भारत में टैक्स स्लैब: 1947 से 2025 तक के बदलावों का तुलनात्मक विश्लेषण – नेहरू से मोदी तक

आपका भारत टाइम्स
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान अपने एक चुनावी भाषण में दावा किया कि, ”साल का 12 लाख कमाने वाले को इनकम टैक्स से इतनी बड़ी राहत पहले कभी नहीं मिली. इस बजट को आप देखें. 10-12 साल पहले तक कांग्रेस की सरकार में अगर आप 12 लाख कमाते तो आपको 2 लाख 60 हज़ार रुपये टैक्स में देना पड़ता।” इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, अगर नेहरू जी के समय में आप 12 लाख कमाते, तो एक चौथाई सैलरी टैक्स के रूप में सरकार ले लेती और इंदिरा गांधी के शासनकाल में तो 12 लाख की कमाई पर 10 लाख रुपये टैक्स में चला जाता।

Contents
📜 नेहरू और इंदिरा सरकार के समय सैलरी, सरकारी नौकरियां और समाजवाद का असरनेहरू युग (1947-1964): सैलरी, सरकारी नौकरियां और समाजवाद की शुरुआत1947 से 1950 तक – आज़ादी के बाद की पहली आयकर प्रणालीटैक्स स्लैब (1947-1950):🔎 सरकारी नौकरियों की स्थिति (1950s-60s) नेहरू सरकार के टैक्स बढ़ाने के कारणइंदिरा गांधी का कार्यकाल (1966-1977, 1980-1984) और समाजवाद का चरम🔎 सरकारी नौकरियों की स्थिति (1970s-80s)1966-1977 और 1980-1984: इंदिरा गांधी का कार्यकाल और टैक्स नीति इंदिरा सरकार के टैक्स बढ़ाने के कारणराजीव गांधी का कार्यकाल (1984-1989) टैक्स स्लैब और लोगों की आय:टैक्स स्लैब (1984-1989):लोगों की आय (1984-1989):1991 से 2000 तक – आर्थिक सुधार और उदारीकरणटैक्स स्लैब (1991-2000):एनडीए सरकार (1998-2004)टैक्स स्लैब (1998-2004):लोगों की आय (1998-2004):मनमोहन सिंह की सरकार (2004-2014)टैक्स स्लैब (2004-2014):लोगों की आय (2004-2014): 2014-2024: मोदी सरकार की टैक्स नीति2024: मोदी सरकार, सैलरी और सरकारी नौकरियांसरकारी नौकरियों की स्थिति (2024)नया टैक्स स्लैब (2025-26):मोदी सरकार में टैक्स कम क्यों हुआ?

प्रधानमंत्री के इस बयान ने टैक्स नीति पर पुराने और वर्तमान समय के बीच के फर्क को उजागर किया है। हालांकि, जब हम इस बयान को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखें, तो यह बात समझना जरूरी है कि नेहरू और इंदिरा गांधी के समय में देश की अर्थव्यवस्था और टैक्स नीति पूरी तरह से अलग थी। आजादी के बाद के दौर में देश की प्राथमिकताएं और हालात भी बहुत अलग थे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई मोदी सरकार की टैक्स राहत उतनी बड़ी है, जितनी दिखाने की कोशिश की जा रही है, और क्या नेहरू और इंदिरा गांधी के समय की टैक्स नीतियां वास्तव में इतनी कठोर थीं?

