Updated by Zulfam Tomar
परिचय
ऑस्ट्रेलिया ने 2025 सत्र के लिए अंतरराष्ट्रीय छात्र नामांकनों पर एक महत्वपूर्ण सीमा लगाने की घोषणा की है। इस कदम के तहत नए प्रवेश छात्रों की संख्या को 2,70,000 तक सीमित किया जाएगा, जो भारतीय छात्रों सहित कई अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। भारतीय छात्र, जो ऑस्ट्रेलिया के अंतरराष्ट्रीय छात्र जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं, इस नए नियम से सबसे अधिक प्रभावित होंगे। इस आलेख में हम इस नीति के विभिन्न पहलुओं और इसके भारत के छात्रों पर प्रभावों का गहन विश्लेषण करेंगे।
ऑस्ट्रेलिया का छात्र संख्या सीमित करने का निर्णय:
ऑस्ट्रेलिया के शिक्षा मंत्री जेसन क्लेयर ने घोषणा की कि 2025 में नए प्रवेश लेने वाले अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या को 2,70,000 तक सीमित किया जाएगा। इस सीमा में 1,45,000 सीटें सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में, 95,000 सीटें व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों में, और 30,000 सीटें निजी विश्वविद्यालयों तथा गैर-विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा प्रदाताओं के लिए शामिल हैं।
जून 2022 में, ऑस्ट्रेलिया में अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या 5.10 लाख थी, जिसे 2023 में घटाकर 3.75 लाख कर दिया गया। अब, इस संख्या को और कम करने का निर्णय लिया गया है, जिसका असर सभी अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर पड़ेगा।
इस फैसले का उद्देश्य नामांकनों की संख्या को महामारी-पूर्व स्तर पर वापस लाना और आव्रजन के दबाव को कम करना है।
Media Release: Improving the sustainability of international education.https://t.co/2KXvNCudHg
— Jason Clare MP (@JasonClareMP) August 27, 2024
भारतीय छात्रों पर प्रभाव
भारत के छात्रों के लिए यह निर्णय गंभीर रूप से प्रभावशाली हो सकता है, क्योंकि वे ऑस्ट्रेलिया के अंतरराष्ट्रीय छात्र जनसंख्या का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। 2022 में, 1,00,009 भारतीय छात्र ऑस्ट्रेलियाई संस्थानों में नामांकित थे, और जनवरी-सितंबर 2023 के दौरान 1.22 लाख भारतीय छात्र ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई कर रहे थे। इन छात्रों में सबसे अधिक संख्या पंजाब से आने वाले छात्रों की है। ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों की एक बड़ी संख्या उच्च शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा और प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में नामांकित है। ऑस्ट्रेलियाई सरकार के नए फैसले का भारतीय छात्रों पर व्यापक असर पड़ेगा, खासकर उन छात्रों पर जो 2025 सत्र के लिए प्रवेश की योजना बना रहे हैं।
आव्रजन दबाव और मकान बाजार पर असर
ऑस्ट्रेलिया में 2023 में प्रवासियों की रिकॉर्ड संख्या दर्ज की गई, जिसमें भारत, चीन और फिलीपींस से आने वाले छात्रों का बड़ा योगदान रहा। ऑस्ट्रेलियाई सांख्यिकी ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, सितंबर 2023 तक वर्ष में शुद्ध आव्रजन में 60% की वृद्धि हुई, जो 5,48,800 की रिकॉर्ड संख्या तक पहुंच गई। इस वृद्धि ने ऑस्ट्रेलिया के मकान बाजार पर भारी दबाव डाला है, जिससे किराए में वृद्धि हुई है और आवास की कमी हो गई है।
निर्णय के पीछे के कारण
ऑस्ट्रेलिया में हाल के वर्षों में बाहर से आने वाले प्रवासियों की संख्या में भारी वृद्धि देखी गई है। इसके कारण आवास संकट गहरा गया है, और घरों के किराये आसमान छू रहे हैं। इसके अलावा, आर्थिक दबाव, संसाधनों की कमी, और रोजगार के अवसरों पर भी इसका असर पड़ा है। इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने यह कठोर कदम उठाया है।
