प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान अपने एक चुनावी भाषण में दावा किया कि, ”साल का 12 लाख कमाने वाले को इनकम टैक्स से इतनी बड़ी राहत पहले कभी नहीं मिली. इस बजट को आप देखें. 10-12 साल पहले तक कांग्रेस की सरकार में अगर आप 12 लाख कमाते तो आपको 2 लाख 60 हज़ार रुपये टैक्स में देना पड़ता।” इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि, अगर नेहरू जी के समय में आप 12 लाख कमाते, तो एक चौथाई सैलरी टैक्स के रूप में सरकार ले लेती और इंदिरा गांधी के शासनकाल में तो 12 लाख की कमाई पर 10 लाख रुपये टैक्स में चला जाता।
प्रधानमंत्री के इस बयान ने टैक्स नीति पर पुराने और वर्तमान समय के बीच के फर्क को उजागर किया है। हालांकि, जब हम इस बयान को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में देखें, तो यह बात समझना जरूरी है कि नेहरू और इंदिरा गांधी के समय में देश की अर्थव्यवस्था और टैक्स नीति पूरी तरह से अलग थी। आजादी के बाद के दौर में देश की प्राथमिकताएं और हालात भी बहुत अलग थे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई मोदी सरकार की टैक्स राहत उतनी बड़ी है, जितनी दिखाने की कोशिश की जा रही है, और क्या नेहरू और इंदिरा गांधी के समय की टैक्स नीतियां वास्तव में इतनी कठोर थीं?
इस आर्टिकल में हम नरेंद्र मोदी के बयान का विश्लेषण करेंगे और साथ ही भारतीय टैक्स सिस्टम के इतिहास, उसकी बदलती परिस्थितियों और मोदी सरकार की नीतियों का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे।
भारत में टैक्स स्लैब: 1947 से 2025 तक के बदलावों का तुलनात्मक विश्लेषण – नेहरू से मोदी तक
- नेहरू और इंदिरा गांधी का समाजवादी दौर (1947-1980)
- राजीव गांधी का उदारीकरण और सुधार (1980-1991)
- मनमोहन सिंह का आर्थिक सुधार दौर (1991-2000)
- मनमोहन सिंह के बाद (2000-2014)
नरेंद्र मोदी का दौर (2014-2025) – सरल टैक्स स्लैब, GST और प्रौद्योगिकीय सुधारों के साथ टैक्स नीति में बदलाव।
📜 नेहरू और इंदिरा सरकार के समय सैलरी, सरकारी नौकरियां और समाजवाद का असर
प्रधानमंत्री मोदी के बयान के बाद यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि नेहरू और इंदिरा गांधी के समय लोगों की सैलरी कितनी थी, कितने लोग सरकारी नौकरियों में थे, और उस वक्त समाजवाद को बढ़ावा देने के पीछे क्या कारण थे।
नेहरू युग (1947-1964): सैलरी, सरकारी नौकरियां और समाजवाद की शुरुआत
🔹 नेहरू जी ने 1947 में सत्ता संभाली थी, तब भारत ब्रिटिश शासन से उभर रहा था।
🔹 देश में बहुत कम उद्योग थे, ज़्यादातर लोग खेती पर निर्भर थे।
🔹 मध्यम वर्ग नाममात्र का था, और अमीर-गरीब की खाई बहुत गहरी थी।नेहरू जी के समय में भारत के पास एक कमजोर अर्थव्यवस्था थी, जो स्वतंत्रता के बाद पुनर्निर्माण की प्रक्रिया से गुजर रही थी। उन्होंने समाजवाद को बढ़ावा देने के लिए औद्योगिकीकरण, बैंकों का राष्ट्रीयकरण और बड़े उद्योगों पर सरकारी नियंत्रण लगाने की नीतियां अपनाईं। यह समय था जब सरकारी नौकरियों का महत्व बढ़ा और आम भारतीय की सैलरी बहुत कम थी।
1947 से 1950 तक – आज़ादी के बाद की पहली आयकर प्रणाली
आज़ादी के बाद, भारतीय सरकार ने ब्रिटिश शासन के दौरान लागू टैक्स संरचना को कुछ हद तक जारी रखा। इस समय टैक्स स्लैब काफी सख्त थे, क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में पुनर्निर्माण के लिए भारी राजस्व की आवश्यकता थी।
