होता है, जिसमें जनता सीधे राष्ट्रपति को नहीं चुनती, बल्कि इलेक्टर्स (निर्वाचक) को चुनती है। ये इलेक्टर्स ही इलेक्टोरल कॉलेज का हिस्सा होते हैं जो उम्मीदवार का समर्थन करते हैं। 538 इलेक्टर्स में से 270 वोट हासिल करना किसी भी उम्मीदवार के लिए जरूरी होता है ताकि वह जीत सके।
2. दिसंबर में इलेक्टोरल कॉलेज की वोटिंग
इलेक्टर्स अपने राज्य के अनुसार उस उम्मीदवार को वोट देते हैं जिसने राज्य में अधिक वोट प्राप्त किए हों। 48 राज्यों में “विनर-टेक्स-ऑल” सिस्टम है, जिसमें सबसे ज्यादा वोट पाने वाले उम्मीदवार को राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट मिलते हैं। वहीं, मेन और नेब्रास्का में यह सिस्टम थोड़ा अलग है, यहां वोटों का वितरण जिलों के आधार पर होता है।
इलेक्टोरल कॉलेज वोटिंग को एक उदाहरण से समझते हैं:
मान लीजिए कि अमेरिका के किसी राज्य, जैसे फ्लोरिडा में, दो उम्मीदवार (जैसे ट्रंप और हैरिस) चुनाव में खड़े हैं। वहां के लोग अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट देते हैं। फ्लोरिडा में “विनर-टेक्स-ऑल” सिस्टम लागू है, मतलब जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा वोट हासिल करता है, उसे राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट मिलते हैं।
उदाहरण:
फ्लोरिडा के 29 इलेक्टोरल वोट हैं।
अगर ट्रंप को 51% और हैरिस को 49% वोट मिलते हैं, तो फ्लोरिडा के सभी 29 इलेक्टोरल वोट ट्रंप को मिलेंगे, भले ही अंतर बहुत ही छोटा क्यों न हो।
अब मेन और नेब्रास्का में थोड़ा अलग सिस्टम है, जहां इलेक्टोरल वोट जिलों के हिसाब से बांटे जाते हैं। मान लीजिए मेन के 4 इलेक्टोरल वोट हैं:
अगर 2 जिले ट्रंप के पक्ष में वोट करते हैं और 2 हैरिस के पक्ष में, तो दोनों उम्मीदवारों को मेन के इलेक्टोरल वोटों में हिस्सा मिलेगा।
उदाहरण:
अगर ट्रंप ने 2 जिले और हैरिस ने 2 जिले जीते हैं, तो दोनों को 2-2 इलेक्टोरल वोट मिलेंगे।
इस तरह, “विनर-टेक्स-ऑल” सिस्टम में पूरा राज्य जीतने वाले उम्मीदवार को मिलता है, जबकि मेन और नेब्रास्का में वोटों का वितरण अधिक संतुलित ढंग से होता है।
अगर फ्लोरिडा में दोनों कैंडिडेट्स को बराबर प्रतिशत वोट मिलते हैं, तो स्थिति वास्तव में टाई (Tie) हो सकती है। लेकिन “विनर-टेक्स-ऑल” सिस्टम में, यदि वोटों का अंतर बहुत कम होता है और दोनों कैंडिडेट्स को बराबर वोट मिलते हैं, तो इसे सुलझाने का तरीका अलग होता है। आमतौर पर फ्लोरिडा में ऐसे मामलों में:
1. स्वचालित पुनःगणना (Automatic Recount): अगर वोटों का अंतर 0.5% से कम होता है, तो राज्य में स्वचालित रूप से पुनःगणना होती है। यह प्रक्रिया टाई की स्थिति से निपटने के लिए जरूरी है।
2. राज्य के चुनाव अधिकारियों द्वारा निर्णय: पुनःगणना के बाद भी यदि परिणाम बराबर रहते हैं (टाई), तो राज्य चुनाव अधिकारियों या न्यायालय द्वारा निर्णय लिया जाता है। यह बहुत ही असामान्य स्थिति है, लेकिन कभी-कभी इस स्थिति में लॉटरी या न्यायालय का आदेश होता है, ताकि यह तय किया जा सके कि कौन विजेता है।
3. फ्लोरिडा की विशेष स्थिति: फ्लोरिडा के नियमों के अनुसार, टाई होने की स्थिति में, राज्य की न्यायपालिका चुनाव परिणामों का अंतिम निर्णय करती है। वे पुनःगणना के बाद भी इस निर्णय को तय कर सकते हैं कि किसे इलेक्टोरल वोट मिलेगा।
लेकिन सामान्यत: फ्लोरिडा जैसी जगहों पर, अगर दोनों कैंडिडेट्स के वोट बराबर होते हैं, तो आमतौर पर एक पुनःगणना (Recount) या निर्णय प्रक्रिया से यह स्थिति सुलझाई जाती है, और एक विजेता को घोषित किया जाता है।
3. जनवरी में काउंटिंग सेशन
सीनेट के प्रेसिडेंट यानी उपराष्ट्रपति के पास सभी इलेक्टोरल वोट भेजे जाते हैं, जो औपचारिक रूप से 6 जनवरी को जॉइंट सेशन में गिने जाते हैं। यहां, यदि उम्मीदवार को बहुमत मिल जाता है, तो उसे आधिकारिक रूप से राष्ट्रपति घोषित किया जाता है।
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इसे और सरल तरीके से समझते हैं:
जनवरी में काउंटिंग सेशन कैसे होता है?
6 जनवरी को काउंटिंग सेशन: जनवरी में, सभी राज्यों से इलेक्टोरल वोट इकट्ठा होकर उपराष्ट्रपति के पास पहुँच जाते हैं। फिर, 6 जनवरी को संसद (Congress) में एक बैठक होती है, जिसे जॉइंट सेशन कहते हैं, जिसमें उपराष्ट्रपति इलेक्टोरल वोट की गिनती करते हैं।
अधिकारिक घोषणा: गिनती के बाद अगर किसी उम्मीदवार को बहुमत मिल जाता है (यानी, 270 या उससे ज्यादा वोट), तो उसी समय उसे अधिकारिक रूप से राष्ट्रपति घोषित कर दिया जाता है।
उदाहरण से समझें: जैसे, मान लीजिए बाइडेन को 306 और ट्रम्प को 232 इलेक्टोरल वोट मिले। 6 जनवरी को, जब इन वोटों की औपचारिक गिनती की जाएगी, तो बाइडेन को बहुमत मिल जाएगा और वह आधिकारिक रूप से राष्ट्रपति घोषित हो जाएंगे।
अगर किसी को बहुमत न मिले तो क्या होता है?
अगर काउंटिंग के बाद भी कोई उम्मीदवार 270 वोट नहीं पाता है, तो इसे बहुमत की कमी (No Majority) कहते हैं। ऐसी स्थिति में, क्या होता है:
1. प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव: अगर किसी को बहुमत न मिले, तो राष्ट्रपति का चुनाव प्रतिनिधि सभा करती है।
2. वोटिंग का तरीका: इस वोटिंग में, हर राज्य को केवल एक वोट मिलता है। राज्य के प्रतिनिधि मिलकर निर्णय लेते हैं कि वह किस उम्मीदवार को वोट देंगे।
3. अधिकांश राज्य जीतने पर राष्ट्रपति: जिस उम्मीदवार को अधिकतर राज्यों का समर्थन मिलता है, उसे राष्ट्रपति घोषित किया जाता है।
उदाहरण से समझें: मान लीजिए किसी कारण से बाइडेन और ट्रम्प दोनों के बीच टाई हो गई, यानी दोनों के पास 269-269 इलेक्टोरल वोट हैं। ऐसी स्थिति में, प्रतिनिधि सभा में हर राज्य के प्रतिनिधि एक वोट के साथ मतदान करेंगे। 50 राज्यों में जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा वोट जीतता है, वह राष्ट्रपति बन जाता है।
इस तरह, अगर 6 जनवरी की काउंटिंग में भी कोई स्पष्ट बहुमत न मिलता हो, तो प्रतिनिधि सभा एक आखिरी तरीका होता है राष्ट्रपति का चयन करने के लिए।
इस बार 2024 का इलेक्शन डोनाल्ड ट्रंप जीत गए हैं कमला हैरिस हार गई है 6 जनवरी की वोटिंग काउंटिंग में अगर कमला हैरिस को ज्यादा वोट मिल गए और ट्रंप को कम तो क्या होगा क्या ऐसा हो सकता है?
6 जनवरी की काउंटिंग में ऐसा नहीं हो सकता कि कमला हैरिस को अचानक से ज्यादा वोट मिल जाएँ और ट्रम्प के वोट कम हो जाएँ, क्योंकि 6 जनवरी की गिनती सिर्फ एक औपचारिक प्रक्रिया होती है, जिसमें सभी राज्यों से भेजे गए इलेक्टोरल वोट की गिनती होती है।
क्यों नहीं हो सकता ऐसा?
1. इलेक्टोरल वोट पहले ही तय हो जाते हैं: सभी राज्यों में इलेक्टोरल कॉलेज की वोटिंग दिसंबर में ही हो चुकी होती है, जहाँ इलेक्टर्स अपने राज्य में ज्यादा वोट पाने वाले उम्मीदवार के पक्ष में वोट डाल चुके होते हैं। ये वोट फिर सील होकर उपराष्ट्रपति के पास भेजे जाते हैं।
2. 6 जनवरी को सिर्फ गिनती होती है, बदलाव नहीं: इस दिन सिर्फ इलेक्टोरल वोट की गिनती की जाती है और उसे औपचारिक रूप से रिकॉर्ड में दर्ज किया जाता है। ये कोई चुनावी वोट नहीं है, बल्कि जो वोट इलेक्टर्स ने दिसंबर में डाले हैं, उन्हीं की गिनती होती है।
3. कानूनी रूप से भी कोई बदलाव नहीं किया जा सकता: एक बार जब इलेक्टर्स ने अपना वोट डाल दिया और वो सील होकर वाशिंगटन डी.सी. भेज दिए गए, तो उस गिनती में कोई बदलाव नहीं हो सकता।
क्या होगा अगर कोई बहस या आपत्ति उठती है?
6 जनवरी की गिनती के दौरान अगर किसी राज्य के वोट को लेकर कोई आपत्ति होती है, तो कुछ शर्तों के अनुसार सांसद (संसद के सदस्य) बहस कर सकते हैं, लेकिन यह बहस नतीजे को बदल नहीं सकती है, जब तक कि कोई वैध कानूनी आधार न हो।
संक्षेप में: एक बार इलेक्टोरल वोट फाइनल हो जाते हैं, तो 6 जनवरी की गिनती में केवल रिकॉर्डिंग होती है। इससे किसी उम्मीदवार का नतीजा नहीं बदल सकता, चाहे किसी भी तरह की बहस या आपत्ति क्यों न उठे।
4. ट्रांजीशन पीरियड, सत्ता हस्तांतरण
नवंबर से जनवरी तक का समय नई सरकार की तैयारी का समय होता है। इस दौरान, निर्वाचित राष्ट्रपति अपनी टीम तैयार करते हैं, कैबिनेट के सदस्य चुनते हैं, और आगामी नीतियों पर काम शुरू करते हैं।
शपथ ग्रहण समारोह – एक महत्वपूर्ण दिन
संविधान के अनुच्छेद II, सेक्शन 1 में शपथ दी गई है:
“मैं ईश्वर की शपथ लेकर प्रतिज्ञा करता/करती हूं कि मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति का कार्यभार निष्ठा से निभाऊंगा/निभाऊंगा और अपनी पूरी शक्ति से संविधान की रक्षा, संरक्षण और समर्थन करूंगा/करूंगी.”
हर राष्ट्रपति ने जॉर्ज वॉशिंगटन के बाद से यह शपथ ली है, और इसे दोहराना उद्घाटन समारोह का एक केंद्रीय हिस्सा बन गया है.
20 जनवरी को नया राष्ट्रपति दोपहर 12 बजे शपथ लेकर औपचारिक रूप से सत्ता संभालते हैं। इस दौरान उन्हें उद्घाटन भाषण देना होता है और फिर एक परेड आयोजित होती है जिसमें जनता के बीच राष्ट्रपति की शक्ति का हस्तांतरण शांति और गौरव के साथ दिखाया जाता है।
शपथ ग्रहण एक सामान्य औपचारिकता नहीं, बल्कि नई सरकार की शुरुआत का प्रतीक है।
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