इस आर्टिकल में हम नरेंद्र मोदी के बयान का विश्लेषण करेंगे और साथ ही भारतीय टैक्स सिस्टम के इतिहास, उसकी बदलती परिस्थितियों और मोदी सरकार की नीतियों का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे।

भारत में टैक्स स्लैब: 1947 से 2025 तक के बदलावों का तुलनात्मक विश्लेषण – नेहरू से मोदी तक

  1. नेहरू और इंदिरा गांधी का समाजवादी दौर (1947-1980)
  2. राजीव गांधी का उदारीकरण और सुधार (1980-1991)
  3. मनमोहन सिंह का आर्थिक सुधार दौर (1991-2000)
  4. मनमोहन सिंह के बाद (2000-2014)

नरेंद्र मोदी का दौर (2014-2025) – सरल टैक्स स्लैब, GST और प्रौद्योगिकीय सुधारों के साथ टैक्स नीति में बदलाव।

📜 नेहरू और इंदिरा सरकार के समय सैलरी, सरकारी नौकरियां और समाजवाद का असर

प्रधानमंत्री मोदी के बयान के बाद यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि नेहरू और इंदिरा गांधी के समय लोगों की सैलरी कितनी थी, कितने लोग सरकारी नौकरियों में थे, और उस वक्त समाजवाद को बढ़ावा देने के पीछे क्या कारण थे।


नेहरू युग (1947-1964): सैलरी, सरकारी नौकरियां और समाजवाद की शुरुआत

🔹 नेहरू जी ने 1947 में सत्ता संभाली थी, तब भारत ब्रिटिश शासन से उभर रहा था।
🔹 देश में बहुत कम उद्योग थे, ज़्यादातर लोग खेती पर निर्भर थे।
🔹 मध्यम वर्ग नाममात्र का था, और अमीर-गरीब की खाई बहुत गहरी थी।नेहरू जी के समय में भारत के पास एक कमजोर अर्थव्यवस्था थी, जो स्वतंत्रता के बाद पुनर्निर्माण की प्रक्रिया से गुजर रही थी। उन्होंने समाजवाद को बढ़ावा देने के लिए औद्योगिकीकरण, बैंकों का राष्ट्रीयकरण और बड़े उद्योगों पर सरकारी नियंत्रण लगाने की नीतियां अपनाईं। यह समय था जब सरकारी नौकरियों का महत्व बढ़ा और आम भारतीय की सैलरी बहुत कम थी।

नेहरू युग (1947-1964): सैलरी, सरकारी नौकरियां और समाजवाद की शुरुआत

1947 से 1950 तक – आज़ादी के बाद की पहली आयकर प्रणाली

आज़ादी के बाद, भारतीय सरकार ने ब्रिटिश शासन के दौरान लागू टैक्स संरचना को कुछ हद तक जारी रखा। इस समय टैक्स स्लैब काफी सख्त थे, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में पुनर्निर्माण के लिए भारी राजस्व की आवश्यकता थी।

टैक्स स्लैब (1947-1950):

  • आय ₹10,000 तक: कोई टैक्स नहीं
  • ₹10,001 से ₹20,000 तक: 10% टैक्स
  • ₹20,001 से ₹50,000 तक: 15% टैक्स
  • ₹50,001 से ₹1 लाख तक: 20% टैक्स
  • ₹1 लाख से ऊपर: 30% टैक्स1947-1964: नेहरू युग और टैक्स नीति

🔎 सरकारी नौकरियों की स्थिति (1950s-60s)

1951 में सरकारी कर्मचारी मात्र 24 लाख थे।
जनसंख्या 36 करोड़ थी, यानी केवल 0.67% लोग सरकारी नौकरी में थे।
ज़्यादातर लोग खेती, छोटे उद्योगों और व्यापार से जुड़े थे।
सरकार ने बड़े उद्योग खड़े करने के लिए भारी टैक्स लगाया।

📌 नेहरू सरकार का मकसद
✔️ सरकार खुद उद्योग लगाएगी, ताकि जनता को रोज़गार मिले।
✔️ बैंक, रेलवे, कोयला, इस्पात जैसे उद्योगों को सरकारी नियंत्रण में रखा गया।
✔️ प्राइवेट सेक्टर पर कम भरोसा किया गया।

नेहरू सरकार के टैक्स बढ़ाने के कारण

ब्रिटिश शोषण के बाद देश को खड़ा करना था।
बड़े उद्योग खड़ा करने के लिए पूंजी चाहिए थी (PSUs, IITs, बड़े डैम, स्टील प्लांट्स आदि)।
आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा थी, इसलिए अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाया गया।
रक्षा और कृषि क्षेत्र के लिए फंडिंग जरूरी थी।

