टॉर्च की रोशनी में जन्म: कस्तूरबा अस्पताल की लापरवाही या सिर्फ अफवाह?

Edited by Zulfam Tomar 

दिल्ली के प्रतिष्ठित कस्तूरबा अस्पताल में हाल ही में घटित एक घटना ने पूरे शहर को हिला कर रख दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 22 अगस्त को अस्पताल में बिजली कटौती के दौरान दो नवजात शिशुओं की डिलीवरी मोबाइल के टॉर्च की रोशनी में की गई। इसके परिणामस्वरूप एक नवजात शिशु की मौत भी हो गई। इस मामले ने न केवल अस्पताल प्रशासन बल्कि पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं। इन आरोपों के बाद अस्पताल प्रशासन और एमसीडी (म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन ऑफ दिल्ली) के अधिकारियों ने अपनी स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश की, लेकिन इस घटना ने उन सभी दावों पर संदेह पैदा कर दिया है जो अस्पताल प्रबंधन की कार्यक्षमता और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को लेकर किए जाते हैं।

बिजली कटौती या प्रबंधन की असफलता?

22 अगस्त को दिल्ली के दरियागंज स्थित कस्तूरबा अस्पताल में बिजली कटौती के कारण कई वार्डों में अंधेरा छा गया, जिससे मरीजों को असुविधा का सामना करना पड़ा। अस्पताल प्रशासन ने स्वीकार किया कि उस दिन मरम्मत के लिए बिजली काटी गई थी। मरम्मत कार्य के दौरान बिजली कटौती सामान्य है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इस प्रक्रिया के लिए पर्याप्त वैकल्पिक व्यवस्थाएँ की गई थीं?

एमसीडी अधिकारियों का दावा है कि अस्पताल में बिजली बैकअप की व्यवस्था थी और ऑपरेशन थिएटर (OT) में बिजली की आपूर्ति निर्बाध रूप से चालू थी। अधिकारियों के अनुसार, उस दिन अस्पताल में तीन डिलीवरी हुईं, जिनमें से दो दिन के समय और एक शाम को हुई थी, जब बिजली बहाल हो चुकी थी। इस दावे से यह प्रतीत होता है कि अस्पताल प्रशासन ने सभी आवश्यक व्यवस्थाएँ पहले से की थीं, लेकिन फिर भी यह सवाल उठता है कि ऐसी स्थिति क्यों उत्पन्न हुई जहां मरीजों को टॉर्च की रोशनी में डिलीवरी करनी पड़ी?

कस्तूरबा हॉस्पिटल टॉर्च से की डिलीवरी (सांकेतिक फोटो) अस्पताल, स्वास्थ्य, प्रशासन
कस्तूरबा हॉस्पिटल टॉर्च से की डिलीवरी (सांकेतिक फोटो)

प्रबंधन की तैयारियों पर सवाल

एमसीडी और अस्पताल प्रशासन के दावों के बावजूद, इस घटना ने कई चिंताएँ पैदा कर दी हैं। सबसे पहला सवाल यह है कि अगर बिजली कटौती की सूचना पहले से थी, तो क्या पर्याप्त वैकल्पिक व्यवस्था की गई थी? प्रशासन का दावा है कि बिजली कटौती के लिए पहले से सूचना दी गई थी और उसके अनुसार तैयारियां भी की गई थीं। लेकिन जब स्थिति बिगड़ी, तो क्या तत्काल कार्रवाई की गई?

बिजली कटौती जैसी घटनाएँ अस्पतालों के लिए एक गंभीर चुनौती होती हैं, खासकर जब इसमें मरीजों की जान दांव पर हो। अस्पताल के प्रशासन की जिम्मेदारी होती है कि वह ऐसी स्थितियों में भी मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। लेकिन इस मामले में, ऐसा लगता है कि प्रबंधन ने पूरी तरह से तैयारी नहीं की थी, जिसके परिणामस्वरूप एक शिशु की जान चली गई।

स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर सवाल

स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता का सीधा संबंध अस्पताल की प्रशासनिक क्षमताओं से होता है। यह घटना इस बात का उदाहरण है कि कैसे एक छोटी सी गलती भी बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा सकती है। दिल्ली जैसे महानगर में, जहां स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर अपेक्षाकृत उच्च होता है, ऐसी घटनाएं न केवल आश्चर्यजनक हैं बल्कि चिंताजनक भी हैं।

यह घटना एक बार फिर से इस बात पर ध्यान केंद्रित करती है कि अस्पतालों में आपातकालीन स्थितियों के लिए कितनी अच्छी तैयारी होनी चाहिए। बिजली कटौती जैसी सामान्य समस्याएं भी गंभीर हो सकती हैं अगर उनकी तैयारी सही ढंग से नहीं की गई हो। यह आवश्यक है कि अस्पताल प्रशासन ऐसी स्थितियों के लिए एक ठोस योजना बनाए और उसे लागू करे ताकि मरीजों को किसी भी तरह की असुविधा का सामना न करना पड़े।

वैकल्पिक व्यवस्थाओं की कमी: एक बड़ी समस्या

अस्पतालों में वैकल्पिक व्यवस्थाओं का होना आवश्यक है, खासकर जब वहां बिजली कटौती या अन्य आपातकालीन स्थितियाँ उत्पन्न होती हैं। लेकिन इस मामले में, ऐसा प्रतीत होता है कि अस्पताल ने वैकल्पिक व्यवस्थाओं के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए। रिपोर्ट के अनुसार, बिजली कटौती के दौरान वार्डों में अंधेरा छा गया और मरीजों को टॉर्च की रोशनी में डिलीवरी करनी पड़ी।

यह एक गंभीर समस्या है जो यह दर्शाती है कि अस्पताल प्रशासन ने बिजली कटौती के दौरान वैकल्पिक व्यवस्थाओं के लिए सही ढंग से तैयारी नहीं की थी। अगर अस्पताल में उचित बैकअप होता, तो शायद इस तरह की स्थिति नहीं उत्पन्न होती और एक शिशु की जान बचाई जा सकती थी।

एक बच्चे की मौत: किसकी जिम्मेदारी?

इस घटना में एक नवजात शिशु की मौत ने पूरे मामले को और भी गंभीर बना दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, बच्चे को जन्म के बाद सांस संबंधी दिक्कतें थीं, जिसके चलते उसे एनआईसीयू (नीकू) में वेंटीलेटर पर रखा गया। एमसीडी अधिकारियों का कहना है कि एनआईसीयू में बिजली बैकअप की व्यवस्था थी और यह 22 अगस्त को ठीक से काम भी कर रहा था। लेकिन इसके बावजूद बच्चे की मौत हो गई।

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इस स्थिति में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि क्या अस्पताल प्रशासन इस बच्चे की जान बचाने के लिए सभी आवश्यक कदम उठा रहा था? अगर एनआईसीयू में बिजली बैकअप था और वह ठीक से काम कर रहा था, तो फिर बच्चे की मौत कैसे हो गई? क्या इसमें चिकित्सा लापरवाही का कोई तत्व था?

मामले की जांच: एक जरूरी कदम

इस घटना के बाद, अस्पताल प्रशासन और एमसीडी अधिकारियों ने टॉर्च की रोशनी में डिलीवरी होने के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। लेकिन इस मामले की गंभीरता को देखते हुए, इसकी निष्पक्ष और गहन जांच आवश्यक है।

इस जांच में यह स्पष्ट होना चाहिए कि क्या वाकई में टॉर्च की रोशनी में डिलीवरी की गई थी और अगर ऐसा हुआ था, तो इसके पीछे की वजह क्या थी? क्या अस्पताल प्रशासन ने वैकल्पिक व्यवस्थाओं के लिए सही ढंग से तैयारी नहीं की थी या फिर यह एक असामान्य घटना थी जिसे टाला नहीं जा सकता था?

स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता

यह घटना एक बार फिर से इस बात की आवश्यकता को उजागर करती है कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की जरूरत है। अस्पताल प्रशासन को ऐसी आपातकालीन स्थितियों के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए और सुनिश्चित करना चाहिए कि मरीजों को किसी भी तरह की असुविधा का सामना न करना पड़े।

इसके अलावा, इस घटना ने यह भी दिखाया है कि अस्पतालों में वैकल्पिक व्यवस्थाओं के लिए कितनी अच्छी तैयारी होनी चाहिए। अगर अस्पताल प्रशासन ने बिजली कटौती के दौरान उचित वैकल्पिक व्यवस्थाएं की होती, तो शायद इस तरह की स्थिति नहीं उत्पन्न होती और एक शिशु की जान बचाई जा सकती थी।

निष्कर्ष

कस्तूरबा अस्पताल की यह घटना स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की आवश्यकता को एक बार फिर से रेखांकित करती है। बिजली कटौती के दौरान मरीजों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बेहतर प्रबंधन की आवश्यकता है। इसके साथ ही, इस मामले की पूरी तरह से निष्पक्ष और गहन जांच होनी चाहिए, ताकि सच्चाई सामने आ सके और भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके।

यह आवश्यक है कि अस्पताल प्रशासन अपने दायित्व को गंभीरता से समझे और स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए ठोस कदम उठाए। जब तक इस तरह की घटनाओं के प्रति संजीदगी नहीं दिखाई जाएगी, तब तक हमारे स्वास्थ्य तंत्र पर सवाल उठते रहेंगे। यह घटना हमारे स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए एक चेतावनी है और हमें इसे गंभीरता से लेना चाहिए।

इस प्रकार, इस मामले की पूरी छानबीन और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओं से बचा जा सके और हमारे देश की स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया जा सके।

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