वक्फ़ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024: एक संवैधानिक संकट या भ्रष्टाचार पर लगाम? क्या है विवाद और क्यों मचा है बवाल? जेपीसी को मिले लाखों सुझाव, अगली बैठक 19-20 सितंबर को

वक्फ संशोधन बिल को लेकर देशभर में चर्चा जारी है, और इसे संसद की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा गया है। जेपीसी की इस बिल पर अब तक चार बैठकें हो चुकी हैं, और जनता से सुझाव भी मांगे गए थे।

जनता के सुझाव

जेपीसी को वक्फ संशोधन बिल पर आम जनता से लगभग 84 लाख सुझाव ईमेल के माध्यम से मिले हैं। इसके अलावा, करीब 70 बॉक्स लिखित सुझावों से भी भरे हुए समिति के पास पहुंच चुके हैं। यह संख्या बताती है कि जनता में इस बिल को लेकर कितना जागरूकता और रुचि है। सुझाव भेजने की आखिरी तारीख 16 सितंबर रात 12 बजे तक बढ़ा दी गई थी।

अगली बैठक की तारीखें

जेपीसी की अगली बैठक 19 और 20 सितंबर को आयोजित की जाएगी। 19 सितंबर को पटना लॉ कॉलेज के वाइस चांसलर और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के अधिकारी को बैठक में बुलाया गया है। यह बैठक इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें वक्फ बोर्ड के अधिकारों और बिल के संभावित प्रभावों पर चर्चा होगी।

विशेषज्ञों और मुस्लिम संगठनों से राय

जेपीसी के सदस्य 26 सितंबर से 1 अक्टूबर के बीच देश के 6 प्रमुख शहरों में जाकर विशेषज्ञों और मुस्लिम संगठनों की राय लेंगे। ये शहर मुंबई, अहमदाबाद, हैदराबाद, चेन्नई, और बेंगलुरु हैं। इन बैठकों का उद्देश्य बिल पर व्यापक विचार-विमर्श करना है।

वक्फ संशोधन बिल पर आपत्तियाँ

जेपीसी में कई विपक्षी सांसदों ने वक्फ संशोधन बिल के मौजूदा प्रारूप पर आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह बिल स्वतंत्रता और धार्मिक समानता के कानूनों का उल्लंघन करता है। वक्फ ट्रिब्यूनल में जिलाधिकारी (डीएम) और अल्पसंख्यक समुदाय के बाहर के सदस्यों को शामिल करने को लेकर भी चिंता जताई गई है।

समिति की रिपोर्ट कब तक आएगी?

जेपीसी बिल पर विशेषज्ञों और हितधारकों के सुझाव सुनने के बाद संसद के शीतकालीन सत्र से पहले अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। इस प्रक्रिया में सभी ईमेल और लिखित सुझावों का भी गहनता से विश्लेषण किया जाएगा।

वक्फ़ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024: क्या है विवाद और क्यों मचा है बवाल?

वक्फ़ बोर्ड कानून को लेकर हाल ही में संसद में वक्फ़ अधिनियम 1995 में संशोधन के लिए एक नया विधेयक पेश किया गया है। इस विधेयक को वक्फ़ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024 कहा जा रहा है। इसका मकसद वक्फ़ संपत्तियों की पारदर्शिता और जिम्मेदारी को बढ़ाना है। सरकार का कहना है कि इस संशोधन के ज़रिए मुस्लिम समुदाय के भीतर से उठ रही मांगों को ध्यान में रखते हुए वक्फ़ बोर्डों के कामकाज में सुधार लाने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि, इस बिल पर राजनीतिक दलों व मुस्लिम समुदाय के संगठनों  बीच बहस छिड़ गई है और इसका विरोध भी हो रहा है।

आइए, इसे आम बोलचाल की भाषा में आसान तरीके से समझते हैं, ताकि हर किसी को साफ-साफ समझ में आए कि वक्फ़ बोर्ड कानून क्या है और इस नए संशोधन से क्या बदलाव हो सकते हैं।

वक्फ़ बोर्ड क्या है?

वक्फ़ बोर्ड एक सरकारी निकाय है, जिसका काम मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक संपत्तियों की देखरेख करना होता है। अगर कोई व्यक्ति अपनी जमीन, इमारत या किसी अन्य संपत्ति को धार्मिक या समाजसेवा के लिए दान कर देता है, तो उसे वक्फ़ संपत्ति कहा जाता है। इस संपत्ति को बेचने या इसके मालिकाना हक को बदलने की अनुमति नहीं होती। यह संपत्ति सीधे अल्लाह या ईश्वर के नाम पर हो जाती है और इसे फिर बदला नहीं जा सकता।

