जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक परिदृश्य 2019 में अनुच्छेद 370 और 35-ए के निरस्त होने के बाद से बड़े बदलावों का गवाह बना है। इन परिवर्तनों ने न केवल क्षेत्र के संवैधानिक ढांचे को बदला है, बल्कि यहां की राजनीति के समीकरणों को भी नई दिशा दी है। 2024 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति को तेज कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी), और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसे दल इस चुनाव में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पूरी ताकत झोंक रहे हैं।
अनुच्छेद 370 और 35-ए का निरस्त होना: राजनीतिक परिवर्तन का प्रारंभिक बिंदु
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 और 35-ए के निरस्त होने के बाद स्थिति काफी हद तक बदल गई है। इन अनुच्छेदों के निरस्त होने से जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता समाप्त हो गई और इसे केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। इससे पहले, जम्मू-कश्मीर एक विशेष राज्य था, जहां भारतीय संविधान के कई प्रावधान लागू नहीं होते थे। अब, यह एक केंद्रशासित प्रदेश बन चुका है, जिसमें जम्मू और कश्मीर दो अलग-अलग संभागों के रूप में कार्यरत हैं।
चुनाव आयोग की घोषणा और राजनीतिक गतिविधियों में तेजी
चुनाव आयोग ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा की है। इसके साथ ही राजनीतिक दलों की गतिविधियों में तेजी आ गई है। पिछले विधानसभा चुनाव 2014 में हुए थे, जिसके बाद से अब तक राजनीतिक स्थिति में काफी बदलाव आ चुका है। बीजेपी, जो अनुच्छेद 370 और 35-ए के निरस्त होने के बाद क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने में लगी है, ने अपने प्रचार अभियान को और आक्रामक बना दिया है।
परिसीमन के बाद राजनीतिक समीकरणों में बदलाव
अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, जम्मू-कश्मीर में नए परिसीमन की प्रक्रिया भी शुरू हुई। इस परिसीमन के बाद, जम्मू क्षेत्र में 6 नई विधानसभा सीटें जोड़ी गई हैं, जिससे वहां की कुल सीटों की संख्या 43 हो गई है। कश्मीर घाटी में 47 सीटें हैं, जो कि चुनावी दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इस नए परिसीमन से जम्मू क्षेत्र को राजनीतिक रूप से और अधिक मजबूत किया गया है, जिससे यहां बीजेपी के लिए अवसर बढ़े हैं।
विस्थापित कश्मीरी पंडितों और पीओके से विस्थापितों के लिए सीटें
नई व्यवस्था के तहत, केंद्र सरकार ने विस्थापित कश्मीरी पंडितों को भी विधानसभा में प्रतिनिधित्व देने की योजना बनाई है। इसके तहत दो कश्मीरी पंडितों को नामित किया जाएगा। इसके अलावा, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) से विस्थापित समुदाय के एक सदस्य को भी विधानसभा में नामित किया जाएगा। इस प्रकार, इन नए नामित सदस्यों के साथ जम्मू-कश्मीर विधानसभा की कुल सीटों की संख्या 95 हो जाएगी।
2024 के लोकसभा चुनावों के नतीजों का विश्लेषण
2024 के लोकसभा चुनावों के नतीजे जम्मू-कश्मीर की आगामी विधानसभा चुनावों की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। बीजेपी ने जम्मू क्षेत्र में 2 लोकसभा सीटें जीती थीं, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भी 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में, विभिन्न दलों ने विधानसभा क्षेत्रों में भी अपनी पकड़ बनाए रखी। बीजेपी 29 विधानसभा क्षेत्रों में आगे रही, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस ने 34 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त बनाई थी।
बीजेपी की रणनीति और जम्मू डिवीजन में उसका फोकस
बीजेपी का मुख्य फोकस जम्मू डिवीजन की 34 सीटों पर है, जहां पार्टी हिंदू बहुल क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने की योजना बना रही है। जम्मू डिवीजन की 43 सीटों में से 34 सीटें ऐसी हैं, जहां हिंदू मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बीजेपी का लक्ष्य इन सभी 34 सीटों पर जीत हासिल करना है, साथ ही कुछ मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में भी पार्टी अपने समर्थन को बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
