LGBTQIA+ का पूरा विवरण: सरल भाषा में समझें

LGBTQIA+ समुदाय का नाम आपने कई बार सुना होगा, लेकिन इसका मतलब और इसमें कौन-कौन से लोग आते हैं, अगर नहीं जानते हैं तो इसे समझना जरूरी है। LGBTQIA+ एक ऐसा समुदाय है जो विभिन्न लिंग पहचान और यौन इच्छा (sexual orientation) वाले लोगों को जोड़ता है। 

भारत में, LGBTQIA+ समुदाय का एक विशिष्ट सामाजिक समूह ‘हिजड़ा’ भी शामिल है। सांस्कृतिक रूप से उन्हें “न पूरी तरह पुरुष, न पूरी तरह महिला” या एक महिला की तरह व्यवहार करने वाले पुरुषों के रूप में देखा जाता है। वर्तमान में, उन्हें कानूनी और सामाजिक रूप से “थर्ड जेंडर” यानी तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी गई है।

इस आर्टिकल में हम आपको इसका मतलब , इसका इतिहास और इससे जुड़े हुए इंर्पोटेंट फक्ट डिस्कस करेंगे अधिक जानकारी के लिए कृपया पूरा आर्टिकल पढ़ें।

LGBTQIA+ का मतलब क्या है?

LGBTQIA+ कई शब्दों से मिलकर बना है, जो अलग-अलग लोगों की पहचान और यौन इच्छा को दर्शाते हैं।

  • L : Lesbian (लेस्बियन)
  • G : Gay (गे)
  • B : Bisexual (बाइसेक्सुअल)
  • T : Transgender (ट्रांसजेंडर)
  • Q : Queer (क्वीयर) या Questioning (जो अपनी पहचान तलाश रहे हों)
  • I : Intersex (इंटरसेक्स)
  • A : Asexual (ऐसेक्सुअल) या Ally (समर्थक)
  • + : अन्य पहचानें और यौन रुझान जिन्हें इस समुदाय में शामिल किया गया है।
1. Lesbian (लेस्बियन): 

लेस्बियन वे महिलाएं होती हैं  जिन्हें केवल महिलाओं से प्यार या शारीरिक आकर्षण होता है। जिन्हें अन्य महिलाओं की तरफ आकर्षण महसूस होता है। यह उनकी यौन इच्छा है, जो उन्हें महिलाओं के प्रति भावनात्मक और शारीरिक रूप से आकर्षित /अट्रैक्ट करता है।

2. Gay (गे): 

गे उन पुरुषों के लिए शब्द है जो अन्य पुरुषों की तरफ शारीरिक या भावनात्मक रूप यौन आकर्षण महसूस करते हैं या  आकर्षित होते हैं।

3. Bisexual (बाइसेक्सुअल): 

बाइसेक्सुअल वे लोग होते हैं जिन्हें दोनों लिंगों, यानी पुरुषों और महिलाओं की तरफ यौन आकर्षण / अट्रैक्टसन होता है।

4. Transgender (ट्रांसजेंडर): 

ट्रांसजेंडर वे लोग होते हैं जिनकी लिंग पहचान उनके जन्म के समय दिए गए लिंग से अलग होती है। मसलन, अगर किसी को जन्म के समय ‘पुरुष’ कहा गया था लेकिन वे खुद को ‘महिला’ मानते हैं, तो वे ट्रांसजेंडर कहलाते हैं। ट्रांसजेंडर व्यक्ति सर्जरी या हार्मोनल उपचार के माध्यम से अपनी पहचान के साथ तालमेल बिठा सकते हैं, लेकिन ये हर व्यक्ति के लिए आवश्यक नहीं है।

5. Queer (क्वीयर) या Questioning: 

क्वीयर एक व्यापक शब्द है जिसका उपयोग उन लोगों के लिए होता है जो पारंपरिक लिंग पहचान या यौन इच्छा में फिट नहीं होते। कुछ लोग अपनी पहचान को लेकर स्पष्ट नहीं होते मतलब उन्हें पता नहीं होता कि वो महिला की तरफ आकर्षित हो रहे हैं या पुरुष की तरफ आकर्षित होते है उन्हे “Questioning” कहा जाता है, यानी वे अभी अपनी पहचान की खोज में होते हैं।

