Haryana vidhansabha election 2024: हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी द्वारा जारी की गई पहली सूची के बाद राज्य की सियासत में खलबली मच गई है। बीजेपी की पहली सूची के जारी होते ही पार्टी के कई बड़े नेताओं ने इस्तीफा दे दिया है। इस्तीफा देने वालों में भाजपा किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व विधायक सुखविंदर सिंह श्योराण प्रमुख हैं, जिन्होंने सोशल मीडिया पर ‘अलविदा भाजपा’ लिखकर पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफे का ऐलान किया। पूर्व उपप्रधानमंत्री चौ. देवीलाल के पोते आदित्य चौटाला ने भी भाजपा से इस्तीफा दे दिया
आदित्य चौटाला ने हरियाणा के मुख्यमंत्री को मार्केटिंग बोर्ड के चेयरमैन पद से अपना इस्तीफा भेज दिया है। वे चौधरी देवीलाल के सबसे छोटे बेटे जगदीश चौटाला के पुत्र हैं और डबवाली विधानसभा सीट से भाजपा का टिकट मांग रहे थे।
आदित्य चौटाला 2019 से पहले भाजपा में शामिल हुए थे। पार्टी ने 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्हें डबवाली से उम्मीदवार बनाया था। उन्हें हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर के करीबी नेताओं में गिना जाता रहा है।
बुधवार रात भाजपा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए 90 में से 67 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा की, लेकिन डबवाली सीट पर किसी का नाम नहीं आया। बताया जा रहा है कि शेष 23 सीटों की सूची में डबवाली के उम्मीदवार का भी ऐलान किया जाएगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, आदित्य चौटाला का दावा है कि डबवाली सीट के लिए उनके नाम पर अकेले चर्चा हो रही थी, लेकिन भाजपा ने जानबूझकर फैसला लटकाए रखा। इसके चलते उनके समर्थकों में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है।
आदित्य चौटाला, जो सिरसा के भाजपा जिलाध्यक्ष रह चुके हैं, उनके इस्तीफे को उनके ताऊ रणजीत चौटाला के इस्तीफे से भी जोड़कर देखा जा रहा है। कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद रणजीत चौटाला ने एक बैठक में कथित तौर पर कहा था कि भाजपा डबवाली सीट पर उन्हें टिकट देना चाहती थी। रणजीत चौटाला के इस्तीफा देने के कुछ ही समय बाद, आदित्य चौटाला ने भी भाजपा से नाता तोड़ लिया।
2019 लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए आदित्य चौटाला को लगभग एक साल पहले हरियाणा सरकार के मार्केटिंग बोर्ड का चेयरमैन नियुक्त किया गया था।
इस्तीफों की बाढ़ , किस-किस ने दिया इस्तीफा?
हरियाणा में बीजेपी की पहली लिस्ट सामने आते ही इस्तीफों की झड़ी लग गई है। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं और पदाधिकारियों ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया है, जिनमें भाजपा किसान मोर्चा ( BJP Kisan morcha) के प्रदेश अध्यक्ष सुखविंदर सिंह श्योराण, उकलाना से भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य सीमा गैबीपुर, और भाजपा किसान मोर्चा चरखी दादरी के जिलाध्यक्ष विकास उर्फ भल्ले चेयरमैन शामिल हैं। इन इस्तीफों ने हरियाणा की सियासत को गरमा दिया है।
सुखविंदर सिंह श्योराण ने अपने इस्तीफे की वजह पार्टी की टिकट वितरण प्रक्रिया में अपनी अनदेखी बताई। वह बाढ़डा सीट से टिकट के दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने इस सीट से उमेद पातूवास को टिकट दिया। इसी तरह से, उकलाना से टिकट के दावेदार शमशेर गिल और महम से टिकट के दावेदार शमशेर सिंह खरकड़ा ने भी पार्टी छोड़ने के संकेत दिए हैं।
पार्टी के भीतर असंतोष और बगावत के सुर
बीजेपी की पहली सूची जारी होने के बाद पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ता दिख रहा है। हरियाणा भाजपा के कई पुराने नेताओं और पदाधिकारियों ने पार्टी से नाराजगी जताई है। इन नेताओं का मानना है कि टिकट वितरण में योग्यता की जगह दल-बदलुओं को तरजीह दी गई है। पार्टी की ओर से कई ऐसे नेताओं को टिकट दिया गया है, जो हाल ही में कांग्रेस और जजपा छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए थे, जिससे पुराने नेताओं में असंतोष बढ़ गया है।
गुरुग्राम से दो दावेदारों, जीएल शर्मा और नवीन गोयल सहित 150 से अधिक ने छोड़ी पार्टी ने भी पार्टी के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका है। उन्होंने अपने समर्थकों के साथ बैठक बुलाई और टिकट वितरण प्रक्रिया पर सवाल उठाए। खासकर जीएल शर्मा ने कहा कि जब भाजपा सरकार में बिना खर्ची-पर्ची के नौकरियां दी जा रही हैं, तो टिकट वितरण में यह मापदंड क्यों नहीं अपनाया गया? उन्होंने यह भी संकेत दिया कि वह कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं।
भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष जीएल शर्मा, जो गुड़गांव विधानसभा सीट से टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे, को पार्टी ने टिकट नहीं दिया। शर्मा ब्राह्मण समाज के एक प्रभावशाली नेता के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें इस बार पार्टी की ओर से मौका नहीं मिला। इस फैसले से नाराज होकर उन्होंने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और आरोप लगाया कि पार्टी ने मेहनती कार्यकर्ताओं की अनदेखी की है।
जीएल शर्मा पहले कांग्रेस में थे और मनोहर सरकार के पहले कार्यकाल में भाजपा में शामिल हुए थे। भाजपा में आने के बाद उन्हें हरियाणा डेयरी विकास निगम के चेयरमैन पद पर नियुक्त किया गया था। उन्होंने संगठन की हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और लोकसभा चुनाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। पार्टी ने उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष का पद दिया था, लेकिन विधानसभा चुनाव में टिकट की उनकी मजबूत दावेदारी के बावजूद उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया।
अंततः, कार्यकर्ताओं से परामर्श के बाद जीएल शर्मा ने भाजपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने घोषणा की कि 8 सितंबर को वे फिर से कांग्रेस में शामिल होंगे।
सत्ता विरोधी लहर के बावजूद कुछ नेताओं को पार्टी ने दिया टिकट
भाजपा की 67 उम्मीदवारों की इस पहली सूची में कुछ ऐसे मौजूदा विधायकों और मंत्रियों को टिकट दिया गया है, जिनके खिलाफ सत्ता विरोधी लहर काफी तेज़ है। सर्वे रिपोर्ट्स में इन विधायकों और मंत्रियों की स्थिति खराब बताई गई थी, बावजूद इसके पार्टी ने उन्हें टिकट दिया। इससे पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगहों पर असंतोष और चर्चा का माहौल गर्म है।
इस सूची में कई सीटिंग विधायकों और हारे हुए उम्मीदवारों के टिकट काट दिए गए हैं। यह फैसला पार्टी के उन नेताओं के लिए भी चौंकाने वाला रहा, जो अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों में सक्रिय थे और जनता के बीच लोकप्रियता हासिल कर रहे थे। लेकिन पार्टी ने उन पर विश्वास नहीं जताया।
प्रमुख दल-बदलुओं को पार्टी से मिला टिकट
बीजेपी ने अपने कई पुराने नेताओं की अनदेखी कर कुछ नए चेहरों और दल-बदलुओं को टिकट दिया है। इसमें पूर्व मंत्री अनूप धानक को उकलाना से, पूर्व मंत्री देवेंद्र बबली को टोहाना से, और रामकुमार गौतम को सफीदों से टिकट दिया गया है। इसके अलावा बंसीलाल की पोती श्रुति चौधरी को तोशाम से टिकट मिला है। हिसार से टिकट की दावेदारी कर रहे जिंदल परिवार को इस बार झटका लगा है, क्योंकि यहां से मौजूदा विधायक कमल गुप्ता को फिर से टिकट दिया गया है।
यह देखा जा सकता है कि भाजपा ने अपनी लिस्ट में कई ऐसे दल-बदलुओं को भी शामिल किया है, जो कांग्रेस और जजपा से आए हैं। इस कदम ने पुराने और निष्ठावान पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच नाराजगी पैदा कर दी है, क्योंकि उन्हें टिकट नहीं दिया गया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस कदम से पार्टी के भीतर और इस्तीफे आ सकते हैं।
हरियाणा चुनाव 2024: भाजपा के नेताओं ने बगावत का रास्ता अपनाया
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में भाजपा को एक के बाद एक बगावत का सामना करना पड़ रहा है। कई प्रमुख नेताओं को टिकट न मिलने से नाराजगी बढ़ती जा रही है, और कुछ नेताओं ने पार्टी से इस्तीफा देकर स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया है। आइए, एक नजर डालते हैं उन बागी नेताओं पर जिन्होंने भाजपा से किनारा किया है:
1. रणजीत चौटाला – रानियां सीट
सिरसा जिले की रानियां सीट से टिकट न मिलने पर राज्य मंत्री रणजीत चौटाला ने भाजपा से इस्तीफा दे दिया है। रणजीत चौटाला पहले निर्दलीय चुनाव जीतकर रानियां से विधायक बने थे और बाद में भाजपा में शामिल हुए थे। भाजपा ने इस बार रानियां से शीशरपाल कंबोज को उम्मीदवार बनाया है, जिससे रणजीत चौटाला नाराज हो गए हैं।
2. सावित्री जिंदल – हिसार सीट