टैक्स स्लैब (1947-1950):
- आय ₹10,000 तक: कोई टैक्स नहीं
- ₹10,001 से ₹20,000 तक: 10% टैक्स
- ₹20,001 से ₹50,000 तक: 15% टैक्स
- ₹50,001 से ₹1 लाख तक: 20% टैक्स
- ₹1 लाख से ऊपर: 30% टैक्स
🔎 सरकारी नौकरियों की स्थिति (1950s-60s)
✅ 1951 में सरकारी कर्मचारी मात्र 24 लाख थे।
✅ जनसंख्या 36 करोड़ थी, यानी केवल 0.67% लोग सरकारी नौकरी में थे।
✅ ज़्यादातर लोग खेती, छोटे उद्योगों और व्यापार से जुड़े थे।
✅ सरकार ने बड़े उद्योग खड़े करने के लिए भारी टैक्स लगाया।
📌 नेहरू सरकार का मकसद
✔️ सरकार खुद उद्योग लगाएगी, ताकि जनता को रोज़गार मिले।
✔️ बैंक, रेलवे, कोयला, इस्पात जैसे उद्योगों को सरकारी नियंत्रण में रखा गया।
✔️ प्राइवेट सेक्टर पर कम भरोसा किया गया।
नेहरू सरकार के टैक्स बढ़ाने के कारण
✅ ब्रिटिश शोषण के बाद देश को खड़ा करना था।
✅ बड़े उद्योग खड़ा करने के लिए पूंजी चाहिए थी (PSUs, IITs, बड़े डैम, स्टील प्लांट्स आदि)।
✅ आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा थी, इसलिए अमीरों पर ज्यादा टैक्स लगाया गया।
✅ रक्षा और कृषि क्षेत्र के लिए फंडिंग जरूरी थी।
📌 हकीकत: नेहरू सरकार में मध्यम वर्ग नाममात्र था। आम आदमी टैक्स के दायरे में नहीं था। केवल बहुत अमीर लोग ही अधिक टैक्स भरते थे।
इंदिरा गांधी का कार्यकाल (1966-1977, 1980-1984) और समाजवाद का चरम
🔹 इंदिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया और समाजवादी नीतियों को और आगे बढ़ाया।
🔹 उन्होंने बड़े उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया और बैंकों को सरकार के अधीन लाया।
🔹 इससे सरकारी नौकरियों और वेतन में बदलाव आया।
🔎 सरकारी नौकरियों की स्थिति (1970s-80s)
✅ 1971 में सरकारी कर्मचारियों की संख्या 45 लाख हो गई थी।
✅ जनसंख्या 54 करोड़ थी, यानी 0.83% लोग सरकारी नौकरी में थे।
✅ इंदिरा सरकार ने 14 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया और सरकारी सेक्टर में नौकरियों के अवसर बढ़ाए।
✅ सरकारी क्षेत्र में अधिक भर्तियों की वजह से सरकारी वेतन थोड़ा बढ़ा, लेकिन टैक्स भी बढ़ा।
📌 इंदिरा सरकार का मकसद
✔️ सरकार को आर्थिक शक्तिशाली बनाना, ताकि गरीबों की मदद हो सके।
✔️ बैंकों, कोयला, इस्पात, उर्वरक कंपनियों को सरकार के नियंत्रण में लाना।
✔️ सरकार द्वारा रोज़गार पैदा करना और प्राइवेट सेक्टर पर नियंत्रण रखना।
1966-1977 और 1980-1984: इंदिरा गांधी का कार्यकाल और टैक्स नीति
🔹 इंदिरा गांधी ने कुल मिलाकर 16 साल (1966-1977, 1980-1984) तक शासन किया।
🔹 उनके समय में भारत में समाजवाद चरम पर था।
🔹 टैक्स दरें 97.75% तक चली गई थीं!
इंदिरा सरकार के टैक्स बढ़ाने के कारण
✅ गरीबों और मजदूर वर्ग को ऊपर उठाने के लिए “गरीबी हटाओ” अभियान चला।
✅ बैंकों और बड़े उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया गया, जिसके लिए पैसे चाहिए थे।
✅ भारत-पाकिस्तान युद्ध (1971) और बांग्लादेश निर्माण के बाद भारी आर्थिक संकट आया।
✅ तेल संकट और वैश्विक मंदी की वजह से सरकार को राजस्व बढ़ाने की जरूरत थी।
📌 हकीकत: इंदिरा गांधी की सरकार में वास्तव में टैक्स बहुत ज्यादा था, लेकिन वह केवल अमीरों पर लागू होता था।
➡️ आम नौकरीपेशा व्यक्ति ज्यादा टैक्स नहीं भरता था।
➡️ आर्थिक असमानता इतनी ज्यादा थी कि सरकार को धनी वर्ग से टैक्स लेकर गरीबों पर खर्च करना पड़ा।