6. Intersex (इंटरसेक्स):

इंटरसेक्स वे लोग होते हैं जिनके शरीर में जन्म से ही पुरुष और महिला दोनों के लक्षण होते हैं। यह बहुत ही दुर्लभ होता है, और कई बार लोग इसे समझ नहीं पाते। जिनका शरीर जन्म के समय महिला या पुरुष की पारंपरिक लिंग विशेषताओं से मेल नहीं खाता। इसका मतलब यह हो सकता है कि उनके प्रजनन अंग या क्रोमोसोम दोनों लिंगों की विशेषताएँ रखते हैं। मतलब वह महिला और पुरुष दोनों के प्रजनन अंग या कमोजोम्स एक साथ रखते हैं । इंटरसेक्स लोगों के साथ अक्सर सामाजिक या चिकित्सीय हस्तक्षेप होता है, जिससे उनकी पहचान प्रभावित होती है।

7. Asexual (ऐसेक्सुअल):  

ऐसेक्सुअल वे लोग होते हैं जो यौन आकर्षण महसूस नहीं करते। इसका यह मतलब नहीं है कि उन्हें किसी से प्यार नहीं होता, बल्कि उन्हें यौन रूप से किसी के प्रति आकर्षण नहीं होता। लेकिन वे भावनात्मक संबंध बना सकते हैं।

8. Ally (समर्थक): 

एलाय वे लोग होते हैं जो LGBTQIA+ समुदाय के समर्थक होते हैं, भले ही उनकी अपनी यौन पहचान इस श्रेणी में न आती हो। वे इस समुदाय के अधिकारों और समानता के लिए समर्थन देते हैं।

अब LGBTQIA+ का इतिहास: आसान भाषा में विस्तार से समझें

LGBTQIA+ समुदाय का इतिहास बहुत पुराना और संघर्ष से भरा है। अलग-अलग समय पर इस समुदाय के लोगों को समाज, धर्म और कानून की ओर से भेदभाव का सामना करना पड़ा। लेकिन, समय के साथ-साथ LGBTQIA+ अधिकारों के लिए लड़ाई शुरू हुई और आज दुनिया के कई हिस्सों में इन लोगों को समान अधिकार मिलने लगे हैं। आइए, इस समुदाय के इतिहास को विस्तार से समझते हैं।

 प्राचीन समय में LGBTQIA+ समुदाय

1. प्राचीन सभ्यताएं (5000 साल पहले):  

अगर हम बहुत पुराने समय की बात करें, तो प्राचीन सभ्यताओं में LGBTQIA+ समुदाय के लिए कुछ जगहें थीं।

मेसोपोटामिया : (आज के इराक का क्षेत्र): वहां कुछ दस्तावेज बताते हैं कि समलैंगिकता को सामान्य माना जाता था।

ग्रीक और रोमन सभ्यता : यहां भी समलैंगिक संबंधों को बुरा नहीं माना जाता था। कई प्रसिद्ध ग्रीक दार्शनिक, जैसे सुकरात और प्लेटो, ने समलैंगिकता को जीवन का एक सामान्य हिस्सा माना।

भारत में : प्राचीन भारत में भी LGBTQIA+ संबंधों के उदाहरण मिलते हैं। कामसूत्र जैसे प्राचीन ग्रंथों में समलैंगिकता का जिक्र मिलता है, और कई देवी-देवताओं की कहानियों में भी LGBTQIA+ पहचान के संकेत मिलते हैं।

मध्यकाल और धर्म का प्रभाव

2. मध्यकाल (500-1500 AD):

मध्यकाल में धर्म का प्रभाव बहुत बढ़ा और समलैंगिकता को पाप और अपराध माना जाने लगा।

ईसाई धर्म : ईसाई चर्च ने समलैंगिकता को पाप घोषित कर दिया, और समलैंगिक लोगों को सजा दी जाती थी।

