RSS प्रमुख मोहन भागवत की चिंता भारत जैसे देश में जनसंख्या का मुद्दा सदैव बहस का केंद्र रहा है। कभी बढ़ती जनसंख्या पर चिंता जताई जाती है तो कभी गिरती प्रजनन दर को लेकर सवाल उठते हैं। हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने इस विषय पर अपना दृष्टिकोण रखते हुए कहा कि “सिर्फ खुद के बारे में सोचने” की प्रवृत्ति से समाज को नुकसान हो रहा है और जनसंख्या में गिरावट आ रही है। इस बयान के जरिए उन्होंने भारतीय समाज में घटती प्रजनन दर को एक महत्वपूर्ण मुद्दा बताया। लेकिन सवाल यह उठता है कि आरएसएस का यह रुख क्या सच में समाज की स्थिरता और विकास के लिए है, या इसके पीछे कोई राजनीतिक निहितार्थ छिपे हैं? आइए, इस विषय पर विस्तार से चर्चा करें और समझें कि यह मुद्दा क्यों महत्वपूर्ण है।
जनसंख्या गिरावट की चिंता: मोहन भागवत का दृष्टिकोण
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने पुणे में ‘हिंदू सेवा महोत्सव’ में कहा कि आजकल के युवा शादी करने और परिवार बढ़ाने से बच रहे हैं। उनका मानना है कि सिर्फ खुद के बारे में सोचने वाली यह मानसिकता समाज और देश के लिए हानिकारक है। उन्होंने कहा:
“हां, करियर महत्वपूर्ण है, लेकिन समाज, पर्यावरण, ईश्वर और देश के प्रति भी हमारी जिम्मेदारी है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो हमारी जनसंख्या घट जाएगी।”
भागवत ने यह भी कहा कि हिंदुओं को कम से कम तीन बच्चे पैदा करने चाहिए ताकि समाज में संतुलन बना रहे।
हिंदुओं की संख्या में वृद्धि की अपील
इस कार्यक्रम में श्री राम जन्मभूमि तीर्थ के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंद गिरी महाराज ने भी जनसंख्या बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा:
“‘बटेंगे तो कटेंगे’ के साथ-साथ हमें यह भी समझना होगा कि ‘घटेंगे तो भी कटेंगे’। हिंदुओं की संख्या बढ़नी चाहिए ताकि समाज मजबूत रहे।”
इस बयान से यह साफ है कि जनसंख्या के मुद्दे को आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों द्वारा न केवल सांस्कृतिक, बल्कि सामाजिक संतुलन से भी जोड़ा जा रहा है।
जनसंख्या नियंत्रण और आरएसएस का रुख: एक विरोधाभास?
आरएसएस के एजेंडे में दशकों से जनसंख्या नियंत्रण शामिल रहा है। इसके प्रमुख मोहन भागवत ने पहले भी जनसंख्या नीति बनाने और इसे सख्ती से लागू करने की वकालत की है।
- 2022 विजयादशमी भाषण: भागवत ने कहा था कि देश में बढ़ती आबादी को लेकर व्यापक नीति की आवश्यकता है।
- 2019: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से छोटे परिवार रखने को देशभक्ति का परिचायक बताया था।
यहां सवाल यह उठता है कि जो संगठन पहले जनसंख्या नियंत्रण की बात करता था, वह अब अचानक अधिक बच्चे पैदा करने की वकालत क्यों कर रहा है? क्या यह बदलती प्रजनन दर के आंकड़ों और समाज में ‘जनसंख्या असंतुलन’ की उनकी धारणा से प्रेरित है, या इसके पीछे कुछ और है?
‘घटेंगे तो कटेंगे’ का नारा: किस दिशा में इशारा?
RSS मंच से स्वामी गोविंद गिरी महाराज द्वारा दिए गए बयान, “घटेंगे तो भी कटेंगे” ने इस बहस को और गर्मा दिया। यह नारा उन धारणाओं को बढ़ावा देता है जो विशेष रूप से हिंदू जनसंख्या वृद्धि को धार्मिक और राजनीतिक अनिवार्यता के रूप में देखती हैं।
यह नारा सीधे-सीधे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ एक सन्देश देता है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय की उच्च प्रजनन दर को अक्सर बहुसंख्यक हिंदू समुदाय के लिए खतरे के रूप में प्रस्तुत किया गया है। VHP और आरएसएस के कई नेताओं ने अतीत में यह दावा किया है कि “अगर हिंदू परिवार छोटे रहेंगे, तो मुसलमान देश पर कब्जा कर लेंगे।”
राजनीतिक निहितार्थ और विभाजनकारी एजेंडा
आरएसएस का यह बयान एक तरफ जनसंख्या गिरावट और प्रजनन दर के मुद्दे को उठाता है, तो दूसरी तरफ इसके जरिए समाज में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देने का भी काम करता है। “बटेंगे तो कटेंगे” और “घटेंगे तो भी कटेंगे” जैसे नारे अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिम समुदाय के खिलाफ डर और नफरत का माहौल पैदा करने का इशारा देते हैं।
आरएसएस और इससे जुड़े संगठनों के इस बदलते रुख को 2024 के आम चुनाव में भी इस नारे को अलग अलग मंचो से बोला गया जोड़कर देखा गया यह संभावना है कि इस बयान के जरिए हिंदू मतदाताओं को लामबंद करने और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाई जा रही है। या तथाकथित हिन्दू राष्ट की भावना को नीचे से मजबूत करते रहना
भागवत की चिंता: समाज सुधार या या इसके पीछे कुछ और है?
