Updated by Zulfam Tomar
जम्मू-कश्मीर की राजनीति में नई हलचल
जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक बार फिर से बदलाव की आहट सुनाई दे रही है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने घोषणा की है कि वह आगामी विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगी। इस फैसले ने न केवल जम्मू-कश्मीर बल्कि पूरे देश के राजनीतिक गलियारों और मीडिया में चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया है। महबूबा मुफ्ती का यह ऐलान उनके द्वारा अब तक उठाए गए राजनीतिक कदमों और कश्मीर की वर्तमान परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में कई सवाल खड़े करता है।
महबूबा मुफ्ती का बयान: एक गहरी सोच का नतीजा
महबूबा मुफ्ती ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि वह मुख्यमंत्री बन भी जाती हैं, तो भी वह अपनी पार्टी का एजेंडा पूरा नहीं कर पाएंगी। यह बयान कश्मीर के मौजूदा राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य को दर्शाता है, जहां सरकार की नीतियों के क्रियान्वयन में गंभीर चुनौतियां हैं। महबूबा ने यह भी संकेत दिया कि वर्तमान परिस्थितियों में, चाहे वह मुख्यमंत्री हों या न हों, पीडीपी के मूल सिद्धांतों को लागू करना लगभग असंभव है।
कश्मीर में बदलते समीकरण: उमर अब्दुल्ला की वापसी
महबूबा मुफ्ती के इस बयान के साथ ही नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला की विधानसभा चुनावों में भागीदारी को लेकर उनके पहले के संकल्प से पलटने की खबर भी आ रही है। उमर अब्दुल्ला ने पहले कहा था कि वह तब तक चुनाव नहीं लड़ेंगे जब तक जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश बना रहेगा। लेकिन अब, पार्टी द्वारा घोषित उम्मीदवारों की सूची में उनका नाम शामिल है, जिससे यह साफ होता है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस के लिए सत्ता की महत्वाकांक्षा ने एक बार फिर से उनके निर्णय को प्रभावित किया है।
महबूबा मुफ्ती के दावे: केंद्र और अब जम्मू कश्मीर राज्य सरकार की सीमाएं
महबूबा मुफ्ती ने अपने बयान में कई मुद्दों पर खुलकर चर्चा की। उन्होंने कहा कि जब वह भाजपा के साथ गठबंधन में मुख्यमंत्री थीं, तब उन्होंने 12,000 लोगों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकियों को वापस लिया था। लेकिन अब, मौजूदा सरकार में ऐसा करना संभव नहीं है। उनका यह बयान बताता है कि सत्ता में रहते हुए भी कश्मीर में स्वतंत्रता से फैसले लेना मुश्किल है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर अलगाववादियों को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था, जो अब की स्थिति में असंभव प्रतीत होता है। आपको बता दे जम्मू कश्मीर अब दिल्ली की तरह केंद्र शासित प्रदेश है जिसे विधानसभा होने के बावजूद पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है।
सत्ता की राजनीति: कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का गठबंधन
जम्मू-कश्मीर की राजनीति में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का गठबंधन अक्सर सत्ता प्राप्ति के लिए एक साधन के रूप में देखा गया है। महबूबा मुफ्ती ने इस पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जब उनकी पार्टी ने 2002 में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था, तो उनका एक एजेंडा था। उस समय उन्होंने सैयद अली गिलानी को जेल से रिहा करवाया था। लेकिन, जब कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस गठबंधन बनाते हैं, तो यह केवल सत्ता के लिए होता है।
सवालों के घेरे में केंद्र सरकार की नीतियां
महबूबा मुफ्ती के इस बयान से जम्मू-कश्मीर की केंद्र सरकार द्वारा लागू की जा रही नीतियों पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। मुफ्ती का मानना है कि मौजूदा दौर में कोई भी पार्टी, चाहे वह कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, अपने मूल सिद्धांतों और एजेंडों को लागू नहीं कर सकती। इसका मुख्य कारण केंद्र सरकार की कठोर नीतियां और राज्य में फैला अस्थिर माहौल है।
महबूबा मुफ्ती की रणनीति: एक सोच-विचार का परिणाम
महबूबा मुफ्ती का यह निर्णय अचानक नहीं आया है। यह उनके पिछले कुछ वर्षों में उठाए गए कदमों और कश्मीर की बदलती राजनीतिक स्थितियों का परिणाम है। पीडीपी ने कश्मीर में हमेशा से ही अलगाववादियों के साथ बातचीत और सुलह की नीति को प्राथमिकता दी है। लेकिन मौजूदा सरकार की कठोर नीतियों और सुरक्षा बलों की कड़ी निगरानी के चलते इस तरह की नीतियों को लागू करना अब लगभग असंभव हो गया है।
महबूबा मुफ्ती का भविष्य: राजनीति से दूरी या नई भूमिका?