इसको और आसन करके समझाते है  मान लीजिए कि किसी व्यक्ति ने अपनी जमीन या इमारत को मस्जिद या स्कूल बनाने के लिए दान कर दिया। अब इस संपत्ति को बेचा नहीं जा सकता, और इसका मालिकाना हक बदल नहीं सकता क्योंकि इसे “अल्लाह या ईश्वर के नाम पर” दान किया गया है। इसे वक्फ़ संपत्ति कहा जाता है।

वक्फ़ बोर्ड यह देखता है कि इस तरह की संपत्तियों का सही इस्तेमाल हो और जो आमदनी उस सम्पत्ति से (जैसे किराए से) हो रही , उसका इस्तेमाल गरीबों या ज़रूरतमंदों की मदद के लिए हो। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी ने अपनी दुकानें वक्फ़ के तौर पर दान की हैं, तो इन दुकानों से जो किराया मिलेगा, उसे गरीब बच्चों की पढ़ाई या अस्पतालों में इलाज के लिए  या जहा वक्फ़ बोर्ड जरूरी समझे खर्च किया जा सकता है।

वक्फ़ बोर्ड देशभर में लाखों ऐसी संपत्तियों का प्रबंधन करता है ताकि इनका सही इस्तेमाल हो सके। वक्फ की देखरेख करने के लिए देश में विभिन्न वक्फ बोर्ड बनाए गए हैं, जो इन संपत्तियों के प्रबंधन का काम करते हैं। भारत में एक केंद्रीय वक्फ बोर्ड और कुल 32 राज्य वक्फ बोर्ड हैं, जो अलग-अलग राज्यों में फैली हुई संपत्तियों को देखती हैं।

वक्फ़ बोर्ड संपत्तियां क्या होती हैं?

वक्फ़ संपत्तियों में कई चीजें शामिल हो सकती हैं, जैसे:

मस्जिदें: जो वक्फ़ संपत्तियों के तहत आती हैं, उनका प्रबंधन वक्फ़ बोर्ड करता है।
कब्रिस्तान: मुस्लिम समुदाय के लिए बनाए गए कब्रिस्तानों की देखरेख भी वक्फ़ बोर्ड के अंतर्गत आती है।
मदरसे: मुस्लिम बच्चों की पढ़ाई के लिए बनाए गए मदरसे भी वक्फ़ संपत्तियों का हिस्सा होते हैं।
व्यावसायिक संपत्तियां: कई वक्फ़ संपत्तियां ऐसी होती हैं, जिनका इस्तेमाल व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। जैसे – (दुकाने ,इमारते , खाली जमीन ,हॉस्पिटल ,स्कूल इत्यादि ) इनसे होने वाली आय को समाज के कल्याण में लगाया जाता है।

वक्फ़ बोर्ड के पास कितनी संपत्ति है?

अगर हम वक्फ़ बोर्ड के पास 2022 के डाटा के हिसाब से मौजूद संपत्तियों की बात करें, तो यह किसी छोटे संगठन की तरह नहीं है। रेलवे और रक्षा विभाग के बाद, वक्फ़ बोर्ड भारत में सबसे ज़्यादा संपत्ति रखने वाले निकायों में से एक है। वक्फ़ बोर्ड के पास भारत भर में करीब 9.4 लाख एकड़ ज़मीन और 8.7 लाख संपत्तियां हैं। इन संपत्तियों की कुल कीमत लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये मानी जाती है।

वक्फ़ बोर्ड कानून का इतिहास

वक्फ़ की अवधारणा कोई नई नहीं है। दिल्ली सल्तनत के समय से ही वक्फ़ का अस्तित्व रहा है। इतिहास में इसका सबसे पहला उदाहरण सुल्तान मुइज़ुद्दीन सैम ग़ौर (मुहम्मद ग़ोरी) का है, जिसने मुल्तान की जामा मस्जिद को एक गांव समर्पित कर दिया था। वक्फ़ संपत्तियों का इतिहास लंबा है और समय के साथ इसमें कई बदलाव किए गए हैं।

वक्फ़ बोर्ड का इतिहास

प्रारंभिक दौर

मुगल शासन के दौरान, वक्फ की प्रथा भारतीय उपमहाद्वीप में तेजी से फैली। मुसलमानों ने मस्जिदों, मदरसों, दरगाहों, और अन्य धर्मार्थ कार्यों के लिए अपनी संपत्ति वक्फ के रूप में दान की। उस समय वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन स्थानीय धार्मिक नेता या मौलवी द्वारा किया जाता था। मुगल शासन के दौरान इस प्रथा को व्यापक रूप से अपनाया गया, लेकिन इसका कोई औपचारिक कानूनी ढांचा नहीं था।

ब्रिटिश शासनकाल

ब्रिटिश शासन के दौरान वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में कई समस्याएं उत्पन्न हुईं। वक्फ की संपत्तियों पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की शिकायतें बढ़ने लगीं। ब्रिटिश सरकार ने वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए एक कानून की आवश्यकता महसूस की।