विश्वविद्यालयों की चिंता
ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालयों ने इस सीमा पर चिंता व्यक्त की है, क्योंकि इससे उनकी राजस्व धारा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। 2022-2023 वित्तीय वर्ष में, अंतरराष्ट्रीय शिक्षा ने ऑस्ट्रेलियाई अर्थव्यवस्था में $24.7 बिलियन का योगदान दिया, जो कि लौह अयस्क, गैस और कोयला के बाद देश का चौथा सबसे बड़ा निर्यात क्षेत्र है। विश्वविद्यालयों का मानना है कि इस कदम से उनके वित्तीय संसाधनों पर असर पड़ेगा, जिससे उनकी संचालन क्षमता भी प्रभावित हो सकती है।
वीजा शुल्क और बचत आवश्यकताओं में बढ़ोतरी
इसके अतिरिक्त, ऑस्ट्रेलिया ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए वीजा शुल्क को भी दोगुना कर दिया है, अब यह शुल्क 710 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर से बढ़ाकर 1,600 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर कर दिया गया है।
जो 1 जुलाई से AUD 710 ($473) से बढ़ाकर AUD 1,600 ($1,068) कर दिया गया है। इस कदम का उद्देश्य वर्तमान आव्रजन दबावों को कम करना है। इसके अलावा, छात्र वीजा के लिए न्यूनतम बचत आवश्यकताओं को भी AUD 24,505 ($16,146) से बढ़ाकर AUD 29,710 ($19,576) कर दिया गया है। यह पिछले सात महीनों में दूसरी बार बचत आवश्यकताओं में वृद्धि है।
छात्र प्रतिक्रियाएं और चुनौतियां
ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने की उम्मीद में बैठे भारतीय छात्रों के बीच इस निर्णय के बाद चिंता और निराशा की लहर दौड़ गई है। हरियाणा के एक छात्र ने बताया कि इस फैसले से उसका करियर प्रभावित होगा, क्योंकि उसके परिवार ने उसकी शिक्षा के लिए लोन लिया है। इसके अलावा, छात्रों ने भारत सरकार से अपील की है कि वह इस मामले को ऑस्ट्रेलियाई सरकार के समक्ष उठाए और छात्रों की मदद के लिए कदम उठाए।
अन्य देशों की प्रतिक्रिया
ऑस्ट्रेलिया के इस कदम के बाद, कनाडा ने भी अपने अस्थायी विदेशी कर्मचारियों के लिए नए प्रतिबंधों की घोषणा की है। कनाडा ने विदेशी कार्यबल की संख्या को 20 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया है। इसका मकसद कनाडा में बढ़ती बेरोजगारी दर को नियंत्रित करना है। इससे यह स्पष्ट होता है कि अन्य देशों में भी प्रवासियों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए कठोर कदम उठाए जा रहे हैं।
नई नीति का प्रभाव और निष्कर्ष
ऑस्ट्रेलिया द्वारा अंतरराष्ट्रीय छात्र नामांकनों पर लगाई गई यह नई सीमा भारतीय छात्रों के लिए गंभीर चुनौती प्रस्तुत कर सकती है। शिक्षा और आव्रजन की दिशा में किए गए इन कठोर उपायों से भारतीय छात्रों को न केवल उनकी पढ़ाई में बाधा आएगी, बल्कि उनके ऑस्ट्रेलिया में बसने की योजनाओं पर भी नकारात्मक असर पड़ सकता है। इस संकट के समाधान के लिए भारतीय और ऑस्ट्रेलियाई सरकारों को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि छात्रों के भविष्य को सुरक्षित किया जा सके।
भारत सरकार की भूमिका
भारत सरकार को ऑस्ट्रेलिया के इस फैसले के संदर्भ में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और भारतीय छात्रों की चिंताओं को उचित मंच पर उठाना चाहिए। इसके साथ ही, भारतीय छात्रों को अन्य देशों में शिक्षा के नए अवसर तलाशने के लिए भी प्रेरित किया जाना चाहिए, ताकि वे इस बदलाव के बावजूद अपने शैक्षिक और पेशेवर लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें।