हाल ही में नेशनल मेडिकल कमिशन (NMC एनएमसी) द्वारा जारी किया गया (MBBS) एमबीबीएस कोर्स का नया करिकुलम विवादों में आ गया, जिसके चलते इसे भारी विरोध के बाद वापस ले लिया गया है। इस नए करिकुलम में समलैंगिकता और गुदामैथुन (sodomy) को अप्राकृतिक यौन अपराध के रूप में परिभाषित किया गया था, जिसके कारण एलजीबीटीक्यूआईए+ (LGBTQI+) समुदाय में भारी असंतोष फैल गया। इसके अलावा, वर्जिनिटी (कौमार्य) और हाइमन की अहमियत को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया गया था, जो 2022 में मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार पहले ही हटाए जा चुके थे। इस लेख में हम विस्तार से इस विवाद का विश्लेषण करेंगे, इसके परिणामों पर विचार करेंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि कैसे यह कदम चिकित्सा शिक्षा और सामाजिक समानता पर प्रभाव डालता है।
एनएमसी और नया एमबीबीएस करिकुलम
नेशनल मेडिकल कमिशन (एनएमसी) ने हाल ही में एमबीबीएस कोर्स के लिए नई सीबीएमई (Competency Based Medical Education) गाइडलाइंस जारी की थीं। यह गाइडलाइंस 31 अगस्त 2024 को प्रकाशित की गईं, जिसमें एमबीबीएस के छात्रों को कई नए विषयों पर शिक्षा देने की योजना बनाई गई थी। गाइडलाइंस के अंतर्गत फोरेंसिक मेडिसिन और टॉक्सिकोलॉजी के तहत समलैंगिकता और गुदामैथुन को अप्राकृतिक यौन अपराध के रूप में वर्णित किया गया था। इसके अलावा, हाइमन और कौमार्य के महत्व और उनके प्रकारों पर भी चर्चा की गई थी, जिन पर पहले ही न्यायालय ने सख्त निर्देश जारी किए थे।
इस नए पाठ्यक्रम के खिलाफ एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय ने कड़ा विरोध जताया, जो इसे अपने अधिकारों का उल्लंघन मानते हैं। विरोध इतना तीव्र था कि एनएमसी को मजबूर होकर यह पाठ्यक्रम वापस लेना पड़ा।
एनएमसी NMC ने यह भी कहा कि मेडिकल एजुकेशन सिलेबस से संबंधित गाइडलाइंस को संशोधित करके जल्द ही अपलोड किया जाएगा। इसके लिए https://nmc.org.in/ पर नवीनतम अपडेट्स देखे जा सकते हैं।
विवाद का मूल कारण: समलैंगिकता और अप्राकृतिक यौन अपराध
एनएमसी की गाइडलाइंस में सबसे विवादित हिस्सा यह था कि इसमें समलैंगिकता और गुदामैथुन को अप्राकृतिक यौन अपराध के रूप में परिभाषित किया गया था। यह परिभाषा न केवल भारत के सुप्रीम कोर्ट के 2018 के निर्णय के विपरीत थी, जिसमें समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था, बल्कि यह समाज के एक बड़े वर्ग की भावनाओं को भी आहत करती थी। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को असंवैधानिक ठहराते हुए स्पष्ट किया था कि सभी व्यक्तियों को अपने यौनिकता के अधिकार को स्वतंत्र रूप से चुनने का हक है। इस तरह की गाइडलाइंस का जारी होना कानून की इस भावना के विपरीत जाता है।
एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के एक्टिविस्ट्स का कहना है कि यह गाइडलाइंस विकलांग व्यक्तियों और एलजीबीटीक्यू लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। उनका मानना है कि मेडिकल छात्रों को ऐसे विषय पढ़ाना जो भेदभाव को प्रोत्साहित करते हैं, समाज में असमानता और पूर्वाग्रह को और बढ़ावा देता है।
वर्जिनिटी और हाइमन की अहमियत पर चर्चा
इस नए करिकुलम में वर्जिनिटी और हाइमन के प्रकारों पर भी विस्तार से चर्चा की गई थी। कौमार्य (वर्जिनिटी) और हाइमन (योनिच्छद) को लेकर भारतीय समाज में पहले से ही कई मिथक और गलत धारणाएं हैं। यह धारणाएं महिलाओं पर अनावश्यक दबाव डालती हैं और उनके व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। हाइमन का टूटना हमेशा यौन संबंध का परिणाम नहीं होता, और इसे कौमार्य का प्रतीक मानना वैज्ञानिक दृष्टि से गलत है। 2022 में मद्रास उच्च न्यायालय ने इन मुद्दों को लेकर सख्त निर्देश दिए थे, और तब यह निर्णय लिया गया था कि ऐसे विषयों को मेडिकल सिलेबस से हटा दिया जाए। इसके बावजूद, एनएमसी द्वारा इन्हें नए करिकुलम में फिर से शामिल किया जाना समाज और न्यायपालिका के निर्देशों के विपरीत है।
एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय का विरोध
एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय ने एनएमसी की इन गाइडलाइंस को लेकर व्यापक विरोध किया। उनका मानना है कि यह न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि यह मेडिकल छात्रों में भेदभाव को बढ़ावा देता है। एक्टिविस्ट्स का कहना है कि मेडिकल शिक्षा का उद्देश्य सभी व्यक्तियों को समान दृष्टिकोण से देखना और उनका उपचार करना होना चाहिए, न कि उन्हें उनके यौनिकता के आधार पर आंकना।