इस संदर्भ में, पहला वक्फ कानून 1923 में आया जिसे “मुस्लिम वक्फ वैलिडेटिंग एक्ट” कहा गया। इस कानून ने वक्फ संपत्तियों को कानूनी रूप से मान्यता दी, लेकिन इसके प्रबंधन के लिए एक प्रभावी तंत्र का अभाव रहा।

वक्फ अधिनियम, 1954

स्वतंत्रता के बाद, वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार की आवश्यकता महसूस की गई। 1954 में वक्फ अधिनियम पारित किया गया, जो वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन के लिए एक विस्तृत ढांचा प्रदान करता था। इस अधिनियम के तहत वक्फ बोर्डों का गठन किया गया, जिनका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण और प्रबंधन करना था। हालांकि, यह अधिनियम भी वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने में पूरी तरह सफल नहीं हो सका।

वक्फ अधिनियम, 1995

1954 के अधिनियम में सुधार की आवश्यकता को देखते हुए वक्फ अधिनियम, 1995 को लागू किया गया। यह कानून वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता को बढ़ाने के उद्देश्य से लाया गया था। इस अधिनियम के तहत राज्य स्तर पर वक्फ बोर्डों की स्थापना की गई और केंद्रीय वक्फ परिषद का गठन किया गया, जो वक्फ संपत्तियों की देखरेख और उनके संचालन की निगरानी करती है।

1995 के अधिनियम के तहत वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य किया गया और उनके लेखा-जोखा रखने के लिए सख्त प्रावधान जोड़े गए। इसके अलावा, वक्फ संपत्तियों की अवैध बिक्री और हस्तांतरण पर रोक लगाने के लिए भी इस कानून में प्रावधान किए गए।

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2013

2013 में वक्फ अधिनियम में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए। इसके तहत वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और प्रबंधन में पारदर्शिता लाने के लिए डिजिटल प्रणाली को बढ़ावा दिया गया। वक्फ संपत्तियों की अवैध कब्जेदारी और अनियमितताओं को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए गए। इस संशोधन ने वक्फ बोर्डों की शक्ति और जिम्मेदारियों को और स्पष्ट किया, ताकि वक्फ संपत्तियों का सही उपयोग सुनिश्चित हो सके।

वर्तमान स्थिति

वर्तमान में वक्फ अधिनियम, 1995 (संशोधित 2013) देश में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए लागू है। इसके तहत केंद्र और राज्य स्तर पर वक्फ बोर्ड और वक्फ परिषदें काम कर रही हैं। सरकार समय-समय पर वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार के लिए नए प्रस्ताव लाती रही है।

हाल ही में, सरकार ने वक्फ कानून में संशोधन का प्रस्ताव रखा है, जिसके तहत वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण और प्रबंधन को और अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाने के लिए नए प्रावधान किए जा रहे हैं।

  • 1923 में अंग्रेजों के शासन काल के दौरान पहली बार वक्फ़ संपत्तियों को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाया गया। इसके बाद, स्वतंत्र भारत में
  • 1954 में वक्फ़ अधिनियम लाया गया, जो वक्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए एक ठोस कानूनी ढांचा तैयार करता था।
  • 1995 में इसे नए वक्फ़ अधिनियम से बदला गया, जिसने वक्फ़ बोर्डों को और भी अधिक शक्तियां दीं। इन शक्तियों के कारण अतिक्रमण, अवैध पट्टे और वक्फ़ संपत्तियों की बिक्री जैसी शिकायतें बढ़ने लगीं।
  • 2013 में फिर से कानून में बदलाव किया गया, जिसके तहत वक्फ़ बोर्डों को और भी अधिक अधिकार दिए गए। इन संशोधनों के कारण वक्फ़ संपत्तियों की बिक्री असंभव हो गई।

वक्फ़ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024 में क्या बदलाव हैं?

वक्फ़ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024: में बदलाव
photo danik bhashkar

अब बात करते हैं  वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 में वक्फ अधिनियम 1995 में बड़े बदलाव किए जा रहे हैं, जिससे सरकार वक्फ संपत्तियों को नियंत्रित करने में अधिक अधिकार प्राप्त कर सकेगी। साथ ही, वक्फ संपत्ति के निर्धारण और वक्फ बोर्ड की संरचना मतलब वक्फ बोर्ड में कौन-कौन लोग शामिल होंगे इसकी ओडिट ,इसके विवादों की सुनवाई के लिए न्यायालिया में भी नए नियम लागू होंगे। आइए, इन बदलावों को आसान भाषा में समझते हैं जो मौजूदा वक्फ़ कानून में लगभग 40 बदलाव का प्रस्ताव रखता है। इसके मुख्य बिंदु:

भारत सरकार ने वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024 में करीब 40 बदलाव प्रस्तावित किए हैं।सरकार का दावा है कि  इन बदलावों का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों से जुड़े विवादों को कम करना और वक्फ बोर्ड की शक्तियों पर नियंत्रण रखना है। आइए इन संशोधनों को सरल भाषा में विस्तार से समझते हैं:

1. वक्फ संपत्ति कौन बना सकता है?