मोहन भागवत का यह बयान कि “करियर महत्वपूर्ण है, लेकिन सिर्फ खुद के बारे में सोचने से जनसंख्या घट रही है,” यह दर्शाता है कि वह समाज में बढ़ते व्यक्तिवाद को खत्म कर सामूहिक जिम्मेदारी पर जोर देना चाहते हैं। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि उनकी इस चिंता का केंद्र केवल हिंदू समाज है।
अगर उनकी चिंता समाज की भलाई और स्थिरता की होती, तो बयान में अल्पसंख्यकों और कमजोर तबकों को भी शामिल किया जाता। लेकिन केवल हिंदू प्रजनन दर को बढ़ाने की बात करना और मुस्लिम समुदाय को अप्रत्यक्ष रूप से निशाना बनाना, उनकी राजनीतिक मंशा को उजागर करता है।
समाज के लिए सवाल
- क्या जनसंख्या गिरावट को केवल धार्मिक नजरिए से देखना सही है?
- क्या ऐसे बयान समाज में स्थिरता लाएंगे या विभाजन बढ़ाएंगे?
- क्या आरएसएस का यह रुख भारत की वास्तविक समस्याओं जैसे शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य की ओर ध्यान भटकाने का प्रयास है?
गिरती प्रजनन दर: आंकड़ों की नजर में समझते है
भारत की जनसंख्या वृद्धि दर में पिछले कुछ सालों में भारी गिरावट आई है।
- नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 (2019-2021):
- भारत का कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate – TFR): 2
- हिंदू समुदाय का TFR: 1.94
- मुस्लिम समुदाय का TFR: 2.36
- अनुसूचित जातियों (SC): 2.08
- अनुसूचित जनजातियों (ST): 2.09
हालांकि मुस्लिम प्रजनन दर में भी पिछले कुछ दशकों में लगातार गिरावट आई है। इसके बावजूद, मुस्लिम प्रजनन दर को एक खतरे के रूप में पेश करना और हिंदू जनसंख्या वृद्धि की वकालत करना यह बताता है कि आरएसएस और उससे जुड़े संगठन इस मुद्दे का सांप्रदायिकरण कर रहे हैं।
इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि भारत में प्रजनन दर धीरे-धीरे जनसंख्या स्थिरता के लिए आवश्यक 2.1 के नीचे जा रही है। यह गिरावट विशेष रूप से शहरी और शिक्षित वर्ग में अधिक देखी जा रही है।
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दक्षिण भारत में जनसंख्या गिरावट पर चिंता
दक्षिण भारतीय राज्यों जैसे तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में प्रजनन दर पहले ही खतरनाक रूप से कम हो चुकी है।
- तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन: उन्होंने तो यहां तक कहा कि “लोगों को 16 बच्चे पैदा करने चाहिए।”
- आंध्र प्रदेश की सरकार: टू चाइल्ड पॉलिसी को खत्म कर दिया गया, जिससे लोग दो से अधिक बच्चे पैदा कर सकें।
इससे यह पता चलता है कि गिरती प्रजनन दर और बढ़ती बुजुर्ग आबादी से समाज पर दबाव बढ़ सकता है।
जनसंख्या असंतुलन और सामाजिक संतुलन का सवाल
मोहन भागवत ने 2022 में अपने भाषण में ‘जनसंख्या असंतुलन’ की ओर इशारा किया था। उनका कहना था कि
“अगर समाज में असंतुलन बढ़ेगा तो सांस्कृतिक और सामाजिक स्थिरता पर असर पड़ेगा। हमें जनसंख्या नियंत्रण के साथ-साथ समाज के सभी वर्गों के बीच संतुलन बनाना होगा।”
आलोचना और समर्थन: राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
मोहन भागवत के बयान को लेकर विपक्षी दलों ने सवाल उठाए।
- कांग्रेस और वाम दलों: उन्होंने इसे आरएसएस की दोहरी नीति करार दिया।
- भाजपा: इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रही।
हालांकि, यह स्पष्ट है कि यह मुद्दा केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। लकिन जानकार लोग ये भी बोल रहे है कि BJP और RSS हमेशा से अपने एजेंडे को सामाजिक और सांस्कृतिक रूप में ही लागू करते रहे है ताकि उन पर कोई ऊँगली न उठे और उनके खिलाफ लोग ना खड़े हो जाये ।
जनसंख्या नियंत्रण बनाम जनसंख्या वृद्धि: भविष्य की राह
भारत के लिए जनसंख्या का संतुलन बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है।
- बढ़ती जनसंख्या से संसाधनों पर दबाव बढ़ता है।
- गिरती जनसंख्या से कार्यबल की कमी हो सकती है।
इसलिए, एक संतुलित और व्यापक जनसंख्या नीति की आवश्यकता है, जो न केवल वर्तमान समस्याओं का समाधान करे, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थिर समाज का निर्माण करे।
निष्कर्ष:
मोहन भागवत का बयान और आरएसएस का जनसंख्या पर बदला रुख भारत के समाज और राजनीति में नई बहस को जन्म देता है। जहां एक तरफ गिरती प्रजनन दर पर चिंता जरूरी है, वहीं इसे सांप्रदायिक रंग देना समाज में अविश्वास और ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे सकता है। भारत के नागरिकों को इन बयानों का विश्लेषण करते समय समझदारी और जागरूकता से काम लेना होगा, ताकि समाज में एकता और स्थिरता बनी रहे।
आपका क्या विचार है? क्या भारत को एक नई जनसंख्या नीति की आवश्यकता है?