ब्रांडेड नमकीन घोटाला: ख़राब नमकीन को जानवरों के चारे के नाम पर खरीद कर दूसरी नमकीन में मिलाकर मार्केट में बेचा जा रहा है, मामले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट का सख्त रुक,सरकार से जवाब मांगा है

Zulfam Tomar
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प्रयागराज – देश की स्वास्थ्य सुरक्षा पर एक गंभीर मामला सामने आया है, जिसमें ब्रांडेड कंपनियों की अस्वीकृत (रिजेक्ट) नमकीन, जो केवल जानवरों के चारे के लिए नीलाम की जाती थी, इंसानों को खाने के लिए बेची जा रही थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए इसे मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा माना है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक बार फिर खराब नमकीन के कारोबारियों पर सख्त रुख अपनाते हुए प्रमुख सचिव, खाद्य आपूर्ति विभाग से पूछा है कि वे पशु आहार के लिए घोषित ब्रांडेड कंपनियों की अस्वीकृत नमकीन को दोबारा पैक कर स्थानीय बाजार में बेचने वाले कारोबारियों के खिलाफ अब तक क्या कदम उठाए गए हैं। कोर्ट ने इस मामले पर कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए प्रमुख सचिव से तत्काल प्रभाव से रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है।

क्या है पूरा मामला?

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देश के कई जिलों में ब्रांडेड नमकीन की ऐसी खेपें तैयार की जाती हैं, जो गुणवत्ता के मानकों पर खरी नहीं उतरती। ऐसी नमकीन को कंपनियां जानवरों के चारे के लिए नीलाम करती हैं। लेकिन, हैरानी की बात यह है कि कुछ लोग इस अस्वीकृत नमकीन को खरीदकर, दूसरी नमकीन में मिलाकर फिर से पैक कर बाजार में इंसानों के लिए बेच रहे थे। इस पूरी प्रक्रिया में स्वास्थ्य सुरक्षा के मानकों की धज्जियां उड़ाई जा रही थीं, और इसे खाने वाले लोग गंभीर बीमारियों की चपेट में आ सकते थे।

कोर्ट का सख्त रुख

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। न्यायमूर्ति वी के बिड़ला और न्यायमूर्ति ए के सिंह देशवाल की खंडपीठ ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इसे जनहित याचिका में बदल दिया। कोर्ट ने पाया कि यह मामला केवल कुछ जिलों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश का विषय है। कोर्ट ने इस मसले पर कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए हैं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हो सकें।

यह मामला 2020 से ही अदालत के सामने आ रहा है, जब तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति समित गोपाल की पीठ ने स्वतः संज्ञान लेकर इस मुद्दे पर जनहित याचिका दर्ज की थी। उस समय कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह इस तरह के गंभीर मामले में कार्रवाई करे। हालांकि, सरकार की ओर से कोई संतोषजनक जवाब न मिलने पर कोर्ट ने उस समय जुर्माना भी लगाया था। इसके बाद मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने शुरू की थी।

वर्तमान में यह मामला न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिरला की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष है। कोर्ट ने अब तक की गई कार्रवाई का ब्योरा मांगा है

सरकार को दिए गए निर्देश

कोर्ट ने इस घोटाले में शामिल लोगों पर कार्रवाई के लिए केंद्र और राज्य सरकार से हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने विशेष रूप से उपभोक्ता मंत्रालय, खाद्य और लोक वितरण मंत्रालय को इस मामले का पक्षकार बनाया है। इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य के खाद्य एवं सुरक्षा अधिकारियों और नागरिक आपूर्ति विभाग से भी पिछले आदेशों का अनुपालन करते हुए कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी है।

अदालत ने यह भी कहा कि जो लोग इस अस्वीकृत नमकीन को जानवरों के बजाय इंसानों के लिए बेच रहे हैं, उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। कोर्ट ने इन लोगों पर तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करते हुए उनकी पहचान करने का भी निर्देश दिया है।

अधिवक्ता आशुतोष कुमार तिवारी की अर्जी

इस मामले में अधिवक्ता आशुतोष कुमार तिवारी ने एक अर्जी दाखिल की है, जिसमें उन्होंने कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं। कोर्ट ने उनकी अर्जी को स्वीकार कर उन्हें अपने दावों को डाटा सहित प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। यह अर्जी इस मामले में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, क्योंकि इससे साफ होगा कि किन-किन जिलों और क्षेत्रों में यह घोटाला चल रहा था और इसमें कौन-कौन से लोग शामिल थे।