अब सिर्फ वही व्यक्ति वक्फ संपत्ति बना सकता है जिसने कम से कम 5 साल से इस्लाम धर्म का पालन किया हो और वह संपत्ति का मालिक हो। पहले यह संभव था कि कोई भी व्यक्ति संपत्ति को वक्फ घोषित कर सकता था, लेकिन अब केवल संपत्ति का मालिक ही ऐसा कर सकता है।

उदाहरण:
अली नाम के व्यक्ति के पास एक ज़मीन है और वह चाहता है कि उसकी ज़मीन वक्फ घोषित हो। नए नियम के अनुसार, अब अली ही यह फैसला कर सकता है, लेकिन कोई और उसके नाम पर ऐसा नहीं कर पाएगा।

2.वक्फ-उल-औलाद और उत्तराधिकारी

प्रस्तावित संशोधन में यह भी प्रावधान किया गया है कि वक्फ संपत्ति का दान अब वक्फ-उल-अलाद (जो परिवार के लिए किया जाता है) के रूप में नहीं हो सकता है। साथ ही, यह सुनिश्चित किया गया है कि वक्फ संपत्ति के उत्तराधिकारियों को उनके संपत्ति के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है, चाहे वह पुरुष हों या महिलाएं।

उदाहरण:
अगर किसी परिवार के पास एक ज़मीन है और वह इसे वक्फ संपत्ति घोषित करना चाहता है, तो अब वह ऐसा केवल तब कर सकता है जब सभी उत्तराधिकारियों को उनके हिस्से का अधिकार मिले। इस संशोधन से खासतौर पर महिलाओं को फायदा होगा, जिनके अधिकार पहले छीन लिए जाते थे।

3. सरकारी संपत्तियों पर वक्फ का दावा नहीं

विधेयक के अनुसार, अब वक्फ बोर्ड किसी भी सरकारी संपत्ति पर दावा नहीं कर सकेगा। सरकारी संपत्ति को वक्फ घोषित नहीं किया जा सकता। अगर वक्फ बोर्ड किसी सरकारी संपत्ति पर दावा करता है, तो कलेक्टर यह तय करेगा कि वह संपत्ति सरकारी है या नहीं, और इसकी रिपोर्ट राज्य सरकार को देगा।

उदाहरण:
अगर वक्फ बोर्ड किसी सरकारी स्कूल या अस्पताल की जमीन पर दावा करता है, तो स्थानीय कलेक्टर यह तय करेगा कि वह जमीन वक्फ की है या सरकारी। अगर वह सरकारी संपत्ति पाई जाती है, तो वक्फ बोर्ड का दावा रद्द हो जाएगा और रिकॉर्ड अपडेट कर दिए जाएंगे।

4. वक्फ संपत्ति का सर्वेक्षण

पहले वक्फ बोर्ड खुद यह तय कर सकता था कि कौन सी संपत्ति वक्फ है। अब यह जिम्मेदारी राज्य के कलेक्टरों को दी जाएगी, जो राज्य के राजस्व कानूनों के तहत वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण करेंगे और तय करेंगे कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है।

उदाहरण:
अगर किसी गांव में वक्फ बोर्ड किसी खेत पर दावा करता है, तो अब कलेक्टर यह फैसला करेगा कि वह खेत वक्फ की संपत्ति है या किसी और की। कलेक्टर की यह जांच राज्य के नियमों के अनुसार होगी।

5. महिलाओं और गैर-मुस्लिमों सदस्य की भागीदारी

प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार अब राज्य सरकार वक्फ बोर्ड में एक गैर-मुस्लिम मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) और कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्य दो महिलाएं नियुक्त कर सकती है। इससे वक्फ बोर्ड की संरचना में विविधता आएगी और गैर-मुस्लिम समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित होगी। इससे वक्फ बोर्ड के कार्यों में अधिक समावेशिता और पारदर्शिता आएगी।ऐसा सरकार का कहना है

उदाहरण:
पहले वक्फ बोर्ड में केवल मुस्लिम पुरुष होते थे, लेकिन अब दो महिलाएं और दो गैर-मुस्लिम सदस्य भी बोर्ड का हिस्सा होंगे। इसके अलावा, बोहरा और आगाखानी समुदाय के सदस्य भी बोर्ड में होंगे।

6.केंद्रीय वक्फ परिषद में बदलाव

अब केंद्रीय वक्फ परिषद में शामिल होने वाले सांसदों का मुस्लिम होना अनिवार्य नहीं होगा। पहले यह नियम था कि तीनों सांसद मुस्लिम समुदाय से हों, लेकिन अब ऐसा कोई नियम नहीं होगा।

उदाहरण:
केंद्रीय वक्फ परिषद में पहले सिर्फ मुस्लिम सांसद होते थे, लेकिन अब किसी भी धर्म के सांसद इस परिषद में शामिल हो सकते हैं।

7 .’वक्फ बाई यूज’ का कॉन्सेप्ट खत्म

विधेयक में यह प्रस्तावित किया गया है कि ‘वक्फ बाई यूज’ या ‘उपयोग द्वारा वक्फ’ के कॉन्सेप्ट को समाप्त कर दिया जाएगा। इसका मतलब है कि अगर किसी संपत्ति का उपयोग सालों से धार्मिक कामों के लिए इस्तेमाल हो रहा है, तो उसे सिर्फ इसी वजह से या इसी आधार पर वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा। इसके लिए जरूरी होगा कि उसके पास सही कानूनी दस्तावेज, यानी वक्फनामा, हो।

उदाहरण:
अगर कोई मस्जिद बिना किसी वक्फनामा के वर्षों से उपयोग हो रही है, तो वह अब वक्फ संपत्ति के रूप में नहीं मानी जाएगी जब तक कि उसके पास वैध वक्फनामा न हो।

8. वक्फ ट्रिब्यूनल के आदेशों पर अपील

पहले वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले अंतिम माने जाते थे और उन पर अपील नहीं की जा सकती थी। लेकिन अब नए नियम के तहत, अगर कोई ट्रिब्यूनल के फैसले से असंतुष्ट है, तो वह 90 दिनों के भीतर उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है।

उदाहरण:
यदि किसी की संपत्ति को वक्फ बोर्ड ने जब्त कर लिया और ट्रिब्यूनल ने वक्फ बोर्ड के पक्ष में फैसला सुनाया, तो वह व्यक्ति अब उच्च न्यायालय में जाकर अपील कर सकता है।

9. वक्फ बोर्ड की शक्तियों में कमी

विधेयक में वक्फ बोर्ड की कुछ शक्तियों को कम करने की बात कही गई है। वक्फ बोर्ड अब खुद संपत्तियों को वक्फ घोषित नहीं कर सकेगा, और उसे अपनी गतिविधियों को अधिक पारदर्शी और नियमों के अनुसार चलाना होगा।

उदाहरण:
पहले वक्फ बोर्ड अपने मन मुताबिक किसी संपत्ति को वक्फ घोषित कर सकता था, लेकिन अब वह ऐसा नहीं कर पाएगा। अब इसके लिए उन्हें राज्य के राजस्व अधिकारियों की मदद लेनी होगी।

क्यों हो रहा है इस विधेयक का विरोध?

हालांकि सरकार का दावा है कि  इस विधेयक का उद्देश्य वक्फ़ बोर्ड में और उसकी संपत्तियों की पारदर्शिता, जवाबदेही और जिम्मेदारी बढ़ाना है, लेकिन इसके बावजूद कई राजनीतिक दल और मुस्लिम  संगठनों ने इसका विरोध किया है। उनका तर्क है कि सरकार वक्फ़ संपत्तियों पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही है और इससे मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों को नुकसान हो सकता है।

इसके अलावा, कुछ दलों का यह भी कहना है कि महिलाओं को वक्फ़ बोर्ड में शामिल करने का निर्णय केवल दिखावटी है और इससे वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं होगा। बोला ये भी जा रहा है कि वक्फ सम्पति मुसलमानों ने ही तो दी है तो इसमे सरकार हस्तक्षेप क्यों कर रही है इसमे गैर मुसलमानों को क्यों चाहती है

वक्फ संशोधन बिल 2024: एक संवैधानिक संकट या भ्रष्टाचार पर लगाम?

वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण और प्रबंधन से संबंधित वक्फ संशोधन बिल 2024 को लेकर देश भर में तीव्र विरोध हो रहा है। खासकर मुस्लिम धार्मिक संगठनों और उलेमा द्वारा इसे असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक बताया जा रहा है। देवबंद में आयोजित एक बैठक में जमीयत उलेमा-ए-हिंद और दारुल उलूम ने इस बिल का विरोध करते हुए कहा कि यह भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है। साथ ही, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस बिल के खिलाफ एक क्यूआर कोड जारी कर अपना विरोध दर्ज किया है।

संवैधानिकता पर सवाल

विरोध की प्रमुख वजहों में से एक यह है कि मुस्लिम समाज का मानना है कि वक्फ संपत्तियां इस्लामिक कानून का हिस्सा हैं, जिनका संरक्षण संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत किया जाता है। इस अनुच्छेद के तहत हर धार्मिक समूह को अपनी संपत्तियों का प्रबंधन और प्रशासन करने का अधिकार दिया गया है। मौलाना अरशद मदनी और मौलाना महमूद मदनी जैसे प्रमुख मुस्लिम नेताओं ने इसे धार्मिक हस्तियों से बिना विचार-विमर्श के लाया गया कानून बताया, जिससे वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।

इस संदर्भ में एक गंभीर प्रश्न यह उठता है कि क्या वक्फ संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता लाने के लिए सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधन वास्तव में संविधान का उल्लंघन करता है या यह महज एक राजनीतिक बहस का हिस्सा है। यदि किसी संपत्ति के दावे को कोर्ट में चुनौती देने की अनुमति देने जैसे प्रावधान शामिल किए जा रहे हैं, तो इसे असंवैधानिक कैसे ठहराया जा सकता है?

