एनसीपीसीआर और मदरसा शिक्षा पर सुप्रीम कोर्ट का सवाल
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई हुई, जिसमें मदरसा शिक्षा को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की चिंता पर चर्चा हुई। एनसीपीसीआर ने कहा था कि मदरसों को मुख्यधारा की शिक्षा के विकल्प के रूप में नहीं देखा जा सकता। उनका तर्क था कि मदरसा में पढ़ने वाले बच्चों को भविष्य में नौसेना, चिकित्सा, इंजीनियरिंग और अन्य पेशेवर क्षेत्रों में करियर बनाने का मौका नहीं मिल पाएगा, क्योंकि उन्हें इन क्षेत्रों के लिए जरूरी शिक्षा नहीं मिलती।
सुप्रीम कोर्ट का सवाल: सिर्फ मदरसे क्यों ?
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एनसीपीसीआर से सवाल किया कि क्यों सिर्फ मदरसों को लेकर ही चिंता जताई जा रही है? मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या एनसीपीसीआर ने अन्य धार्मिक संस्थानों के बारे में भी ऐसी ही चिंता जताई है, जो अपने समुदायों के बच्चों को धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं? उन्होंने पूछा कि क्या एनसीपीसीआर ने अन्य धर्मों के स्कूलों या संस्थानों पर भी कोई निर्देश जारी किए हैं कि जब तक वे धर्मनिरपेक्ष (नॉन-रिलीजन बेस्ड) विषयों की शिक्षा न दें, तब तक बच्चों को वहां न भेजा जाए?
धार्मिक शिक्षा बनाम मुख्यधारा की शिक्षा
इस मुद्दे पर एनसीपीसीआर की ओर से सीनियर एडवोकेट स्वरूपमा चतुर्वेदी ने अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि मदरसे की शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा के विकल्प के रूप में नहीं देखा जा सकता। अगर मदरसा शिक्षा स्कूली शिक्षा का पूरक (सप्लिमेंट्री) है, तो इस पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इसे पूरी तरह से स्कूली शिक्षा का विकल्प नहीं माना जा सकता। उनका कहना था कि मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को नौसेना, डॉक्टर, इंजीनियर या अन्य प्रोफेशनल क्षेत्रों में आगे बढ़ने का सही मौका नहीं मिल पाएगा, क्योंकि मदरसों में इन क्षेत्रों के लिए आवश्यक शिक्षा नहीं दी जाती।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
यह मामला तब और चर्चा में आया जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2004 के उत्तर प्रदेश मदरसा कानून को असंवैधानिक करार दिया था। हाईकोर्ट का मानना था कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। इस फैसले के खिलाफ याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं, जिन पर मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सुनवाई की। कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि एनसीपीसीआर को यह बताना होगा कि क्या उसने सभी समुदायों के धार्मिक शिक्षा संस्थानों के बारे में समान रूप से चिंता जताई है या नहीं।
एनसीपीसीआर का पक्ष
एनसीपीसीआर के वकील ने कोर्ट को बताया कि आयोग ने मदरसा शिक्षा प्रणाली की कमियों पर एक रिपोर्ट तैयार की है और विभिन्न राज्यों को इस पर कार्रवाई करने के लिए कहा है। आयोग का रुख यह है कि धार्मिक शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा का विकल्प नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही, अगर मदरसे में पढ़ाई हो रही है तो उसमें धर्मनिरपेक्ष विषय, जैसे कि विज्ञान, गणित और सामाजिक अध्ययन भी पढ़ाया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने एनसीपीसीआर से कई अहम सवाल पूछे। कोर्ट ने जानना चाहा कि क्या एनसीपीसीआर ने अन्य धार्मिक संस्थानों, जैसे कि मठ, पाठशाला, गुरुकुल या चर्चों से जुड़ी संस्थाओं पर भी ऐसे ही निर्देश जारी किए हैं? कोर्ट ने यह भी पूछा कि क्या एनसीपीसीआर ने यह निर्देश जारी किया है कि जब बच्चों को धार्मिक संस्थानों में पढ़ने भेजा जाए, तो उन्हें विज्ञान और गणित जैसे जरूरी विषय जरूर पढ़ाए जाएं। मुख्य न्यायाधीश ने एनसीपीसीआर से स्पष्ट रूप से पूछा कि वह सिर्फ मदरसों को लेकर ही क्यों चिंतित है?
शिक्षा के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता
यह मामला सिर्फ मदरसों की शिक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे जुड़ा एक बड़ा मुद्दा भी है। भारत में हर नागरिक को अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जीने और अपने बच्चों को शिक्षा देने का अधिकार है। संविधान ने सभी नागरिकों को यह अधिकार दिया है कि वे अपने धर्म के अनुसार अपने बच्चों को शिक्षा दिला सकें। इसके साथ ही, हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अधिकार भी दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का सवाल यह था कि क्या एनसीपीसीआर का यह कदम सभी धर्मों के संस्थानों के लिए समान रूप से लागू हो रहा है, या सिर्फ मदरसों के खिलाफ ही इस तरह की चिंता जताई जा रही है। अगर एनसीपीसीआर का यह तर्क सही है कि धार्मिक शिक्षा मुख्यधारा की शिक्षा का विकल्प नहीं हो सकती, तो यह बात अन्य धार्मिक संस्थानों पर भी लागू होनी चाहिए।
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मदरसा शिक्षा का भविष्य
मदरसों में दी जाने वाली शिक्षा के बारे में कई तरह की बहसें चल रही हैं। कुछ लोग मानते हैं कि मदरसे बच्चों को धार्मिक और नैतिक शिक्षा देते हैं, जो उनके मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए जरूरी है। वहीं, कुछ लोग यह मानते हैं कि मदरसे में सिर्फ धार्मिक शिक्षा देने से बच्चों का भविष्य सीमित हो जाता है, क्योंकि उन्हें मुख्यधारा की प्रोफेशनल शिक्षा नहीं मिल पाती।
मदरसों के बच्चों को भी देश के अन्य बच्चों की तरह समान अवसर मिलने चाहिए, ताकि वे भी डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक या अन्य प्रोफेशनल क्षेत्रों में करियर बना सकें। इसके लिए जरूरी है कि मदरसे में धर्मनिरपेक्ष विषयों की पढ़ाई पर जोर दिया जाए, ताकि बच्चों को व्यापक दृष्टिकोण मिल सके और वे समाज के हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकें।
निष्कर्ष
एनसीपीसीआर द्वारा मदरसों के खिलाफ उठाए गए मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए हैं। कोर्ट ने एनसीपीसीआर से यह स्पष्ट करने को कहा है कि क्या उसने अन्य धर्मों के संस्थानों के बारे में भी ऐसे ही कदम उठाए हैं। मदरसा शिक्षा को मुख्यधारा की शिक्षा के साथ संतुलित करने के लिए जरूरी है कि इसमें धर्मनिरपेक्ष विषयों की पढ़ाई को शामिल किया जाए, ताकि बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मामले में आने वाला है, जो मदरसा शिक्षा के भविष्य को लेकर एक महत्वपूर्ण दिशा तय करेगा।
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