📌 हकीकत: नेहरू सरकार में मध्यम वर्ग नाममात्र था। आम आदमी टैक्स के दायरे में नहीं था। केवल बहुत अमीर लोग ही अधिक टैक्स भरते थे।

इंदिरा गांधी का कार्यकाल (1966-1977, 1980-1984) और समाजवाद का चरम

🔹 इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया और समाजवादी नीतियों को और आगे बढ़ाया।
🔹 उन्होंने बड़े उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया और बैंकों को सरकार के अधीन लाया।
🔹 इससे सरकारी नौकरियों और वेतन में बदलाव आया।इंदिरा गांधी का कार्यकाल: समाजवाद और राष्ट्रीयकरण, सैलरी और सरकारी नौकरियां

🔎 सरकारी नौकरियों की स्थिति (1970s-80s)

1971 में सरकारी कर्मचारियों की संख्या 45 लाख हो गई थी।
जनसंख्या 54 करोड़ थी, यानी 0.83% लोग सरकारी नौकरी में थे।
इंदिरा सरकार ने 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और सरकारी सेक्टर में नौकरियों के अवसर बढ़ाए।
सरकारी क्षेत्र में अधिक भर्तियों की वजह से सरकारी वेतन थोड़ा बढ़ा, लेकिन टैक्स भी बढ़ा।

📌 इंदिरा सरकार का मकसद
✔️ सरकार को आर्थिक शक्तिशाली बनाना, ताकि गरीबों की मदद हो सके।
✔️ बैंकों, कोयला, इस्पात, उर्वरक कंपनियों को सरकार के नियंत्रण में लाना।
✔️ सरकार द्वारा रोज़गार पैदा करना और प्राइवेट सेक्टर पर नियंत्रण रखना।

1966-1977 और 1980-1984: इंदिरा गांधी का कार्यकाल और टैक्स नीति

🔹 इंदिरा गांधी ने कुल मिलाकर 16 साल (1966-1977, 1980-1984) तक शासन किया।
🔹 उनके समय में भारत में समाजवाद चरम पर था।
🔹 टैक्स दरें 97.75% तक चली गई थीं!1966-1977 और 1980-1984: इंदिरा गांधी का कार्यकाल और टैक्स नीति

इंदिरा सरकार के टैक्स बढ़ाने के कारण

गरीबों और मजदूर वर्ग को ऊपर उठाने के लिए “गरीबी हटाओ” अभियान चला।
बैंकों और बड़े उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया गया, जिसके लिए पैसे चाहिए थे।
भारत-पाकिस्तान युद्ध (1971) और बांग्लादेश निर्माण के बाद भारी आर्थिक संकट आया।
तेल संकट और वैश्विक मंदी की वजह से सरकार को राजस्व बढ़ाने की जरूरत थी।

📌 हकीकत: इंदिरा गांधी की सरकार में वास्तव में टैक्स बहुत ज्यादा था, लेकिन वह केवल अमीरों पर लागू होता था।
➡️ आम नौकरीपेशा व्यक्ति ज्यादा टैक्स नहीं भरता था।
➡️ आर्थिक असमानता इतनी ज्यादा थी कि सरकार को धनी वर्ग से टैक्स लेकर गरीबों पर खर्च करना पड़ा।

राजीव गांधी का कार्यकाल (1984-1989) टैक्स स्लैब और लोगों की आय:

राजीव गांधी का कार्यकाल भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उन्होंने तकनीकी सुधारों, सरकारी नियंत्रण को कम करने और आयकर स्लैब में बदलाव की दिशा में कदम उठाए। राजीव गांधी की सरकार ने समाजवाद की नीतियों को कुछ हद तक मॉडर्नाइज किया और भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक उदारवादी बनाने की दिशा में काम किया।

टैक्स स्लैब (1984-1989):

  • राजीव गांधी ने टैक्स स्लैब में बदलाव किया, जिससे आम लोगों को थोड़ी राहत मिली। हालांकि, टैक्स स्लैब की दरें अभी भी उच्च थीं।
  • आयकर दरें:
    • ₹2 लाख तक की आय पर 20% टैक्स
    • ₹2 लाख से ₹5 लाख तक की आय पर 40% टैक्स
    • ₹5 लाख से ऊपर की आय पर 50% टैक्स

यह समय था जब उच्चतम टैक्स दरें थीं, लेकिन राजीव गांधी ने इस दौरान देश में सूचना तकनीकी (IT) और संचार के क्षेत्र में सुधार करने की दिशा में भी कदम उठाए।

लोगों की आय (1984-1989):

  • औसत आय: इस समय औसत आय ₹3,000 से ₹5,000 प्रति माह के बीच थी, जो एक बड़े वर्ग के लिए बहुत कम थी।

सरकारी नौकरियां: सरकारी नौकरियों में संख्या बढ़ी, और सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसर पहले से बेहतर हुए।

1991 से 2000 तक – आर्थिक सुधार और उदारीकरण

1991 में, भारत में मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री बनने के बाद अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव हुए। इसके साथ ही आयकर स्लैब में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। मनमोहन सिंह ने आर्थिक सुधारों के तहत टैक्स की दरों को कम किया और जीडीपी को बढ़ाने के लिए बाजार के अनुकूल नीतियां बनाई।

टैक्स स्लैब (1991-2000):

  • ₹1,50,000 तक: कोई टैक्स नहीं
  • ₹1,50,001 से ₹3,00,000 तक: 10% टैक्स
  • ₹3,00,001 से ₹5,00,000 तक: 20% टैक्स
  • ₹5,00,000 से ऊपर: 30% टैक्स

इस समय टैक्स स्लैब का उद्देश्य आर्थिक सुधार और अधिक राजस्व संग्रह था। धीरे-धीरे भारत की अर्थव्यवस्था ने विस्तार किया और मिडल क्लास को राहत मिली।

एनडीए सरकार (1998-2004)

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने भी आयकर और टैक्स स्लैब में कुछ सुधार करने की दिशा में कदम उठाए। इस सरकार ने आर्थिक सुधारों के साथ-साथ भारत की वैश्विक आर्थिक स्थिति में सुधार की दिशा में भी प्रयास किए।

टैक्स स्लैब (1998-2004):

  • आयकर दरें:
    • ₹1 लाख तक की आय पर कोई टैक्स नहीं
    • ₹1 लाख से ₹1.5 लाख तक पर 10%
    • ₹1.5 लाख से ₹3 लाख तक पर 20%
    • ₹3 लाख से ऊपर पर 30% टैक्स

लोगों की आय (1998-2004):

औसत आय: इस समय औसत आय ₹6,000 से ₹12,000 प्रति माह के बीच हो गई थी।

सरकारी नौकरियां: सरकारी नौकरियों में लगातार वृद्धि हुई, लेकिन निजी क्षेत्र में भी अधिक अवसर बढ़े।

मनमोहन सिंह की सरकार (2004-2014)

मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारत ने वैश्विक मंदी का सामना किया, लेकिन उन्होंने अपनी आर्थिक नीतियों के जरिए देश की अर्थव्यवस्था को संजीवनी देने का प्रयास किया। इस दौरान टैक्स स्लैब में कुछ राहत दी गई थी, जिससे आम आदमी को थोड़ी राहत मिली।

टैक्स स्लैब (2004-2014):

  • आयकर दरें:
    • ₹2.5 लाख तक की आय पर कोई टैक्स नहीं
    • ₹2.5 लाख से ₹5 लाख तक पर 10%
    • ₹5 लाख से ₹10 लाख तक पर 20%
    • ₹10 लाख से ऊपर पर 30% टैक्स

लोगों की आय (2004-2014):

  • औसत आय: औसत मासिक आय ₹15,000 से ₹30,000 तक बढ़ गई थी। यह वह समय था जब मेट्रो शहरों में लोगों की सैलरी में तेजी से बढ़ोतरी हुई।

सरकारी नौकरियां: सरकारी नौकरियों में बढ़ोतरी हुई, लेकिन सरकारी क्षेत्र में नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी।

2014-2024: मोदी सरकार की टैक्स नीति

🔹 मोदी सरकार ने टैक्स को कम करने का दावा किया है।
🔹 नई टैक्स व्यवस्था में ऊपरी स्लैब 30% रखा गया है।

2024: मोदी सरकार, सैलरी और सरकारी नौकरियां

🔹 मोदी सरकार निजीकरण को बढ़ावा दे रही है और सरकारी नौकरियां लगातार घट रही हैं।
🔹 आज नौकरीपेशा लोगों की सैलरी ज्यादा दिखती है, लेकिन महंगाई भी उसी अनुपात में बढ़ी है।2024: मोदी सरकार, सैलरी और सरकारी नौकरियां, 2024 में लोगों की औसत सैलरी

सरकारी नौकरियों की स्थिति (2024)

आज भारत में 3.2 करोड़ सरकारी कर्मचारी हैं।
जनसंख्या 140 करोड़ है, यानी सिर्फ 2.2% लोग सरकारी नौकरी में हैं।
90% से ज्यादा लोग अब प्राइवेट सेक्टर, खेती और व्यापार से जुड़े हैं।
निजीकरण के कारण सरकारी भर्तियां बहुत कम हो गई हैं।

📌 मोदी सरकार का मकसद
✔️ सरकारी नौकरियां कम करना और प्राइवेट सेक्टर को बढ़ावा देना।
✔️ सरकारी कंपनियों को बेचकर निजी हाथों में देना (BPCL, LIC, रेलवे, एयर इंडिया आदि)।
✔️ कॉरपोरेट टैक्स कम करना और बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाना।टैक्स स्लैब (2023-24, मोदी सरकार)

नया टैक्स स्लैब (2025-26):

  1. ₹0 – ₹4 लाख: कोई टैक्स नहीं
  2. ₹4 लाख – ₹8 लाख: 5% टैक्स
  3. ₹8 लाख – ₹12 लाख: 10% टैक्स
  4. ₹12 लाख – ₹16 लाख: 15% टैक्स
  5. ₹16 लाख – ₹20 लाख: 20% टैक्स
  6. ₹20 लाख – ₹24 लाख: 25% टैक्स

₹24 लाख से ऊपर: 30% टैक्स

मोदी सरकार में टैक्स कम क्यों हुआ?

भारतीय अर्थव्यवस्था अब विकसित हो चुकी है।
GST लागू करने के बाद सरकार को नया टैक्स स्त्रोत मिला।
सीधे टैक्स से ज्यादा, अब सरकार अप्रत्यक्ष टैक्स (GST, एक्साइज ड्यूटी) से कमाती है।
डिजिटल पेमेंट से सरकार की टैक्स वसूली बढ़ी है।

📌 हकीकत:
➡️ हां, इनकम टैक्स कम हुआ है, लेकिन महंगाई और GST ने आम आदमी की जेब खाली कर दी।
➡️ पेट्रोल-डीजल, गैस, दाल, चावल, रोजमर्रा की चीजें इतनी महंगी क्यों हो गईं?
➡️ अगर सरकार इतनी “राहत” दे रही है, तो लोगों की बचत कम क्यों हो रही है?