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2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद, जहां समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया था, यह कदम चिकित्सा समुदाय के लिए एक झटका साबित हुआ। एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के लोगों ने इसे एक बड़ा कदम पीछे बताया और मांग की कि इन गाइडलाइंस को तुरंत वापस लिया जाए।
एनएमसी का कदम और नई घोषणाएं
एनएमसी ने बढ़ते विरोध को देखते हुए 31 अगस्त 2024 को जारी गाइडलाइंस को तुरंत प्रभाव से वापस लेने का निर्णय लिया। एनएमसी ने एक आधिकारिक बयान में कहा, “यह सूचित किया जाता है कि दिनांक 31 अगस्त 2024 को जारी सर्कुलर जिसमें सीबीएमई 2024 के तहत दिशानिर्देश जारी किए गए थे, तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया गया है और रद्द कर दिया गया है। नए दिशानिर्देशों को यथासमय संशोधित कर अपलोड किया जाएगा।”
यह कदम दिखाता है कि जब जनता और समाज के कुछ वर्गों द्वारा किसी नीति का व्यापक विरोध होता है, तो संस्थान भी उस पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य हो जाते हैं। एनएमसी ने इस विरोध के बाद यह सुनिश्चित किया कि भविष्य में जारी होने वाले नए दिशानिर्देशों में किसी भी समुदाय या व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन न हो।
वापस ली गई गाइडलाइंस में अन्य महत्वपूर्ण बिंदु
नई सीबीएमई गाइडलाइंस में समलैंगिकता और कौमार्य के मुद्दों के अलावा अन्य कई महत्वपूर्ण बिंदु भी थे। इनमें प्रमुख रूप से एमबीबीएस पाठ्यक्रम में ‘नेक्स्ट’ (NExT) परीक्षा प्रणाली को लागू करने की योजना भी शामिल थी। यह नया परीक्षा सिस्टम दो फेज़ों में लागू किया जाना था, जिसमें पहला फेज एमबीबीएस के 54वें सप्ताह से शुरू होता और दूसरा फेज अनिवार्य रोटेटिंग मेडिकल इंटर्नशिप (सीआरएमआई) के 12वें महीने के दौरान होता।
गाइडलाइंस के अनुसार, एमबीबीएस छात्र केवल तभी यूनिवर्सिटी एमबीबीएस परीक्षाओं या ‘नेक्स्ट’ एग्जाम में बैठ सकेंगे जब उनकी उपस्थिति इलेक्टिव्स में 75 प्रतिशत होगी और उन्होंने इलेक्टिव्स के दौरान बनाई गई लॉग बुक को सबमिट किया होगा। यह कदम मेडिकल शिक्षा में अनुशासन और गुणवत्ता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लिया गया था।
विरोध के मायने और आगे का रास्ता
एनएमसी द्वारा एमबीबीएस करिकुलम को लेकर किए गए संशोधनों के बाद यह स्पष्ट है कि चिकित्सा शिक्षा को समसामयिक मुद्दों और संवैधानिक प्रावधानों के साथ तालमेल बिठाना आवश्यक है। समाज के हर वर्ग के अधिकारों का सम्मान करना, विशेष रूप से चिकित्सा शिक्षा में, महत्वपूर्ण है क्योंकि भविष्य के डॉक्टरों को समाज के विभिन्न वर्गों के साथ कार्य करना होता है। यदि छात्रों को शुरुआत से ही गलत धारणाएं सिखाई जाएंगी, तो यह न केवल उनके पेशेवर जीवन में बाधा बनेगी बल्कि समाज में असमानता और भेदभाव को भी बढ़ावा देगी।
इस घटना से यह भी स्पष्ट होता है कि चिकित्सा शिक्षा जैसे गंभीर और संवेदनशील क्षेत्र में किसी भी बदलाव को लागू करने से पहले व्यापक रूप से विचार-विमर्श और सभी संबंधित हितधारकों की राय ली जानी चाहिए।
निष्कर्ष
एमबीबीएस के नए करिकुलम को लेकर एनएमसी द्वारा लिया गया निर्णय और इसके बाद हुए विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया कि चिकित्सा शिक्षा में परिवर्तन और संशोधन करते समय सामाजिक न्याय और संवैधानिक अधिकारों का ध्यान रखना बेहद आवश्यक है। एलजीबीटीक्यूआईए+ समुदाय के विरोध के बाद गाइडलाइंस को वापस लेना यह दर्शाता है कि जब जनता अपनी आवाज़ उठाती है, तो संस्थान भी उसे सुनने के लिए बाध्य होते हैं। भविष्य में एनएमसी को यह सुनिश्चित करना होगा कि चिकित्सा शिक्षा सभी के अधिकारों और स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए आगे बढ़े।
साथ ही, यह घटना हमें यह याद दिलाती है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं होता, बल्कि एक समान और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण करना भी होता है। चिकित्सा छात्रों को समानता, निष्पक्षता और सम्मान का महत्व सिखाना उनकी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए।