जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव: बीजेपी की रणनीति और विवाद

जम्मू कश्मीर विधानसभा को लेकर बीजेपी की मीटिंग

Updated by Zulfam Tomar 

जम्मू-कश्मीर में आगामी विधानसभा चुनाव की तारीख का  ऐलान होने के बाद राजनीतिक दल अपनी रणनीति और तैयारी में जुट गए हैं और राजनीतिक गणित को समझते हुए अपने- अपने कडिडेट की लिस्ट जारी कर रहे हैं । भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने अपनी 44 कैंडिडेट की लिस्ट जारी की थी लेकिन पार्टी के अंदर भारी विरोध के बाद कुछ ही देर में उसे वापस लेना पड़ गया  और संशोधित सूची जारी की, जिसमें कई महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। यह घटनाक्रम केवल एक सूची के बदलने तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके साथ ही पार्टी के भीतर मतभेद और असंतोष के स्वर भी उठने लगे। इस लेख में हम बीजेपी की इस रणनीति और विवाद को गहराई से समझने की कोशिश करेंगे।

उम्मीदवारों की पहली सूची: विवाद की शुरुआत

जम्मू कश्मीर विधानसभा को लेकर बीजेपी की मीटिंग
जम्मू कश्मीर विधानसभा को लेकर बीजेपी की मीटिंग ( फोटो बीजेपी के ट्विटर हैंडल से)

 

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने पहले चरण के लिए 44 उम्मीदवारों की एक सूची जारी की थी, जिसमें पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं के नाम शामिल नहीं थे। यह सूची कुछ ही घंटों में विवाद का कारण बन गई। पार्टी के भीतर के सूत्रों का कहना है कि कई वरिष्ठ नेता और कार्यकर्ता इस सूची से नाखुश थे, क्योंकि उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा। इस असंतोष के कारण पार्टी को सूची को वापस लेने और दूसरी सूची में केवल 15 उम्मीदवारों की एक नई सूची  और उसके थोड़ी देर बाद ही एक अन्य सूची में सिर्फ एक ही कैंडिडेट  के नाम साथ जारी करने पर मजबूर होना पड़ा। मतलब टोटल 16 कैंडिडेट

 पूर्व डिप्टी सीएम और अन्य वरिष्ठ नेताओं को टिकट नहीं मिला

पहली सूची में सबसे प्रमुख नाम जो गायब थे, वे थे पूर्व डिप्टी सीएम और जम्मू-कश्मीर विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष डॉ. निर्मल सिंह और पूर्व डिप्टी सीएम कविंद्र गुप्ता। इन दोनों नेताओं को टिकट नहीं दिए जाने से पार्टी के भीतर काफी असंतोष उत्पन्न हुआ। निर्मल सिंह ने 2014 के चुनाव में बिलावर विधानसभा सीट से जीत हासिल की थी, लेकिन इस बार उनकी जगह सतीश शर्मा को टिकट दिया गया। इसी तरह, कविंद्र गुप्ता को भी टिकट से वंचित कर दिया गया, जो बीजेपी के भीतर एक बड़ा विवाद खड़ा करने वाला कदम था।

 कश्मीरी पंडित और महिला उम्मीदवार की भूमिका

संशोधित सूची में बीजेपी ने एक महिला उम्मीदवार और एक कश्मीरी पंडित को टिकट देकर समाज के विभिन्न वर्गों को साधने की कोशिश की है। शंगस-अनंतनाग पूर्व से कश्मीरी पंडित वीर सराफ को टिकट दिया गया है, जबकि किश्तवाड़ से शगुन परिहार को उम्मीदवार बनाया गया है। शगुन परिहार इस सूची की इकलौती महिला उम्मीदवार हैं, जिससे पार्टी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह महिलाओं और कश्मीरी पंडितों को अपने साथ जोड़ना चाहती है। हालांकि, यह निर्णय केवल प्रतीकात्मक रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि पहली सूची में दो कश्मीरी पंडितों और 14 मुस्लिम उम्मीदवारों को भी शामिल किया गया था, लेकिन उन्हें बाद में संशोधित सूची से हटा दिया गया।

 पार्टी के भीतर मतभेद और कार्यकर्ताओं का गुस्सा

जम्मू बीजेपी कार्यालय में उस समय हंगामा मच गया जब उम्मीदवारों की सूची से नाराज कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन किया। पार्टी के कई समर्थक और कार्यकर्ता इस बात से नाराज थे कि उनके पसंदीदा उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया गया, बल्कि कुछ नए और पैराशूट उम्मीदवारों को जगह दी गई। ओमी खजूरिया के समर्थकों ने पार्टी पर आरोप लगाया कि उसने बाहरी उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जबकि उन्हें स्थानीय नेताओं को प्राथमिकता देनी चाहिए थी। कार्यकर्ताओं का यह गुस्सा पार्टी के भीतर गहराते मतभेदों को उजागर करता है।

बीजेपी की चुनावी रणनीति: आलोचना और संभावनाएं

बीजेपी की इस रणनीति को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं। एक ओर, पार्टी ने कश्मीरी पंडित और महिला उम्मीदवारों को शामिल करके एक संतुलन साधने की कोशिश की है, तो दूसरी ओर, पार्टी के भीतर के मतभेद और असंतोष इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इस रणनीति में कुछ खामियां भी हैं। पार्टी ने वरिष्ठ नेताओं को टिकट न देकर नए चेहरों को मौका देने की कोशिश की है, लेकिन यह कदम पार्टी के लिए उलटा भी पड़ सकता है।

 चुनाव के पहले चरण में कौन-कौन सी सीटें?