नेहरू और इंदिरा के समय टैक्स ज्यादा था, लेकिन सरकारी नौकरियों और गरीबों के लिए योजनाएं भी थीं।
मोदी सरकार में टैक्स कम हुआ है, लेकिन सरकारी नौकरियां कम हो गईं और महंगाई बढ़ गई।
नेहरू और इंदिरा ने सरकारी क्षेत्र को मजबूत किया, जबकि मोदी सरकार उसे निजी हाथों में दे रही है।

📌 बड़ा सवाल:
➡️ अगर मोदी सरकार ने टैक्स में राहत दी है, तो लोग पहले से ज्यादा आर्थिक तंगी क्यों महसूस कर रहे हैं?
➡️ अगर प्राइवेट सेक्टर बेहतर है, तो क्यों 10 लाख सरकारी नौकरियों के लिए करोड़ों युवा आवेदन करते हैं?
➡️ क्या महंगाई और बेरोजगारी ने टैक्स राहत का पूरा फायदा खत्म नहीं कर दिया?

क्या मोदी सरकार ने सच में टैक्स में इतनी बड़ी राहत दी है? यह सवाल आज पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दावा किया है कि आज 12 लाख रुपये कमाने वालों को जितनी टैक्स राहत मिल रही है, उतनी पहले कभी नहीं मिली। उन्होंने  यह बयान पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू और इंदिरा गांधी के कार्यकाल से तुलना करके प्रस्तुत किया, लेकिन क्या यह तुलना सही है? इसके बारे में हमने आपको ऊपर विस्तार से बताया

मोदी सरकार ने 12 लाख तक की आय पर इनकम टैक्स में छूट दी है, यह दावा मीडिया चैनल और अखबारों में बड़ी-बड़ी हेडलाइंस बनाकर प्रचारित किया गया है। लेकिन क्या यह सच में आम आदमी के लिए राहत है? या फिर यह केवल एक मीडिया मैनेजमेंट का हिस्सा है, जिसकी सच्चाई को किसी भी मीडिया संस्थान ने पूरी तरह से उजागर नहीं किया।

नेहरू और इंदिरा गांधी के समय की टैक्स व्यवस्था में जब देश ने आज़ादी प्राप्त की थी, तब भारतीय अर्थव्यवस्था नवोदित थी और बुनियादी ढांचे के निर्माण की चुनौती थी। उस वक्त टैक्स की दरें बहुत अधिक थीं क्योंकि सरकारी खर्चों को पूरा करने के लिए ज्यादा से ज्यादा संसाधन जुटाने थे। और आम आदमी या मिडिल क्लास tax के दायेरे में ही नही आता था  वहीँ, आज की स्थिति अलग है। सरकार के पास कई अन्य टैक्स स्त्रोत हैं, जैसे GST, एक्साइज ड्यूटी और कॉर्पोरेट टैक्स। इस परिवर्तन को देखते हुए, क्या टैक्स में कटौती के बावजूद महंगाई की दर और बढ़ती कीमतें आम आदमी को राहत प्रदान कर रही हैं?

महंगाई और रोजगार के अवसरों में कमी को देखते हुए यह सवाल उठता है कि अगर टैक्स घटा दिया गया है, तो फिर लोगों की जेब में बचत क्यों नहीं बढ़ रही है? पेट्रोल-डीजल और अन्य आवश्यक वस्तुओं पर टैक्स के बोझ ने तो आम आदमी की आर्थिक स्थिति को और अधिक मुश्किल बना दिया है। क्या यह सिर्फ एक चुनावी रणनीति है या इसमें कोई ठोस तथ्य है?

आखिरकार सवाल यह है कि मोदी सरकार द्वारा घोषित टैक्स में राहत, क्या वास्तव में जनता की क्रय शक्ति में सुधार कर रही है? क्या इसका फायदा सिर्फ अमीरों को ही मिल रहा है, या आम आदमी भी इसका लाभ उठा पा रहा है? क्या रोजगार के अवसरों में वृद्धि और सरकार द्वारा दी जा रही योजनाओं का प्रभाव नजर आ रहा है?

यहां पर सवाल यह भी है कि अगर सरकार वाकई राहत दे रही है, तो फिर क्यों बेरोजगारी और महंगाई के कारण जनता की स्थिति में सुधार नहीं हो रहा है?

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