इस्लाम और हिंदू धर्म : इस्लाम और हिंदू धर्म के कई हिस्सों में भी समलैंगिकता को गलत माना गया, लेकिन हर जगह इसका असर एक जैसा नहीं था।

यूरोप में सजा : मध्यकालीन यूरोप में समलैंगिक लोगों को सजा के तौर पर मार दिया जाता था, और कई बार उन्हें जिंदा जलाया जाता था।

आधुनिक समय में LGBTQIA+ आंदोलन

3. 19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत:

विज्ञान और मनोविज्ञान : 19वीं सदी के अंत में कुछ वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों ने समलैंगिकता को एक बीमारी या विकार के रूप में देखा। इससे LGBTQIA+ लोगों के खिलाफ और भेदभाव बढ़ गया।

पहला आंदोलन : 19वीं सदी के अंत में LGBTQIA+ अधिकारों के लिए छोटे-छोटे आंदोलन शुरू हुए, खासकर यूरोप में। यह वो समय था जब समलैंगिकता को अपराध मानने के खिलाफ आवाजें उठने लगी थीं।

4. स्टोनवॉल दंगे (1969) :

LGBTQIA+ आंदोलन का सबसे बड़ा मोड़ 1969 में अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में हुआ।

स्टोनवॉल इन : न्यूयॉर्क के एक बार “स्टोनवॉल इन” पर पुलिस ने छापा मारा और LGBTQIA+ समुदाय के लोगों को परेशान किया।

दंगे की शुरुआत : इसके खिलाफ LGBTQIA+ समुदाय के लोगों ने विरोध किया, और यह विरोध कई दिनों तक चला। इसे “स्टोनवॉल दंगे” कहा जाता है, जिसने LGBTQIA+ अधिकारों की लड़ाई को पूरी दुनिया में मजबूत कर दिया।

5. 1970-1980 का दशक :

स्टोनवॉल दंगों के बाद, LGBTQIA+ अधिकारों के लिए बड़े आंदोलन शुरू हुए।

गर्व मार्च (Pride Parade) : 1970 में पहला LGBTQIA+ गर्व मार्च हुआ, जो आज “Pride Parade” के रूप में पूरी दुनिया में मनाया जाता है।

कानूनी अधिकार : 1970 और 1980 के दशक में कुछ देशों ने LGBTQIA+ समुदाय को कानूनी मान्यता देना शुरू किया। हालांकि, कई देशों में अब भी भेदभाव जारी रहा।

 21वीं सदी और LGBTQIA+ के लिए बदलाव

6. 21वीं सदी:  

नई सदी में LGBTQIA+ अधिकारों के लिए बड़ा बदलाव देखा गया।

समलैंगिक विवाह का अधिकार : 2001 में नीदरलैंड पहला देश बना जिसने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी। इसके बाद कई अन्य देशों ने भी समलैंगिक विवाह को मान्यता दी।

भारत में धारा 377 : 2018 में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को खत्म कर दिया, जिससे समलैंगिक संबंध अब कानूनी हो गए। यह LGBTQIA+ समुदाय के लिए भारत में एक ऐतिहासिक जीत थी।  इसके बारे में हम थोड़ा विस्तार से चर्चा करते है

     क्योंकि आज यानी 6 September का ऐतिहासिक दिन: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, जिसने 150 साल पुराने धारा 377 के टैबू को किया खत्म

 भारतीय समाज में कई दशकों तक समलैंगिकता को एक बड़ा टैबू माना जाता रहा। यह प्रतिबंध भारतीय दंड संहिता (IPC) के सेक्शन 377 के तहत लागू किया गया था, जो ब्रिटिश काल से ही समलैंगिक संबंधों को अपराध मानता था। लेकिन 06 सितंबर 2018 को भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसने इस पुराने कानून को पलट दिया। 