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव तीन चरणों में होने हैं। पहले चरण में 24 सीटों पर मतदान होगा। इन सीटों में शामिल हैं: पंपोर, त्राल, पुलवामा, राजपोरा, जैनापोरा, शोपियां, डी.एच. पोरा, कुलगाम, देवसर, दूरू, कोकेरनाग (एसटी), अनंतनाग पश्चिम, अनंतनाग, श्रीगुफवाड़ा, बिजबेहरा, शांगस-अनंतनाग पूर्व, पहलगाम, इंदरवाल, किश्तवाड़, पैड डेर, नागसेनी, भद्रवाह, डोडा, डोडा पश्चिम, रामबन और बनिहाल। इन सीटों पर होने वाले मतदान के नतीजे बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि यह पार्टी की चुनावी रणनीति और उसकी लोकप्रियता का पहला परीक्षण होगा।

बीजेपी की संशोधित लिस्ट
बीजेपी की विरोध के बाद संशोधित लिस्ट

 दूसरे और तीसरे चरण की सीटों की स्थिति

दूसरे और तीसरे चरण में 26 और 40 सीटों पर मतदान होना है। दूसरे चरण में मतदान होने वाली सीटों में कंगन (एसटी), गांदरबल, हजरतबल, खानयार, हब्बाकदल, लाल चौक, चन्नपोरा, जदीबल, ईदगाह, सेंट्रल शाल्टेंग, बडगाम, बीरवाह, खानसाहिब, चरार-ए-शरीफ, चदूरा, गुलाबगढ़ (एसटी), रियासी, श्री माता वैष्णो देवी, कालाकोट, सुंदरबनी, नौशेरा, राजौरी (एसटी), बुद्धल (एसटी), थन्नामंडी (एसटी), सुरनकोट (एसटी), पुंछ हवेली, मेंढर (एसटी) शामिल हैं। तीसरे चरण में करनाह, त्रेहगाम, कुपवाड़ा, लोलाब, हंदवाड़ा, लंगेट, सोपोर, रफियाबाद, उरी, बारामूला, गुलमर्ग, वागूरा, क्रीरी, पट्टन, सोनावारी, बांदीपोरा, गुरेज (एसटी), उधमपुर पश्चिम, उधमपुर पूर्व, चेनानी, रामनगर (एससी), बनी, बिलावर, बसोहली, जसरोटा, कठुआ (एससी), हीरानगर, रामगढ़ (एससी), सांबा, विजयपुर, बिश्नाह (एससी), सुचेतगढ़ (एससी), आर.एस. पुरा, जम्मू दक्षिण, बाहु, जम्मू पूर्व, नगरोटा, जम्मू पश्चिम शामिल हैं।

 पीएम मोदी की चुनावी रैलियों की योजना

सूत्रों के अनुसार, बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति ने बैठक में तय किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जम्मू में 8 से 10 रैलियां करेंगे, जबकि कश्मीर में 1 से 2 रैलियां होंगी। पीएम मोदी की रैलियों को लेकर पार्टी ने एक मजबूत रणनीति तैयार की है, क्योंकि यह राज्य में पार्टी के पक्ष में माहौल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। हालांकि, सवाल यह है कि क्या पीएम मोदी की रैलियां चुनावी नतीजों पर निर्णायक प्रभाव डालेंगी, या फिर पार्टी के भीतर के मतभेद और असंतोष उनकी कोशिशों को कमजोर कर देंगे।

यह भी पढ़ें – जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव: दलों की रणनीति और राजनीतिक परिदृश्य का विश्लेषण

 निष्कर्ष: बीजेपी की चुनावी चुनौतियां

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लिए चुनौतियां कम नहीं हैं। पार्टी की उम्मीदवारों की सूची में हुए बदलाव, पार्टी के भीतर के मतभेद, और कार्यकर्ताओं की नाराजगी सभी मिलकर एक जटिल चुनावी परिदृश्य तैयार करते हैं। हालांकि, बीजेपी ने कश्मीरी पंडित और महिला उम्मीदवारों को शामिल करके एक सकारात्मक संदेश देने की कोशिश की है, लेकिन यह देखना बाकी है कि क्या पार्टी की यह रणनीति चुनावी जीत में तब्दील हो पाएगी। आगामी चुनावी नतीजे ही बताएंगे कि बीजेपी की यह रणनीति कितनी सफल रही, और क्या पार्टी अपने भीतर के मतभेदों को दूर करके एकजुट होकर चुनाव लड़ पाएगी।

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