महबूबा मुफ्ती के इस निर्णय के बाद यह सवाल उठता है कि क्या वह राजनीति से पूरी तरह से दूर हो जाएंगी, या फिर कोई नई भूमिका निभाने की योजना बना रही हैं? कश्मीर की राजनीति में उनकी एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है और भविष्य में भी उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। हो सकता है कि वह किसी नए राजनीतिक प्लेटफॉर्म या आंदोलन की तैयारी कर रही हों, जहां से वह कश्मीर के मुद्दों को नई दिशा दे सकें।
महबूबा मुफ्ती की राजनीतिक यात्रा: चुनौतियों से भरा सफर
महबूबा मुफ्ती की राजनीतिक यात्रा हमेशा से ही चुनौतियों से भरी रही है। एक महिला के रूप में कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में नेतृत्व करना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने कई बार अपने फैसलों से लोगों को चौंकाया है और अपने सिद्धांतों के लिए हमेशा संघर्ष किया है। उनका यह नया कदम भी उनके राजनीतिक जीवन के महत्वपूर्ण फैसलों में से एक है, जो कश्मीर की राजनीति को एक नई दिशा दे सकता है।
कश्मीर में चुनावी राजनीति का भविष्य
महबूबा मुफ्ती के इस फैसले से कश्मीर में चुनावी राजनीति का भविष्य भी अनिश्चित हो गया है। अगर वह चुनाव नहीं लड़तीं, तो पीडीपी की स्थिति कमजोर हो सकती है। लेकिन, दूसरी ओर, यह भी संभव है कि उनका यह निर्णय पार्टी को एक नए राजनीतिक मोर्चे के रूप में उभरने का अवसर प्रदान करे।
क्या पीडीपी का एजेंडा अब भी प्रासंगिक है?
महबूबा मुफ्ती ने यह स्वीकार किया है कि वह पीडीपी का एजेंडा पूरा नहीं कर पाएंगी। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या पीडीपी का एजेंडा अब भी प्रासंगिक है, या फिर इसे नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है? कश्मीर की मौजूदा स्थिति में, जहां हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना हुआ है, पीडीपी का पारंपरिक एजेंडा कितना कारगर साबित हो सकता है, यह एक बड़ा सवाल है।
जम्मू कश्मीर की राजनीति में नई दिशा की तलाश
महबूबा मुफ्ती के इस फैसले से कश्मीर की राजनीति में एक नई दिशा की तलाश की जा रही है। उनका यह कदम राजनीति से दूर होने का संकेत नहीं है, बल्कि एक नई भूमिका और नई चुनौतियों के लिए खुद को तैयार करने का संकेत है। आने वाले समय में, महबूबा मुफ्ती कश्मीर की राजनीति में किस दिशा में आगे बढ़ेंगी, यह देखना दिलचस्प होगा।
कश्मीर की राजनीति में हमेशा से ही अनिश्चितता और बदलाव की स्थिति बनी रहती है। महबूबा मुफ्ती का यह निर्णय भी उसी प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसमें नेता अपने सिद्धांतों और नीतियों को नए सिरे से परिभाषित करते हैं और नए रास्तों की तलाश करते हैं। कश्मीर की जटिल राजनीति में, जहां सत्ता और सिद्धांतों के बीच लगातार संघर्ष होता रहता है, महबूबा मुफ्ती का यह निर्णय उनके अपने भविष्य के लिए कितना सही साबित होगा यह तो समय ही बताएगा, जम्मू कश्मीर की जनता इसको किस तरह से देखती हैं ये तो जम्मू कश्मीर की जनता अपने मत से ही साबित करेगी।
यह भी पढ़ें – जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव: बीजेपी की रणनीति और विवाद