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

06 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने  कहा कि वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं माने जाएंगे। संविधान पीठ के इस फैसले ने LGBTQIA+ समुदाय को एक बड़ा राहत दी और उनके अधिकारों को कानूनी मान्यता मिली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिकता स्वाभाविक यानी नेचुरल है और इसे रोकने या नियंत्रण में लाने का कोई अधिकार नहीं है।

150 साल पुराना कानून खत्म  

भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को वर्ष 1862 में लागू किया गया था, जब भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था। इस कानून के तहत समलैंगिक संबंधों को “अप्राकृतिक अपराध” मानते हुए इसे दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखा गया था। LGBTQIA+ समुदाय ने इस कानून को बदलने के लिए वर्षों तक कानूनी लड़ाई लड़ी, और 18 साल के लंबे संघर्ष के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस टैबू को समाप्त कर दिया।

व्यक्तिगत स्वतंत्रता की नई शुरुआत

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने LGBTQIA+ को  अब, सहमति से समलैंगिक संबंध बनाना धारा 377 के अंतर्गत अपराध नहीं है। इस फैसले को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समानता के अधिकार के रूप में देखा गया। कोर्ट ने माना कि धारा 377 लोगों के संवैधानिक अधिकारों का हनन करती है और यह भेदभावपूर्ण है।

कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “बदलते समय की मांग है कि कानून की व्याख्या भी बदलती परिस्थितियों के अनुसार होनी चाहिए। अगर दो वयस्क अपनी सहमति से किसी निजी स्थान में संबंध बनाते हैं और यह किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुंचाता, तो उसे अपराध नहीं माना जा सकता। धारा 377 के तहत लगाए गए प्रतिबंध असंवैधानिक हैं और यह लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ हैं।”

धारा 377 के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई  

धारा 377 के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत एक गैर सरकारी संगठन, नाज़ फाउंडेशन ने 2001 में दिल्ली हाईकोर्ट में की थी। 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस धारा के कुछ प्रावधानों को अवैध घोषित किया था और वयस्क समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। हालांकि, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए मामला संसद के विचार के लिए छोड़ दिया था। अंततः, जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के लिए एक नई बेंच गठित की, जिसने 06 सितंबर 2018 को इस मामले पर अंतिम और ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने न केवल LGBTQIA+ समुदाय को कानूनी अधिकार दिए, बल्कि समाज को भी यह संदेश दिया कि प्रेम और पहचान का कोई मापदंड नहीं हो सकता। यह फैसला व्यक्तिगत स्वतंत्रता, समानता और गरिमा के अधिकार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

भारतीय सिनेमा में LGBTQIA+ समुदाय के बारे में लोगों मे चर्चाएं शुरू की

भारतीय सिनेमा, खासकर बॉलीवुड, ने वर्षों में LGBTQIA+ समुदाय के प्रति अपने नजरिए में बड़ा बदलाव देखा है। पहले जहां ‘कल हो ना हो‘, ‘बोल बच्चन‘ और ‘पार्टनर‘ जैसी फिल्मों में LGBTQIA+ पात्रों को केवल कॉमिक रिलीफ के रूप में दिखाया जाता था, वहीं अब ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान‘ जैसी फिल्मों ने यह संदेश दिया है कि एक पुरुष का दूसरे पुरुष से प्यार करना बिल्कुल सामान्य है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है।

2000 के दशक में बॉलीवुड में इस समुदाय के लोगों को असामान्य या मजाक के रूप में पेश किया जाता था, जिससे उनकी खिल्ली उड़ाने वाले दृश्य बनाए जाते थे। हालाँकि, समय के साथ यह रूढ़िवादी सोच बदलने लगी है, और अब LGBTQIA+ समुदाय का सही और संवेदनशील चित्रण देखने को मिल रहा है।

यहाँ कुछ ऐसी फिल्मों के बारे में हम बताएंगे जिन्होंने LGBTQIA+ समुदाय को सही रूप में पेश किया है और समाज में जागरूकता बढ़ाई है। भारतीय सिनेमा ने इस दिशा में धीरे-धीरे लेकिन ठोस कदम उठाए हैं, जो समाज में बदलाव का प्रतीक बनी है।