वक्फ बोर्ड और भ्रष्टाचार: एक नज़र

वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का मुद्दा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक भी है। वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसा माना जाता है कि देशभर में वक्फ बोर्ड के पास 9 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन है, जो रेलवे और सेना के बाद सबसे बड़ी भूमि धारक संस्था है। बावजूद इसके, वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार और अपारदर्शिता के कारण न तो वक्फ संपत्तियों का सही उपयोग हो पा रहा है और न ही मुस्लिम समाज के गरीब तबके को इसका लाभ मिल रहा है।

वर्तमान में, सरकार का दावा है कि वक्फ बोर्ड को अपनी संपत्तियों पर नियंत्रण की असीमित शक्तियां दी गई हैं, जिन्हें चुनौती नहीं दी जा सकती। नए बिल के तहत, सरकार इन शक्तियों को सीमित कर पारदर्शिता लाने की कोशिश कर रही है। इसका प्रमुख उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन और प्रबंधन को आधुनिक बनाना और इसे डिजिटल पोर्टल के जरिए पारदर्शी बनाना है।

महिलाओं की भागीदारी: एक नकारात्मक पहलू?

वक्फ बोर्ड के प्रबंधन में महिलाओं की भागीदारी का सवाल लंबे समय से उपेक्षित रहा है। मुस्लिम देशों में जहां महिलाएं प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भारत में भी मुस्लिम महिलाएं सांसद, विधायक, मंत्री और उपराष्ट्रपति तक बन चुकी हैं, वहीं भारत में वक्फ बोर्ड जैसी संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी नगण्य है। वक्फ संशोधन बिल 2024 इस मुद्दे को सुधारने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, जिसमें वक्फ बोर्ड में महिलाओं को भी सदस्यता देने का प्रावधान है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि महिलाओं को वक्फ बोर्ड में शामिल करना न केवल लैंगिक समानता का मुद्दा है, बल्कि यह मुस्लिम समाज की प्रगति के लिए भी आवश्यक है। इस बिल के तहत, मुस्लिम महिलाओं के साथ-साथ गैर-मुसलमानों को भी वक्फ बोर्ड में प्रतिनिधित्व देने का प्रस्ताव किया गया है, जो इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप एक समावेशी और लोकतांत्रिक दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करता है।

संपत्तियों का सर्वे: कलेक्टर की भूमिका

वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण के लिए नए विधेयक में कलेक्टर या डिप्टी कलेक्टर को सर्वे कमिश्नर नियुक्त करने का प्रावधान है, जिससे नीचे के अधिकारियों को जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती। यह प्रावधान विवादित हो सकता है, क्योंकि इसका यह अर्थ निकाला जा सकता है कि सरकारी तंत्र वक्फ संपत्तियों के मामलों में हस्तक्षेप करेगा। लेकिन, वक्फ संपत्तियों के सही प्रबंधन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए यह एक आवश्यक कदम भी हो सकता है। कलेक्टर की नियुक्ति से सर्वे प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता की उम्मीद की जा सकती है,

क्या वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए सख्त नियम आवश्यक नहीं हैं?

वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण का मुद्दा केवल कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक भी है। वर्तमान में, कुछ शक्तिशाली मुस्लिम नेता वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर कब्जा जमाए बैठे हैं। तेलंगाना जैसे राज्यों में ओवैसी परिवार पर वक्फ की संपत्तियों का दुरुपयोग करने का आरोप है। इसी तरह, अन्य राज्यों में भी वक्फ संपत्तियों को व्यक्तिगत लाभ के लिए उपयोग किया जा रहा है।

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क्या वक्फ संपत्तियों का सही उपयोग हो रहा है?

मुस्लिम समाज ने अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा इस्लामी कानून के तहत वक्फ के रूप में दान किया था, ताकि इसका उपयोग धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए हो सके। इस्लामी धर्मगुरुओं का मानना है कि इन संपत्तियों का इस्तेमाल उन उद्देश्यों के लिए होना चाहिए, जिनके लिए हमारे पूर्वजों ने उन्हें दान किया था। लेकिन क्या आज वक्फ संपत्तियों का सही उपयोग हो रहा है?

गरीब मुसलमानों के लिए क्यों नहीं हैं पर्याप्त संसाधन?

वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन और उनकी देखभाल वक्फ बोर्ड के जिम्मे होती है, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समाज के गरीब और वंचित वर्गों की भलाई के लिए काम करना है। लेकिन वास्तविकता इससे बहुत अलग है। गरीब मुसलमानों के कल्याण के लिए वक्फ बोर्ड के पास पर्याप्त धन और संसाधन नहीं हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि ताकतवर मुसलमानों ने न केवल वक्फ बोर्ड पर कब्जा जमा लिया है, बल्कि वक्फ की जमीनों पर भी उनका ही नियंत्रण है।

यह एक गंभीर समस्या है, क्योंकि वक्फ संपत्तियों का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों की भलाई के लिए था। लेकिन इन संपत्तियों का लाभ उन्हीं लोगों को मिल रहा है, जो पहले से ही आर्थिक और राजनीतिक रूप से मजबूत हैं। यह स्थिति गरीब मुसलमानों के लिए निराशाजनक है, क्योंकि उनके नाम पर बनी इन संपत्तियों का वास्तविक लाभ उन्हें नहीं मिल रहा।

वक्फ संपत्तियों पर प्रभावशाली लोगों का कब्जा

वक्फ वेलफेयर फोरम के चेयरमैन जावेद अहमद ने इस स्थिति पर चिंता जताई है। उनका मानना है कि नया वक्फ बिल अगर सही तरीके से लागू हो सका, तो अल्पसंख्यक समुदाय को इसका बहुत लाभ हो सकता है। उन्होंने तेलंगाना का उदाहरण देते हुए बताया कि वहां वक्फ की 3 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्तियों का इस्तेमाल असदुद्दीन ओवैसी के द्वारा हो रहा है। यह संपत्ति वक्फ की है, लेकिन इसका लाभ किसे मिल रहा है, यह सवाल उठता है।

वक्फ एक्ट के अनुसार, वक्फ संपत्तियों को 30 साल से ज्यादा की अवधि के लिए लीज पर नहीं दिया जा सकता, लेकिन इस नियम का पालन नहीं हो रहा है। इसके अलावा, इन संपत्तियों पर वक्फ को जो किराया मिलता है, वह बहुत ही नॉमिनल होता है, जबकि यह किराया बाजार दर के हिसाब से होना चाहिए। इसका सीधा मतलब है कि वक्फ संपत्तियों का गलत इस्तेमाल हो रहा है और इससे वक्फ को जो आय होनी चाहिए, वह नहीं हो पा रही है। अगर ये आरोप सही है तो इसको लेकर जाच होनी चाहिए

वक्फ संपत्तियों के उपयोग को धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए ही सीमित रखने का प्रावधान इस्लामी कानून में है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर ऐसा नहीं हो रहा। नए बिल में सरकार ये दावा कर रही है कि इस प्रकार के दुरुपयोग को रोकने के लिए प्रावधान किए गए हैं, ताकि वक्फ संपत्तियों का सही उपयोग किया जा सके और इसे धार्मिक और सामाजिक उद्देश्यों के लिए ही संरक्षित किया जा सके।

सरकार का रुख: कितनी गंभीरता?

सरकार ने वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन के लिए वक्फ संशोधन बिल 2024 को पेश किया। यह बिल “एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास अधिनियम, 1995” के तहत लाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के रजिस्ट्रेशन, ट्रांसपेरेंसी और प्रबंधन में सुधार लाना है। सरकार का दावा है कि यह पारदर्शिता और बेहतर प्रशासन लाएगा, लेकिन क्या वास्तव में इसका यही उद्देश्य है? या यह सिर्फ एक और राजनीतिक कदम है, जिसका मुख्य मकसद कुछ खास हितों की पूर्ति करना है?

विपक्ष की आपत्तियां: वास्तविक चिंताएं या राजनीतिक विरोध?

विपक्ष ने इस बिल पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उनके अनुसार, यह बिल धार्मिक संस्थाओं पर सरकारी नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास है। हालांकि, यह सवाल उठता है कि विपक्ष को इस पारदर्शिता और सुधार से क्या आपत्ति हो सकती है? क्या उनके विरोध के पीछे वाकई वास्तविक चिंताएं हैं, या यह सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए किया गया विरोध है?

यह भी सवाल उठता है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में इतने सालों तक जो खामियां थीं, उन्हें अब तक क्यों नहीं सुधारा गया? क्या यह सिर्फ राजनीतिक कारणों से छोड़ा गया मुद्दा था, और अब सरकार इसे अपने तरीके से हल करने की कोशिश कर रही है?

वक्फ बोर्ड का असंतुलित प्रबंधन: भ्रष्टाचार और गबन का अड्डा?

वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन हमेशा से विवादास्पद रहा है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि संपत्तियों का सही रिकॉर्ड नहीं रखा गया और अक्सर देखा गया है कि इनमें गबन और भ्रष्टाचार के मामले सामने आते रहते हैं। केंद्रीय मंत्री किरण रिजीजु ने संसद में यह स्वीकारा कि वक्फ बोर्ड का मैनेजमेंट सही तरीके से नहीं हुआ है, और इसी कारण सरकार ने कंप्यूटरीकरण और म्यूटेशन की प्रक्रिया को अनिवार्य करने का प्रस्ताव रखा है।

लेकिन यह सवाल बना रहता है कि सरकार के यह कदम वास्तव में गरीबों के हक की रक्षा के लिए हैं, या वक्फ संपत्तियों को अपने नियंत्रण में लेने का एक और प्रयास? क्या इससे उन गरीबों और समाज के वंचित वर्गों को सही में लाभ मिलेगा, जिनके लिए यह संपत्तियां आरक्षित मानी जाती हैं?

गरीबों के लिए न्याय या शक्ति का खेल?

यह दावा किया जा रहा है कि वक्फ संपत्तियों का सही प्रबंधन और पारदर्शिता गरीबों के लिए न्याय सुनिश्चित करेगा। लेकिन क्या यह वास्तव में गरीबों के हितों की रक्षा के लिए किया जा रहा है, या इसका असली मकसद कुछ प्रभावशाली लोगों के हितों की पूर्ति करना है? वक्फ बोर्ड के बड़े पदों पर अक्सर राजनीतिक और धार्मिक शक्तियां हावी रही हैं, और इस बिल का विरोध करने वाले भी इन्हीं शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

यह भी गौर करने वाली बात है कि वक्फ संपत्तियों के मुद्दे को उठाने वाले पहले से ही कह रहे थे कि इस पर ध्यान दिया जाए, लेकिन सरकार द्वारा लाए गए इस बिल का विरोध हो रहा है। क्या यह विरोध सिर्फ इसलिए है क्योंकि इससे उन लोगों का नियंत्रण खत्म होगा, जो अब तक इन संपत्तियों का गलत इस्तेमाल कर रहे थे?

वास्तविक सुधार या राजनीतिक चाल?

वक्फ संपत्तियों का सही प्रबंधन करना निश्चित रूप से आवश्यक है, लेकिन इस बिल के साथ आने वाले राजनीतिक खेल को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह सवाल अब भी बना हुआ है कि सरकार वाकई इन संपत्तियों का सही और पारदर्शी प्रबंधन चाहती है, या यह सिर्फ एक और राजनीतिक चाल है, जिससे वक्फ संपत्तियों पर नियंत्रण बढ़ाया जा सके।

सरकार का दावा है कि यह गरीबों और वंचितों के हक में है, लेकिन इस बात की भी पूरी संभावना है कि इस बिल के लागू होने के बाद भी वक्फ संपत्तियों का उपयोग राजनीतिक और आर्थिक लाभ के लिए ही किया जाएगा।

वक्फ़ संपत्तियों से जुड़े विवाद

वक्फ़ संपत्तियों को लेकर भारत में समय-समय पर विवाद होते रहे हैं। सबसे ताज़ा उदाहरण तमिलनाडु से आया था, जब सितंबर 2022 में तमिलनाडु वक्फ़ बोर्ड ने एक हिंदू बहुल गांव पर दावा किया था। इस विवाद ने वक्फ़ बोर्ड की शक्तियों पर सवाल खड़े कर दिए थे, और इसी कारण से इस विधेयक की मांग तेज हो गई थी।

वक्फ़ बोर्ड की संपत्तियों पर अवैध कब्जा, अतिक्रमण और गलत दावे अक्सर विवादों का कारण बनते हैं। इस विधेयक के माध्यम से इन सभी समस्याओं को हल करने का प्रयास किया गया है।ऐसा सरकार का दावा है

वक्फ़ संपत्तियों का सही प्रबंधन और पारदर्शिता सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है मुस्लिम समुदाय के भीतर से भी मांग उठी थी कि वक्फ़ बोर्ड के कामकाज में सुधार हो और इसमें अधिक जिम्मेदारी लाई जाए। मै खुद भी सकारात्मक सुधारो के पक्ष में हू और इस बिल का  केवल इस आधार पर विरोध नही होना चाहिए कि ये मुस्लिम धार्मिक मामला है वक्फ़ संपत्तियों के साथ हो रहे धोखाधड़ी, अतिक्रमण और गलत दावों ने इस कानून में बदलाव की आवश्यकता को और भी महत्वपूर्ण बना दिया था। और समय के साथ सकारात्मक सुधार जरूरी है

निष्कर्ष

वक्फ़ बोर्ड संशोधन विधेयक 2024 का उद्देश्य वक्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार लाना, पारदर्शिता को बढ़ाना और महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित करना है। हालांकि, इसे लेकर राजनीतिक विवाद भी हो रहे हैं, लेकिन इसका लाभ दीर्घकालिक रूप से मुस्लिम समुदाय और देश के समाजिक ताने-बाने को होगा।

सरकार और वक्फ़ बोर्डों के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है ताकि धार्मिक और सामाजिक संपत्तियों का सही प्रबंधन हो सके और उनका उपयोग समाज के हित में किया जा सके।

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