सुप्रीम कोर्ट ने सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी पर केंद्र और राज्यों को लगाई कड़ी फटकार, बोला कि आयोग बनाकर क्या फायदा जब काम करने वाले नहीं है

Supreme Court's displeasure over delays in appointments at Information Commissions

सुप्रीम कोर्ट का गुस्सा, सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी पर केंद्र और राज्यों को कड़ी फटकार सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (7 जनवरी, 2025) को सूचना आयोगों में सूचना आयुक्तों की नियुक्तियों में हो रही देरी पर केंद्र और राज्यों को कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने सवाल उठाया कि अगर नियुक्तियां ही नहीं हो रही हैं, तो सूचना के अधिकार (RTI) के तहत बनाएं गए संस्थान और कानून का क्या फायदा है। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को तत्काल नियुक्ति प्रक्रिया को तेज़ी से पूरा करने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के निर्देश दिए।

सूचना आयोगों में खाली पद और लंबित मामले

सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि केंद्रीय सूचना आयोग में सूचना आयुक्तों के आठ पद खाली पड़े हैं, और इन खाली पदों के कारण करीब 23,000 अपीलें लंबित हैं। इसके अलावा, कई राज्य सूचना आयोग 2020 से निष्क्रिय हो गए हैं और कुछ ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत याचिकाएं स्वीकार करना तक बंद कर दिया है। अदालत ने पूछा, “अगर संस्थान बनाया गया है, लेकिन काम करने वाले लोग नहीं होंगे, तो इसका क्या उपयोग है?”

अंजलि भारद्वाज, जो कि सूचना के अधिकार के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रही हैं, उनके वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में बताया कि 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद और 2023-24 में पारित आदेशों के बाद भी नियुक्तियां समय पर नहीं हो रही हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह स्थिति इसी तरह बनी रही, तो सूचना आयोग को निष्क्रिय कर दिया जाएगा।

केंद्र सरकार का जवाब

केंद्र सरकार ने अदालत में बताया कि अगस्त 2024 में सूचना आयुक्तों के पदों के लिए आवेदन मांगे गए थे और उन्हें 161 आवेदन प्राप्त हुए थे, लेकिन चयन प्रक्रिया अभी भी चल रही है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग को आदेश दिया कि वह दो हफ्तों के भीतर हलफनामा दाखिल करें और बताएं कि चयन प्रक्रिया कब पूरी होगी, चयन समिति अपनी सिफारिशें कब फाइनल करेगी, और आठ सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की अधिसूचना कब जारी की जाएगी।

झारखंड की विशेष परिस्थिति

सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के मामले को भी गंभीरता से लिया, जहां राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति के कारण राज्य सूचना आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया रुकी हुई है। झारखंड सूचना आयोग 2020 से निष्क्रिय है और वहां 8,000 से अधिक अपीलें लंबित हैं। कोर्ट ने राज्य में विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी को निर्देश दिया कि वह चयन समिति के लिए अपने किसी सदस्य को नामित करे और 10 हफ्तों के भीतर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करे।

राज्य सरकारों को सख्त निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने उन राज्यों को भी फटकार लगाई जिन्होंने चयन प्रक्रिया शुरू की तो थी, लेकिन उसे पूरा करने की कोई समयसीमा तय नहीं की थी। कोर्ट ने उन्हें आदेश दिया कि दो हफ्तों के भीतर वे आवेदकों की सूची और चयन समिति के गठन की जानकारी दें और आठ हफ्तों के भीतर प्रक्रिया पूरी करें। राज्यों के मुख्य सचिवों को अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया गया।

सतर्क नागरिक संगठन की रिपोर्ट: लंबित मामले बढ़ रहे हैं

सतर्क नागरिक संगठन द्वारा अक्टूबर 2023 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, देश भर के सूचना आयोगों में चार लाख से अधिक शिकायतें और अपीलें लंबित हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि सूचना आयोगों में रिक्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है और कई आयोग निष्क्रिय हो चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 30 जून, 2024 तक भारत के सभी 29 सूचना आयोगों में लंबित अपीलों और शिकायतों की संख्या 4,05,509 थी। एक साल पहले 30 जून, 2023 तक यह संख्या 3,88,886 थी। पिछले पांच सालों में लंबित मामलों में 1,87,162 मामलों की बढ़ोतरी हुई है।

क्या आरटीआई को कमजोर किया जा रहा है? सूचना के अधिकार (RTI)

अंजलि भारद्वाज ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि 2005 में आरटीआई कानून को मज़बूत किया गया था, लेकिन अब उसका सही से पालन नहीं हो रहा है। वह बैकलॉग को गंभीर समस्या मानती हैं और कहती हैं, “मामले लंबित होने से लोगों को बहुत समय तक इंतज़ार करना पड़ रहा है। हमारी रिपोर्ट बताती है कि अगर छत्तीसगढ़ और बिहार में एक नया आरटीआई दायर किया जाए तो उसकी सुनवाई का नंबर आने में चार से पांच साल तक का समय लग सकता है। अगर सूचना इतनी देरी से मिलेगी, तो उसका क्या मतलब रह जाएगा?”

अंजलि भारद्वाज का कहना है कि सरकारें लगातार अलग-अलग प्रयास कर रही हैं ताकि लोगों को सूचना न मिले, क्योंकि जब सूचना सामने आती है, तो सरकारों पर कई सवाल उठते हैं। ऐसे में लोग मजबूरी में सूचना आयोगों में जाकर अपील करते हैं। उनका कहना है कि सूचना आयोगों का काम यह है कि अगर सरकार किसी जानकारी को छिपाना चाहती है, तो वह सूचना आयुक्तों का कर्तव्य है कि वे सरकार से वह जानकारी प्राप्त कर जनता तक पहुंचाएं।

सूचना आयुक्तों की भूमिका पर जोर

अंजलि भारद्वाज का कहना है कि सूचना आयोगों का सही से काम करना आवश्यक है, ताकि लोग सरकार से अपनी आवश्यक जानकारी प्राप्त कर सकें। उन्होंने यह भी कहा कि जिन अधिकारियों ने सूचना नहीं दी, उन पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए। उनका संगठन लंबे समय से सूचना के अधिकार का इस्तेमाल कर वंचित समूहों को उनका अधिकार दिलाने का काम कर रहा है। यह भी पढ़ो : पटना मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में लाखों की नोटों की गड्डी ,शराब और NEET-पीजी एडमिट कार्ड,OMR Sheets मिलने से मची ख़लबली

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