  • कपूर एंड सन्स

एलजीबीटीक्यूएआई +

समलैंगिकों का चित्रण बॉलीवुड में लंबे समय से एक लोकप्रिय विषय रहा है, और कई फिल्में इस पर आधारित रही हैं। आपको सुरेश मेनन और बॉबी डार्लिंग याद होंगे, जिन्होंने इस समुदाय की छवि को एक विशिष्ट ढांचे में पेश किया। हालांकि, फिल्म ‘कपूर एंड सन्स’ में फवाद खान ने समलैंगिक पात्र की भूमिका को एक नई दिशा दी। उन्होंने राहुल कपूर के किरदार को इस तरह से निभाया कि समलैंगिकता को अक्सर फिल्मों में दिखाए जाने वाले लाउड और स्टेरियोटाइपिकल तरीके से अलग तरीके से पेश किया। निर्देशक शकुन बत्रा ने एक समलैंगिक नायक को फिल्म में शामिल करके एक साहसिक कदम उठाया, जो इस मुद्दे की संवेदनशीलता और जटिलताओं को बेहतर ढंग से दर्शाता है।

 

  • गीली पुच्ची

एलजीबीटीक्यूएआई +

नीरज घायवान की यह फिल्म महिला के प्रेम को एक नई दृष्टि से प्रस्तुत करती है और उसकी कोमलता को बखूबी दर्शाती है। यह समलैंगिक लड़कियों के बारे में मौजूद स्टीरियोटाइप्स को चुनौती देती है, जिसमें उन्हें आमतौर पर टॉमबॉय के रूप में दिखाया जाता है। फिल्म ने यह भी स्पष्ट किया है कि कैसे महिला संबंध अक्सर पुरुषों के स्नेह के साथ प्रतिस्पर्धा में रहते हैं। घायवान ने अपने पात्रों को केवल धारणाओं या रूढ़िवादिता के अनुसार नहीं बनाया, जो इस काम को विशेष बनाता है। यह फिल्म इस मुद्दे की जटिलताओं को समझाने और दर्शाने में बेहद सफल रही है।

  • बधाई दो

एलजीबीटीक्यूएआई +

इस मूवी में लैवेंडर शादी की अवधारणा को दिखाना एक साहसिक कदम था। इस तरह की शादियों में, सामाजिक दबाव के कारण एक या दोनों भागीदारों को अपने यौन झुकाव को छिपाने के लिए यह विवाह सुविधा प्रदान करता है। फिल्म में पुलिस अधिकारी को समलैंगिक के रूप में दिखाना भी एक महत्वपूर्ण पहल है। बहुत से लोग शायद नहीं जानते कि लैवेंडर शादी भारत में समलैंगिक लोगों की वास्तविकता है। इस फिल्म ने इस मुद्दे पर चर्चा शुरू की है, जो इस विषय पर सकारात्मक संवाद को प्रोत्साहित करने की एक सराहनीय पहल है।

  • शुभ मंगल ज्यादा सावधान

LGBTQIA+

भारत की पहली मुख्यधारा की समलैंगिक रोमांस फिल्म के रूप में पहचानी जाने वाली ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ समान-सेक्स प्रेमी जोड़ों की अवधारणा को एक प्रगतिशील दृष्टिकोण से पेश करती है। यह एक ऐसा मुद्दा है जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपराधमुक्त किए जाने के 6 साल बाद भी भारत में एक वर्जित माना जाता है। LGBTQIA+ समुदाय भी इस फिल्म को समलैंगिकता के इर्द-गिर्द बातचीत के रूप में देखने के लिए उत्साहित था, जो इस विषय पर मुख्यधारा की बॉलीवुड फिल्म का स्वागत करने का एक बड़ा कारण है।

  • मार्गरीटा विद ए स्ट्रॉ

LGBTQIA+

ये फिल्म न केवल ईमानदार और दिल को छू लेने वाली है, बल्कि इसे शानदार ढंग से फिल्माया गया है। कल्कि कोचलिन ने सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित एक लड़की की भूमिका निभाई है, जिसे यह पता चलता है कि वह उभयलिंगी है। फिल्म में, वह एक पाकिस्तानी महिला से प्यार करने लगती है, जबकि अपनी माँ के साथ अपने रिश्ते को संतुलित करने की कोशिश करती है।

  • शीर कोरमा

LGBTQIA+

ये फिल्म निर्माता फ़राज़ आरिफ अंसारी की ‘शीर कोरमा’ एक दिल छू लेने वाली प्रेम कहानी है जो दो समलैंगिक महिलाओं—दिव्या दत्ता और स्वरा भास्कर द्वारा अभिनीत—के बीच बंधी हुई है। इस फिल्म में प्यार की लालसा और अपने घरों में क्वीर बच्चों को स्वीकृति मिलने की भावना को गहराई से दर्शाया गया है। यह शॉर्ट फिल्म विभिन्न फिल्म समारोहों में प्रदर्शित की गई है और भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव, बोस्टन में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार जीत चुकी है।

  • अलीगढ़

LGBTQIA+

ये फिल्म प्रो. रामचंद्र सिरस (अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय) की वास्तविक जीवन की कहानी से प्रेरित है। उनके और एक अन्य व्यक्ति के बीच एक अंतरंग क्षण की वीडियो के वायरल होने के बाद, जिनकी 2010 में मृत्यु हो गई थी, फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे स्थापित रूढ़ियाँ लोगों के जीवन को गहराई से प्रभावित कर सकती हैं, कभी-कभी तो जीवन के नुकसान का कारण बन सकती हैं। संवादों जैसे “शादीशुदा लोगों के बीच अकेला रहता हूं” ने न केवल रूढ़ियों बल्कि समाज के दोहरे मानकों पर सवाल उठाया है। फिल्म समलैंगिक लोगों के संघर्ष और समाज द्वारा किए गए भेदभाव को बारीकी से दर्शाती है।

  •  LGBTQIA+
  • एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा

इस बॉलीवुड रोम-कॉम फिल्म में, जिसमें गानों, डांस और ड्रामा का भरपूर मसाला है, एक प्रमुख कहानी है। फिल्म में एक परिवार को लगता है कि उनकी बेटी स्वीटी एक मुस्लिम लड़के के साथ प्यार में है। लेकिन जब स्वीटी खुलासा करती है कि वह दरअसल एक लड़की से प्यार करती है, तो परिवार को इसे स्वीकार करना मुश्किल हो जाता है। शुरुआती विरोध के बावजूद, स्वीटी के पिता अंततः उसकी पहचान को स्वीकार कर लेते हैं और समझते हैं कि उनकी बेटी वही है जिसे उन्होंने हमेशा प्यार किया है। इस फिल्म में क्वीर समुदाय के सदस्यों के बाहर आने के संघर्ष, शर्म, अलगाव, और अकेलेपन को सशक्त तरीके से दर्शाया गया है।

दुनिया भर में बदलाव : आज कई देशों में LGBTQIA+ समुदाय को समान अधिकार दिए गए हैं, लेकिन फिर भी कई जगहों पर इन्हें भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ता है।

LGBTQIA+ समुदाय को अलग-अलग देशों में कानूनी मान्यता अलग-अलग समय पर मिली है। कुछ देशों ने समलैंगिक संबंधों और LGBTQIA+ अधिकारों को पहले ही कानूनी मान्यता दे दी थी, जबकि कई देशों में हाल ही में कानून बनाए गए हैं। आइए जानते हैं दुनिया के उन प्रमुख देशों के बारे में, जहां LGBTQIA+ समुदाय को कानूनी मान्यता मिली है:

1. नीदरलैंड (Netherlands)

– साल : 2001

–मान्यता : नीदरलैंड पहला देश था जिसने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी। यहां LGBTQIA+ समुदाय को समान अधिकार मिले हुए हैं।

2. कनाडा (Canada)

– साल : 2005

– मान्यता : कनाडा ने भी LGBTQIA+ अधिकारों को कानूनी मान्यता दी और समलैंगिक विवाह को वैध कर दिया। यहां LGBTQIA+ समुदाय को पूरी समानता प्राप्त है।

3. यूनाइटेड स्टेट्स (United States)

– साल: 2015

– मान्यता: 2015 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद अमेरिका में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिली। अमेरिका में LGBTQIA+ समुदाय को कानूनी अधिकार प्राप्त हैं, लेकिन कुछ राज्यों में भेदभाव की चुनौतियां अब भी मौजूद हैं।

4. यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom)

– साल : 2014

– मान्यता : इंग्लैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड में समलैंगिक विवाह को 2014 में कानूनी मान्यता दी गई। उत्तरी आयरलैंड में यह कानून 2020 में लागू हुआ।

5. स्पेन (Spain)

– साल: 2005

– मान्यता : स्पेन ने 2005 में समलैंगिक विवाह और LGBTQIA+ अधिकारों को कानूनी मान्यता दी। यह दुनिया के उन पहले यूरोपीय देशों में से है, जहां LGBTQIA+ समुदाय को पूरी कानूनी समानता प्राप्त है।

6. फ्रांस (France)

– साल : 2013

– मान्यता : फ्रांस में 2013 में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी गई और LGBTQIA+ समुदाय को अन्य कानूनी अधिकार भी प्राप्त हैं।

7. जर्मनी (Germany)

– साल: 2017

– मान्यता : जर्मनी में 2017 में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिली। LGBTQIA+ समुदाय के अन्य अधिकार भी कानूनी रूप से सुरक्षित हैं।

8. ब्राजील (Brazil)

– साल : 2013

– मान्यता : ब्राजील ने 2013 में समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध कर दिया। LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता यहां बढ़ रही है, लेकिन अब भी भेदभाव के मामले देखे जाते हैं।

9. अर्जेंटीना (Argentina)

– साल : 2010

– मान्यता : अर्जेंटीना लैटिन अमेरिका का पहला देश था, जिसने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी। यहां LGBTQIA+ समुदाय को कानूनी सुरक्षा प्राप्त है।

10. दक्षिण अफ्रीका (South Africa)

– साल : 2006

– मान्यता : दक्षिण अफ्रीका अफ्रीका का पहला देश था, जिसने समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से वैध किया। यहां LGBTQIA+ समुदाय को कानूनी अधिकार प्राप्त हैं।

11. ऑस्ट्रेलिया (Australia)

– साल : 2017

– मान्यता : 2017 में ऑस्ट्रेलिया में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिली। LGBTQIA+ समुदाय को देश में कानूनी सुरक्षा प्राप्त है।

12. भारत (India)

– साल : 2018

– मान्यता : 06 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को समाप्त कर दिया, जिससे सहमति से वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंध अब अपराध नहीं माने जाते। हालांकि समलैंगिक विवाह को अभी कानूनी मान्यता नहीं मिली है, लेकिन LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों के लिए लगातार संघर्ष जारी है।

13. मेक्सिको (Mexico)

– साल : 2015 (कई राज्यों में लागू)

– मान्यता : मेक्सिको में LGBTQIA+ समुदाय को अधिकार दिए गए हैं, लेकिन हर राज्य में समलैंगिक विवाह की मान्यता अलग-अलग समय पर मिली है।

14. न्यूज़ीलैंड (New Zealand)

– साल : 2013

– मान्यता : न्यूज़ीलैंड में 2013 में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिली। LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों को यहां पूरी सुरक्षा प्राप्त है।

15. पुर्तगाल (Portugal)

– साल : 2010

– मान्यता : पुर्तगाल ने 2010 में LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों को कानूनी मान्यता दी और समलैंगिक विवाह को वैध कर दिया।

ये सभी देश LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों को कानूनी रूप से मान्यता दे चुके हैं, लेकिन अब भी दुनिया के कई हिस्सों में इस समुदाय को सामाजिक और कानूनी भेदभाव का सामना करना पड़ता है। LGBTQIA+ अधिकारों के लिए कई देशों में अब भी लड़ाई जारी है, और हर देश की स्थिति अलग है।

 LGBTQIA+ आंदोलन की महत्वपूर्ण बातें

1. गर्व मार्च (Pride Parade):

हर साल जून के महीने में LGBTQIA+ समुदाय “गर्व मार्च” या “Pride Parade” आयोजित करता है, जो समानता और पहचान के लिए उनके संघर्ष का प्रतीक है।

2. रेनबो ध्वज (Rainbow Flag):

LGBTQIA+ समुदाय का प्रतीक “रेनबो ध्वज” है, जिसे 1978 में गिल्बर्ट बेकर ने डिजाइन किया था। इस झंडे में इंद्रधनुष के रंग होते हैं, जो विविधता और समावेशिता का प्रतीक हैं।

3. कानूनी लड़ाइयां: 

LGBTQIA+ समुदाय को दुनिया भर में अभी भी कई कानूनी और सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। लेकिन लगातार हो रहे आंदोलनों के कारण धीरे-धीरे इन्हें समान अधिकार मिल रहे हैं।

LGBTQIA+ के अधिकार और चुनौतियाँ

LGBTQIA+ समुदाय को समान अधिकार और समाज में स्वीकार्यता दिलाने के लिए सालों से संघर्ष करना पड़ रहा है। इन्हें रोज़मर्रा की जिंदगी में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे भेदभाव, हिंसा, और परिवार या समाज से बहिष्कार।

कुछ लोग इन्हें समझ नहीं पाते और गलत तरीके से देखते हैं। उन्हें परिवार, दोस्तों या समाज से वह प्यार और समर्थन नहीं मिल पाता जो हर इंसान का हक होता है।

कानूनी अधिकार : दुनिया के कई देशों में LGBTQIA+ समुदाय के अधिकारों को अब कानूनी मान्यता मिली है, जैसे कि समलैंगिक विवाह, नौकरी में समान अवसर, और लिंग पहचान की स्वतंत्रता। लेकिन फिर भी कई देशों में इन्हें खुले तौर पर अपनी पहचान बताने के कानूनी मान्यता और सुरक्षा नहीं मिली है।

स्वास्थ्य सेवाएं : इस समुदाय को विशेष स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यकता हो सकती है, जिसमें मानसिक स्वास्थ्य, यौन स्वास्थ्य, और ट्रांसजेंडर लोगों के लिए हार्मोन या सर्जरी से जुड़ी सेवाएं शामिल हैं। लेकिन कई जगहों पर इन्हें सही तरीके से इलाज नहीं मिलता।

मानसिक तनाव : क्योंकि समाज इन लोगों को अक्सर अलग नज़र से देखता है, ये लोग मानसिक तनाव, डिप्रेशन और चिंता जैसी समस्याओं से गुजरते हैं। कई बार इन्हें अपनी पहचान छिपानी पड़ती है, जिससे उनकी जिंदगी और मुश्किल हो जाती है।

समाज में बदलाव : समाज में LGBTQIA+ समुदाय को समझने और स्वीकारने के लिए हमें अपने मन की सोच को बदलना होगा। हर इंसान को प्यार, सम्मान और बराबरी का हक है, चाहे उसकी पहचान या यौन इच्छा कुछ भी हो। समुदाय को स्वीकार करने के लिए जागरूकता अभियानों और शिक्षा की जरूरत है ताकि भेदभाव को कम किया जा सके और समानता बढ़ाई जा सके।

LGBTQIA+ एक विविधता भरा समुदाय है जिसमें हर व्यक्ति की अपनी अनूठी पहचान और अनुभव होते हैं। समाज में इस समुदाय को समझना, स्वीकार करना और उनके अधिकारों के लिए लड़ना हम सभी की जिम्मेदारी है। समानता और न्याय के लिए LGBTQIA+ समुदाय के संघर्ष को समर्थन देने के लिए हमें अपने सोचने के तरीके और व्यवहार को बदलने की आवश्यकता है।

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