राजौरी और पुंछ जैसे क्षेत्रों में, जहां मुस्लिम मतदाता अधिक हैं, बीजेपी ने अपने प्रचार अभियान को और भी तेज किया है। पार्टी को उम्मीद है कि इन क्षेत्रों में भी उसे पर्याप्त समर्थन मिलेगा। बीजेपी का दावा है कि परिसीमन ने जम्मू डिवीजन के क्षेत्रीय असंतुलन को ठीक किया है, जिससे उसे इस क्षेत्र में बढ़त मिल सकती है।
कांग्रेस की रणनीति और स्थानीय मुद्दों पर फोकस
दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी अभियान में स्थानीय मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया है। पार्टी ने बिजली के स्मार्ट मीटरों की स्थापना, हाउस टैक्स के लागू होने, बेरोजगारी की बढ़ती समस्या, भर्ती परीक्षाओं में अनियमितताएं, और राज्य के दर्जे की बहाली में देरी जैसे मुद्दों को उठाया है। इसके साथ ही, पार्टी ने जम्मू-कश्मीर के बाहर के ठेकेदारों को सरकारी परियोजनाओं के ठेके देने के खिलाफ भी आवाज उठाई है।
कांग्रेस का मानना है कि यदि वह जम्मू डिवीजन की कुछ सीटों पर जीत दर्ज करती है, तो बीजेपी को सत्ता से दूर रखा जा सकता है। कांग्रेस की रणनीति है कि वह बीजेपी को जम्मू डिवीजन में 20 सीटों तक सीमित कर दे, जिससे विधानसभा में उसका प्रभाव कम हो सके।
नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी की चुनौती
नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जैसी क्षेत्रीय पार्टियां भी इस चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की कोशिश कर रही हैं। इन दलों ने बीजेपी पर आरोप लगाया है कि परिसीमन की प्रक्रिया को जानबूझकर इस प्रकार से किया गया है, जिससे बीजेपी को लाभ हो सके। हालांकि, बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज किया है और कहा है कि परिसीमन का उद्देश्य क्षेत्रीय असंतुलन को ठीक करना है।
विकास कार्यों का हाइलाइट और बीजेपी की उपलब्धियां
बीजेपी ने अपने चुनावी अभियान में पिछले 10 वर्षों में जम्मू क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों को प्रमुखता से उजागर किया है। पार्टी ने जम्मू क्षेत्र में आईआईटी, आईआईएम, आईआईएमसी, और एम्स की स्थापना, सड़क संपर्क में सुधार, और दूरदराज के क्षेत्रों में नई सड़कों के निर्माण को अपनी बड़ी उपलब्धियों के रूप में पेश किया है।
इसके अलावा, बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर के सभी निवासियों के लिए आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य बीमा का भी उल्लेख किया है। पार्टी का दावा है कि इस योजना से जम्मू-कश्मीर के लोगों को महत्वपूर्ण लाभ मिला है। साथ ही, पार्टी ने पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों, वाल्मीकि समाज, और गोरखा समुदाय के लिए निवास और मतदान के अधिकार की भी बात की है।
बीजेपी के सामने चुनौतियाँ
हालांकि, बीजेपी के लिए इस चुनाव में चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। स्थानीय पार्टियों और कांग्रेस का क्षेत्रीय स्तर पर अच्छा-खासा जनाधार है, जिससे बीजेपी को कड़ी टक्कर मिल सकती है। कांग्रेस का लक्ष्य है कि वह बीजेपी को जम्मू डिवीजन में 20 सीटों तक सीमित कर दे, ताकि वह सरकार बनाने में सक्षम न हो सके।
बीजेपी के खिलाफ स्थानीय स्तर पर असंतोष भी एक बड़ी चुनौती हो सकती है। कुछ क्षेत्रों में बीजेपी की नीतियों को लेकर लोगों में नाराजगी है, जिसे कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, बीजेपी का दावा है कि उसने अपने विकास कार्यों के जरिए इस असंतोष को कम किया है, और कई स्थानीय नेताओं ने पार्टी में शामिल होकर इसका समर्थन भी किया है।
निष्कर्ष
जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव 2024 के लिए सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति तैयार कर ली है। अनुच्छेद 370 और 35-ए के निरस्त होने के बाद, इस चुनाव का महत्व और भी बढ़ गया है। बीजेपी जहां जम्मू डिवीजन की 34 सीटों पर फोकस कर रही है, वहीं कांग्रेस और क्षेत्रीय दल भी अपनी रणनीति के साथ मैदान में उतर चुके हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि कौन सा दल इस चुनाव में जीत हासिल करता है और जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य में अपना प्रभुत्व स्थापित करता है।