देश की सबसे अमीर महिलाओं में शुमार सावित्री जिंदल भी भाजपा के खिलाफ खड़ी हो गई हैं। हिसार से टिकट न मिलने पर उन्होंने बगावत कर दी है। भाजपा ने हिसार से मौजूदा विधायक कमल गुप्ता को प्रत्याशी बनाया है, जबकि सावित्री जिंदल खुद इस सीट से उम्मीदवार बनना चाहती थीं। गुरुवार को उन्होंने समर्थकों को संबोधित करते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की। सावित्री जिंदल पूर्व में विधायक रह चुकी हैं, और उनके बेटे नवीन जिंदल वर्तमान में कुरुक्षेत्र से सांसद हैं।
3. लक्ष्मण दास नापा – रतिया सीट
फतेहाबाद जिले की रतिया आरक्षित सीट से भाजपा विधायक लक्ष्मण दास नापा ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। पार्टी ने इस बार रतिया से पूर्व सांसद सुनीता दुग्गल को टिकट दिया है, जिससे नाराज होकर नापा ने बगावत का फैसला किया।
4. कर्णदेव कंबोज – इंद्री सीट
पूर्व मंत्री कर्णदेव कंबोज ने इंद्री सीट से टिकट न मिलने पर भाजपा छोड़ने का फैसला किया। अपने इस्तीफे में उन्होंने कहा कि पार्टी उन लोगों को प्राथमिकता दे रही है जो संगठन को नुकसान पहुंचा रहे हैं, जबकि समर्पित कार्यकर्ताओं की अनदेखी की जा रही है। भाजपा ने इंद्री सीट से रामकुमार कश्यप को उम्मीदवार बनाया है।
5. कविता जैन – सोनीपत सीट
भाजपा ने सोनीपत सीट पर इस बार पंजाबी समुदाय के निखिल मदान को टिकट दिया है, जिससे पूर्व कैबिनेट मंत्री कविता जैन नाराज हो गई हैं। पिछली बार चुनाव हार चुकीं कविता जैन मंच पर भावुक हो गईं और उन्होंने कहा कि उन्होंने पार्टी आलाकमान तक अपनी बात पहुंचा दी है। 8 सितंबर को वे कार्यकर्ताओं से सलाह-मशविरा करने के बाद अपना अगला कदम उठाएंगी।
हरियाणा चुनाव 2024 में भाजपा को इन बागी नेताओं की चुनौती से कैसे निपटना होगा, यह देखने वाली बात होगी। पार्टी के लिए यह बगावतें चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकती हैं।
क्या चुनावों पर होगा असर
हरियाणा में विधानसभा चुनाव हमेशा से ही रोमांचक रहे हैं, और बीजेपी की पहली लिस्ट के बाद उठे ये असंतोष के सुर चुनावी माहौल को और गरमाने का काम करेंगे। बीजेपी को चुनाव में अपने विरोधियों से सख्त मुकाबला करना पड़ सकता है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल भी भाजपा के भीतर की इस नाराजगी को भुनाने का मौका नहीं छोड़ेंगे।
बीजेपी के कुछ नेताओं के इस्तीफे और बगावत का असर पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ सकता है। अगर पार्टी इस असंतोष को समय रहते नहीं सुलझाती, तो आगामी चुनावों में इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके साथ ही, विपक्षी दल कांग्रेस और जजपा इस मौके का फायदा उठाकर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश करेंगे। खासकर उन क्षेत्रों में जहां से नाराजगी की खबरें आ रही हैं, वहां विपक्षी दलों का कद बढ़ सकता है।
टिकट वितरण में पारदर्शिता (transparency) पर सवाल
बीजेपी की इस सूची ने पार्टी के भीतर टिकट वितरण प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। पार्टी के कुछ नेताओं ने खुलकर कहा है कि टिकट वितरण में पारदर्शिता नहीं रखी गई और टिकट देने का मापदंड स्पष्ट नहीं है। पुराने कार्यकर्ताओं और नेताओं की उपेक्षा और दल-बदलुओं को प्राथमिकता देने की इस रणनीति पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
विपक्षी दल इस मौके का फायदा उठाकर बीजेपी पर हमले कर रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने इस मौके पर भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा है कि बीजेपी अपने ही नेताओं को दरकिनार कर रही है और चुनावी समीकरणों को ध्यान में रखकर फैसले कर रही है, जो अंततः पार्टी के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
निष्कर्ष
हरियाणा में भाजपा की पहली लिस्ट ने चुनावी राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है। इस्तीफों की झड़ी, बगावत के सुर, और पार्टी के भीतर असंतोष इस बात का संकेत हैं कि आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं होंगे। विपक्षी दलों के लिए यह एक सुनहरा मौका है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी इन चुनौतियों का सामना कैसे करती है और क्या वह चुनाव से पहले अपने भीतर के असंतोष को शांत कर पाएगी या नहीं।
हरियाणा की राजनीति में यह दौर बेहद संवेदनशील है और इसके नतीजे राज्य के भविष्य की दिशा तय करेंगे। भाजपा के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है, और उसे न केवल अपने नेताओं के असंतोष को दूर करना होगा बल्कि विपक्ष के हमलों का भी प्रभावी ढंग से सामना करना होगा।