उमर खालिद को जमानत क्यों नहीं मिल रही है? आईए जानते हैं

उमर खालिद

“जब हम देश में कानून और न्याय की बात करते हैं, तो अक्सर सवाल उठता है कि क्या सभी को समान न्याय मिल रहा है।”

हमारे देश में कानून का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है -“बेल इज द रूल, जेल इज एक्सेप्शन” मतलब ये जमानत नियम है, जेल अपवाद है।‘ इसका मतलब यह है कि किसी व्यक्ति को तब तक जेल में नहीं रखा जाना चाहिए जब तक उस पर अपराध साबित न हो जाए, और उसे जमानत मिलनी चाहिए। लेकिन उमर खालिद के मामले में यह नियम लागू क्यों नहीं हो रहा है?

उमर खालिद, जो एक छात्र नेता हैं, पिछले चार साल से जेल में हैं, और अब तक उन्हें जमानत नहीं मिली है। आप भले ही उमर खालिद को पसंद करते हो या ना पसंद करते हो लेकिन अगर आप खालिद की जगह होते या आप खालिद के पेरेंट्स होते यह खालिद की जगह कोई मोनू सोनू या अन्य व्यक्ति होता यहां सवाल उमर खालिद का नहीं है बल्कि उमर खालिद के जैसे लोग जो सालों से जेल में बंद हैं उन सबका है

सवाल उठता है कि क्या उनके साथ अन्याय हो रहा है? या उनके साथ कोई राजनीतिक साजिश के तहत जानबूझकर अंदर किया गया है?  क्या उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन हो रहा है?

इस लेख में हम समझेंगे कि उमर खालिद कौन है? उमर खालिद का मामला क्या है? इनका ममला क्यों अलग है?, और जमानत के नियम उनके लिए क्यों अपवाद बन गए हैं। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के बारे में क्या कहा है और उमर खालिद को अब तक जमानत क्यों नहीं मिल पाई।”

इससे पहले हम आपको कुछ रिसेंट केस जो चर्चा में रहे के बारे में बताते हैं ताकि आप उसको रिलेट कर पाओ और आसानी से समझ पाओ

दिल्ली के शराब घोटाले में आरोपी और दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से आखिरकार 17 महीने जेल में बिताने के बाद जमानत मिल गई। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते हुए कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और त्वरित सुनवाई हर आरोपी का अधिकार है। सिर्फ गंभीर आरोपों के आधार पर किसी को अनिश्चित समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने इसलिए कही क्योंकि निचली अदालतें और हाईकोर्ट कई बार इन सिद्धांतों को भूल जाती हैं, जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट में जमानत की अर्जियों की भरमार हो जाती है।

सिसोदिया को जमानत पाने के लिए निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बार-बार चक्कर लगाने पड़े। अदालत ने कहा कि अगर सुनवाई समय पर पूरी नहीं होती, तो इसके लिए आरोपी को जेल में रखना ठीक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी सिद्धांत के आधार पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन  तथा उसके सहयोगी प्रेम प्रकाश को भी मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में जमानत दी। कोर्ट ने कहा कि “जमानत नियम है, जेल अपवाद है।”

मनी लॉन्ड्रिंग जैसे सख्त कानून में जमानत पाना बेहद मुश्किल होता है, क्योंकि आरोपी को यह साबित करना होता है कि वह बेगुनाह है। कई मामलों में जैसे बीआरएस नेता के कविता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी इन्हीं कारणों से जेल में रहना पड़ा, लेकिन अंत में उन्हें भी सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली।

अब आप सोच रहे होंगे कि मनीष सिसोदिया, के कविता और अरविंद केजरीवाल , हेमंत सोरेन को जमानत मिल गई और वे अपनी राजनीति में फिर से सक्रिय हो गए, तो फिर इस पर चर्चा क्यों हो रही है?

अब यहां आप उमर खालिद का चेहरा याद कीजिए , जो दिल्ली दंगों की साजिश के आरोप में चार साल से तिहाड़ जेल में बंद हैं। उमर खालिद पर UAPA (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून) के तहत आरोप हैं, और अभी तक उन्हें जमानत नहीं मिल पाई है।

उमर खालिद कौन हैं? वह कितना पढ़े लिखे हैं ? उसका फमिली बैकग्राउंड क्या है?

उमर खालिद

उमर खालिद का जन्म 11 अगस्त 1987 को दिल्ली के जामिया नगर में हुआ था। वह पिछले 30 वर्षों से जामिया नगर में रह रहे हैं। उमर के पिता, सैयद कासिम रसूल इलियास, महाराष्ट्र से ताल्लुक रखते हैं और उनकी मां सबीहा खानम पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आती हैं और गृहिणी हैं। उनके पिता, (एसक्यूआर )सईद कासिम रसूल इलियास, एक सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक हैं, वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और पूर्व में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) से जुड़े थे, जो एक इस्लामी संगठन है जिसे बाद में भारत सरकार ने 2001 मे प्रतिबंधित कर दिया। हालांकि, उन्होंने 1985 में SIMI छोड़ दिया था।

उमर खालिद के माता-पिता
उमर खालिद के माता-पिता

उमर खालिद की दो बहनें हैं, कुलसुम फातिमा और सारा फातिमा, जिन्होंने उनकी कानूनी लड़ाई के दौरान उनका पूरा साथ दिया।

उमर खालिद ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा

पढ़ाई दिल्ली पब्लिक स्कूल (डीपीएस), नोएडा से की, जो पढ़ाई के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में भी बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए जाना जाता है। स्कूली पढ़ाई के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज  जहां उन्होंने इतिहास में स्नातक (बीए) की डिग्री हासिल की। इसके बाद, उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) से इतिहास में मास्टर (एमए) और एमफिल की डिग्री प्राप्त की। उनका एमफिल शोध कार्य “सिंहभूम के होस” पर आधारित था, जो झारखंड के आदिवासी समुदाय पर केंद्रित था। इसके अलावा, उमर ने 2018 में जेएनयू से “झारखंड के आदिवासियों पर शासन के दावों और आकस्मिकताओं का विरोध” विषय पर पीएचडी पूरी की। उनकी पीएचडी थीसिस आदिवासी समुदाय और राज्य के संबंधों की गहन पड़ताल करती है। उन्होंने इसी विषय पर एक शोध पत्र भी प्रकाशित किया, जिसमें 1830-1897 के दौरान सिंहभूम क्षेत्र के ग्राम प्राधिकरण और शासन के बदलते स्वरूपों का अध्ययन किया गया।

उमर खालिद का धर्म व्यक्तिगत दृष्टिकोण

उमर खालिद खुद को एक कट्टर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट मानते हैं, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि वे एक प्रैक्टिसिंग मुस्लिम नहीं हैं। हालांकि उनका जन्म एक मुस्लिम फैमिली में हुआ उनका मुख्य फोकस सामाजिक न्याय और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा पर है। उनका मानना है कि हर व्यक्ति को समान अधिकार मिलना चाहिए, और वह लगातार भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए आवाज उठाते रहे हैं।

उमर खालिद की पत्नी :

उमर खालिद की पत्नी

उमर खालिद की अभी शादी नहीं हुई है, लेकिन वह एक अन्य कार्यकर्ता बनोज्योत्सना लाहिड़ी के साथ रिश्ते में हैं। उनकी मुलाकात 2008 में उनके छात्र जीवन के दौरान हुई थी, और दोनों का रिश्ता सामाजिक कार्यों और विचारधाराओं में समान रुचि के चलते मजबूत हुआ। उमर के जेल में रहने के बावजूद उनका रिश्ता बरकरार है। बनोज्योत्सना तिहाड़ जेल में उमर से मिलने के लिए नियमित रूप से जाती हैं, जहां वे कांच की दीवार के पार एक-दूसरे से बात करते हैं।

उमर खालिद की सक्रियता और आंदोलन

उमर खालिद ने अपनी शिक्षा के साथ-साथ सामाजिक न्याय के मुद्दों पर अपनी सक्रियता बनाए रखी। जेएनयू में रहते हुए, उन्होंने डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स यूनियन (DSU) के सदस्य के रूप में काम किया और विश्वविद्यालय में विभिन्न छात्र आंदोलनों में भाग लिया। 2016 में, खालिद राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में आए, जब उन पर आरोप लगे कि उन्होंने जेएनयू कैंपस में देशविरोधी नारे लगाए। इस विवाद के चलते उन पर देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था, हालांकि यह मामला अदालत में सिद्ध नहीं हो सका।

खालिद ‘नजीब के लिए न्याय आंदोलन‘ का भी हिस्सा रहे हैं, जो नजीब अहमद नामक छात्र की गुमशुदगी से संबंधित है। नजीब जेएनयू का छात्र था, जो 2016 में अचानक लापता हो गया था। इस मामले ने काफी सुर्खियां बटोरीं और खालिद इस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल रहे।

उमर खालिद ‘यूनाइटेड अगेंस्ट हेट‘ नामक अभियान से भी जुड़े हैं। यह अभियान जुलाई 2017 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत में हो रही लिंचिंग की घटनाओं के खिलाफ आवाज उठाना था। इस अभियान की स्थापना उमर खालिद ने नदीम खान के साथ मिलकर की थी, जो लिंचिंग की बढ़ती घटनाओं के जवाब में शुरू किया गया था। यह अभियान हेट क्राइम के खिलाफ न्याय और समानता की मांग करता है।

उमर खालिद को एक मुखर विचारक और एक्टिविस्ट माना जाता है, जो अक्सर केंद्र सरकार और उसकी नीतियों की आलोचना करते रहे हैं।

उमर खालिद पर आरोप, गिरफ्तारी और कानूनी विवाद

उमर खालिद तो गिरफ्तार किया गया

उमर खालिद पर दिल्ली पुलिस ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के सिलसिले में कई गंभीर आरोप लगाए हैं। पुलिस का आरोप है कि उमर खालिद ने इस हिंसा की साजिश रची और वह इसके मुख्य आयोजकों में से एक थे। उनके खिलाफ मुख्य आरोप इस प्रकार हैं

1.दिल्ली दंगों की साजिश: दिल्ली पुलिस का आरोप है कि उमर खालिद और उनके साथी नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरोध के दौरान षड्यंत्रकारी गतिविधियों में शामिल थे, जिसके परिणामस्वरूप फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा भड़क गई थी। इस दंगे में करीब 53 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हुए थे।

2.UAPA के तहत आरोप: उमर खालिद पर Unlawful Activities (Prevention) Act (UAPA) के तहत आरोप लगाए गए हैं। यह एक सख्त आतंकवाद विरोधी कानून है, जिसके तहत आरोप सिद्ध होने पर किसी भी व्यक्ति को जमानत मिलना बहुत कठिन होता है। UAPA के तहत उन पर हिंसा भड़काने, साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है।

3.देशविरोधी गतिविधियों का आरोप: पुलिस का दावा है कि उमर खालिद और उनके साथियों ने सरकार के खिलाफ एक व्यापक साजिश रची थी, जिसका उद्देश्य नागरिकता कानून के विरोध के नाम पर हिंसा भड़काना था। उनके भाषणों और सोशल मीडिया पोस्ट्स को भी हिंसा के लिए उकसाने वाला बताया गया है।

देश की अखंडता को खतरे में डालने का आरोप: उन पर आरोप लगाया गया है कि वह विभिन्न समूहों के बीच सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देने का काम कर रहे थे, जिससे देश की अखंडता और एकता को खतरा हो सकता था।

दिल्ली पुलिस का केस: दिल्ली पुलिस का तर्क है कि उमर खालिद ने CAA विरोधी आंदोलन के दौरान और उससे पहले कई रणनीतिक बैठकें कीं, जिनका उद्देश्य सांप्रदायिक हिंसा को भड़काना था। पुलिस का कहना है कि खालिद के भाषणों और बैठकों में हिंसा की योजना बनाई गई थी। पुलिस ने खालिद के खिलाफ चार्जशीट में कई सबूत पेश किए, जिनमें उनके भाषणों और बैठकों के कथित रिकॉर्डिंग शामिल हैं।

हालांकि, उमर खालिद और उनके समर्थक इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताते हैं और उनका कहना है कि उन्हें जानबूझकर फंसाया जा रहा है। उनके वकील का तर्क है कि उमर ने हमेशा शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया और हिंसा का कभी समर्थन नहीं किया। खालिद के खिलाफ पेश किए गए सबूत कमजोर और अपुष्ट हैं, और उन्हें जानबूझकर फंसाया जा रहा है क्योंकि वह सरकार के आलोचक हैं।

दिल्ली दंगों के बाद उमर खालिद समेत शरजील इमाम और कुछ अन्य लोगों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उमर खालिद सितंबर 2020 से तिहाड़ जेल में बंद हैं। मार्च 2022 में दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद खालिद ने दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की, लेकिन अक्टूबर 2022 में हाईकोर्ट ने भी जमानत देने से मना कर दिया।

इसके बाद उमर खालिद ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में कई बार अलग-अलग कारणों से उनकी जमानत पर सुनवाई टलती रही। कभी कोर्ट के पास समय नहीं था, कभी उमर खालिद के वकील उपलब्ध नहीं थे, तो कभी दिल्ली पुलिस के वकील नहीं आ पाए। उमर खालिद की ओर से सीनियर वकील कपिल सिब्बल पेश हो रहे थे। एक बार सिब्बल ने अपनी ओर से सुनवाई टालने का अनुरोध किया, क्योंकि उन्हें एक संविधान पीठ के सामने पेश होना था। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा कि बार-बार सुनवाई टलने से यह धारणा बनती है कि हम इस मामले की सुनवाई नहीं कर रहे हैं।

कोर्ट की यह बात सही थी, क्योंकि हर बार सुनवाई टलने पर सोशल मीडिया पर लोग यही सवाल उठाते थे कि बाकी मामलों के लिए कोर्ट के पास समय है, लेकिन उमर खालिद की जमानत पर सुनवाई के लिए नहीं। सुप्रीम कोर्ट में उमर खालिद की जमानत याचिका करीब एक साल तक पेंडिंग रही और 11 बार सुनवाई टली।

13 अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अभय एस. ओका और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने एक अहम फैसला देते हुए कहा कि ‘जमानत एक नियम है, जेल अपवाद है’ का सिद्धांत यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम) के मामलों में भी लागू होता है। बेंच ने यह स्पष्ट किया कि ऐसे मामलों में भी जमानत न देना मौलिक अधिकारों का हनन हो सकता है, और यदि मामला योग्य है तो आरोपी को जमानत मिलनी चाहिए।

इससे पहले, जुलाई 2024 में जस्टिस जेबी पारदीवाला और उज्जल भुयान की बेंच ने भी इस पर जोर दिया था कि किसी अपराध की गंभीरता के बावजूद, आरोपी को सजा के तौर पर जमानत से वंचित नहीं किया जा सकता।

वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष ने इसे न्यायिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर चुनौती बताते हुए कहा कि हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर मामलों के आरोपियों को उमर खालिद से पहले ही जमानत मिल चुकी है। उन्होंने कहा, “यह केवल उमर खालिद का मामला नहीं है, बल्कि हमारी पूरी न्यायिक प्रणाली पर एक सवालिया निशान है।”

वकील सौतिक बनर्जी ने इस मुद्दे पर कहा कि उमर खालिद का मामला अदालतों के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षण के रूप में देखा जा सकता है। यह मामला यह तय करने में मदद करेगा कि यूएपीए जैसे सख्त कानूनों में जमानत पर लगाए गए प्रतिबंध मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर रहे हैं या नहीं।

बनर्जी ने यह भी कहा कि चार साल की पूर्व-परीक्षण कैद उमर खालिद के मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से अनुच्छेद 21 के तहत आने वाले जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है। जब मुकदमा जल्द खत्म होने की संभावना न हो, तो इतनी लंबी कैद मौलिक अधिकारों के खिलाफ जाती है।

न्यायिक प्रणाली पर सवाल:

उमर खालिद का केस भारत की न्यायिक प्रणाली पर सवाल खड़े करता है। खासकर जब बेल (जमानत) को एक सामान्य प्रक्रिया और जेल को अपवाद माना जाता है, तो खालिद को बिना किसी ठोस सबूत के लंबे समय तक जेल में रखना न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है।

निष्कर्ष

उमर खालिद के मामले में एक तरफ पुलिस के गंभीर आरोप हैं, तो दूसरी ओर यह सवाल उठता है कि क्या उन्हें उचित न्याय मिल रहा है? उनके समर्थक कहते हैं कि यह मामला राजनीतिक विरोध को दबाने का एक तरीका है, जबकि पुलिस और सरकार इसे देश की सुरक्षा का सवाल मानते हैं। उमर खालिद की जमानत की सुनवाई अभी जारी है, और यह देखना बाकी है कि न्यायालय उनके मामले में क्या फैसला सुनाता है।

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