ब्रांडेड कंपनियों की भूमिका

इस पूरे मामले में ब्रांडेड कंपनियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। ये कंपनियां जो नमकीन जानवरों के चारे के लिए नीलाम करती हैं, उनका यह दावा होता है कि यह नमकीन इंसानों के उपयोग के लिए नहीं है। लेकिन इसके बावजूद, इस नमकीन को खरीदकर इंसानों के लिए बेचने वाले लोग इस खेल को बखूबी अंजाम दे रहे थे। सवाल यह उठता है कि कंपनियां इस पर सख्त नज़र क्यों नहीं रख रही थीं? क्यों उन्होंने इस अस्वीकृत नमकीन के बाजार में दोबारा आने पर रोक नहीं लगाई?

मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा

इस पूरी प्रक्रिया को स्वास्थ्य के नजरिए से देखें, तो यह बेहद खतरनाक है। जो नमकीन जानवरों के लिए बनाई गई है, उसे इंसानों के लिए बेचने से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। इसमें विभिन्न प्रकार के रसायन, घटिया गुणवत्ता के तेल, और अन्य पदार्थ होते हैं जो इंसानों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकते हैं। लंबे समय तक इस तरह की नमकीन का सेवन करने से कैंसर, हृदय रोग, और पेट संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद क्या होगा?

अब जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले पर सख्त रुख अपनाया है, तो उम्मीद है कि सरकारें और संबंधित विभाग इस पर तेजी से कार्रवाई करेंगे। कोर्ट ने कहा है कि यह केवल कानपुर या बरेली जैसे शहरों का मामला नहीं है, बल्कि पूरे देश में इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से 20 सितंबर तक अपनी कार्रवाई की रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया है।

नियमों की सख्ती

इस मामले में एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि खाद्य सुरक्षा के नियमों को और सख्त बनाया जाए। वर्तमान में, खाद्य सुरक्षा के जो नियम हैं, उनमें कई खामियां हैं, जिनका फायदा उठाकर लोग इस तरह की घातक प्रक्रियाएं कर रहे हैं। सरकार को चाहिए कि वह खाद्य सुरक्षा नियमों में संशोधन करे और उन्हें सख्त बनाएं, ताकि इस तरह की घटनाओं पर रोक लग सके।

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जनता की भूमिका

इस पूरे मामले में जनता की भी एक अहम भूमिका है। उपभोक्ताओं को जागरूक होने की जरूरत है कि वे क्या खरीद रहे हैं और क्या खा रहे हैं। अगर किसी उत्पाद की गुणवत्ता पर संदेह हो, तो उसे खरीदने से बचना चाहिए। इसके अलावा, ऐसे मामलों में सरकारी हेल्पलाइनों पर शिकायत दर्ज कराई जा सकती है, ताकि समय रहते इस पर कार्रवाई हो सके।

सख्त सजा की मांग

इस मामले में दोषियों के खिलाफ सख्त सजा की मांग उठ रही है। जो लोग इस तरह से मानव स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, उन्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए, ताकि भविष्य में कोई और ऐसा करने की हिम्मत न कर सके। जनता का भी यह कर्तव्य बनता है कि वह ऐसी घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाए और सरकार से इस पर सख्त कदम उठाने की मांग करे।

निष्कर्ष

यह पूरा मामला केवल नमकीन का नहीं है, बल्कि यह हमारे स्वास्थ्य और सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। इस तरह के मामले  दिखाते हैं हमारी खाद्य सुरक्षा प्रणाली में कई खामियां हैं, जिनका फायदा उठाकर लोग इस तरह के घोटाले कर रहे हैं। अभी हाल ही में मसाला घोटाला सामने आया

सरकार, कंपनियां और जनता – तीनों की संयुक्त जिम्मेदारी बनती है कि वे इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए मिलकर काम करें। केवल कानूनी कार्रवाई ही नहीं, बल्कि उपभोक्ताओं को भी जागरूक होना पड़ेगा, ताकि वे ऐसे उत्पादों से दूर रहें जो उनकी सेहत के लिए हानिकारक हो सकते हैं।

अगली सुनवाई 20 सितंबर को होने वाली है, जिसमें यह देखा जाएगा कि सरकारें और संबंधित विभाग इस मामले में क्या कदम उठाते हैं।

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